Saturday, November 23, 2024
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पुलिस थाने जाना यानी अपने बेइज्जती कराना

बात भोपाल के एक थाने की है। नाम नहीं लूंगा। क्योंकि ऐसी लगभग 100 घटनाएं मैं अपने जीवन में देख चुका हूं और 10000 घटनाओं के बारे में अत्यंत विश्वस्त सूत्रों से सुन और जान चुका हूं ।। 

हमारे पहचान के एक सज्जन का सहसा देहांत हो गया। उनके पूर्व पत्नी से उत्पन्न बेटे और भतीजे (ऐसी पत्नी जो तलाक ले चुकी थी अपने पति से, उससे उत्पन्न बेटे और भतीजे )जो विगत कई वर्षों से उनके पास नहीं आ रहे थे, दूसरी उदारमना पत्नी के द्वारा सूचना दिए जाने पर अंत्येष्टि के समय आगए। पत्नी ने अंत्येष्टि भी उनसे ही कराई।

जहां पर वे दिवंगत सज्जन रहते थे ,उसी कक्ष में पूजा की ज्योति जलाई गई तो मुखाग्नि देने वाला बेटा और साथ ही संपूर्ण परिवार जो उस बेटे का था यानी भतीजे आदि सब ही रहे।

तीसरी रात को किसी समय उन्होंने लॉकर की चाबी जो विश्वास पूर्वक वही रखी थी और उनकी सौतेली माता ने बता दिया था कि यह चाबी रखी है कल सबके सामने खोलेंगे, उस लॉकर को रात को चुपके से खोला और उसमें जो कुछ भी गहने जेवरात, कागज पत्तर,पासबुक चेक बुक, मोबाइल आदि थे, सब चुराकर अस्थि विसर्जन की आड़ लेकर भाग गए।

जब दो दिन तक पता नहीं चला(वह निकला तो अस्थि विसर्जन के बहाने से था इसलिए 2 दिन प्रतीक्षा करनी पड़ी) 2 दिन तक पता नहीं चला तो थाने में रिपोर्ट करने वे महिला गईं। वे वर्तमान में मध्यप्रदेश में तहसीलदार हैं।उन्होंने अपने थाने में लिखित रिपोर्ट दी। परंतु सब इंस्पेक्टर रिपोर्ट अर्थात आवेदन लेने को तैयार ही नहीं हुआ।

कम से कम 2 घंटे तक तहसीलदार साहब को थाने में बैठाए रहा और कोशिश करता रहा कि उस डकैती और चोरी करने वाले व्यक्ति से( जो कि शत्रुता का भाव रखता था अंदर से )उससे तहसीलदार साहब समझौता कर लें और मामले को रफा-दफा कर ले और भूल जाएं कि क्या चोरी हुई है।

2 घंटे तक जब वे लगातार डटी रहीं तो किसी तरह पावती तो दे दी परंतु प्रथम सूचना रिपोर्ट तब भी नहीं लिखी क्योंकि या तो कहीं से धन मिल गया था या कहीं से फोन आ गया था। 

ऐसी घटनाएं आए दिन देशभर में घटती रहती है। इसीलिए इस घटना को तूल देकर किसी व्यक्ति या किसी थाने को निशाने में लेना हमारा कोई प्रयोजन नहीं है क्योंकि वह निरर्थक होगा। 

हमारा कहना केवल यह है कि अगर एक साधारण सा थाने का 1 स्टार वाला सब इंस्पेक्टर अपने से कई गुना ऊँचे पद वाले तहसीलदार को जो स्वभाव से सरल और सौम्य हों, इस तरह घंटों बैठाए रखकर भी प्रथम सूचना रिपोर्ट नहीं लिखता तो नागरिकों के जीवन में सीधे हस्तक्षेप करने की कितनी अधिक शक्ति सामान्य पुलिस वाले को प्राप्त है और ऐसी भीषण व्यवस्था जो मूलतः अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर आतंक और भय जमाने तथा उनसे वसूली करके अवैध कमाई करने अथवा अंधाधुंध कमाई करने की जो व्यवस्था बनाई गई थी, उसे ही बाद के भी सत्ता हस्तांतरण पाने वाले लोगों ने चलने दिया और अभी की सभी प्रमुख पार्टियां इसी व्यवस्था की पक्षधर हैं और इस व्यवस्था का एकमात्र विरोध जिस अपने को कम्युनिस्ट्स कहने वाले गिरोह ने किया, वह तो हत्या बलात्कार अपहरण फिरौती और गंभीर अपराधों का ही समूह है। उसके विरोध का कोई महत्व नहीं। वह विरोध तो और ही और भी घिनौनी व्यवस्था लाने का तरीका है । 

महत्वपूर्ण यह है कि ऐसी व्यवस्था के होते हुए जनप्रतिनिधि विधायक सांसद ही नहीं मंत्री मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री केंद्रीय मंत्री आदि अपने को जनता का सेवक कहते हैं और प्रधानमंत्री भारत का प्रधान सेवक कहते हैं तो वह कितना बड़ा झूठ है और शासन के पास कितनी अधिक शक्ति है कि एक साधारण सा उनका सिपाही प्रमुख नागरिकों ही नहीं शांतिप्रिय और कानून प्रिय सरकारी अधिकारी को भी उसकी शिकायत के बावजूद टरका सकता है और लिखित शिकायत देने पर भी इतना हीला हवाला कर सकता है और मामले को रफा-दफा करवाने के लिए इस प्रकार हस्तक्षेप कर सकता है। 

तो इससे पता चलता है कि यह जो शासन व्यवस्था का अंग्रेजों का दिया हुआ ढांचा है उसमें सभी अधिकारियों को विशेषकर महत्वपूर्ण अधिकारियों को सांसदों को विधायकों को मंत्रियों को मुख्यमंत्रियों को और प्रधानमंत्री को कितनी अधिक शक्ति प्राप्त है ।
उसी शक्ति का एक सबसे छोटा अंश पुलिस इंस्पेक्टर को प्राप्त है तो भी वह इतनी शक्ति रखता है कि नागरिकों के जीवन में बलपूर्वक हस्तक्षेप कर सके। 

अब इस गंभीर स्थिति पर निंदा और आलोचना और अपशब्दों की भरमार करने वाले लोग कितने दयनीय हैं यह स्पष्ट है। व्यक्तियों की आलोचना का कोई अर्थ भी नहीं । कोई महत्व भी नहीं। कोई भूमिका भी नहीं । 

महत्व की बात यह है कि स्वयं को राष्ट्र के लिए समर्पित या कथित क्रांति के लिए समर्पित या जनकल्याण के लिए समर्पित जैसी बड़ी-बड़ी बातें करने वाले सभी राजनीतिक दल इस व्यवस्था या फिर इस से भी बदतर व्यवस्था के पोषक हैं । 

प्रारंभ में डॉक्टर लोहिया ने इसे बदलने की बात अवश्य की थी परंतु उनकी पार्टी के एक भी व्यक्ति ने आज तक इसकी कोई बात नहीं की और अन्य किसी पार्टी के भी किसी व्यक्ति ने इस ढांचे को बदलने की कोई बात ही नहीं की । 

तो इससे पता चलता है कि भारत के शिक्षित वर्ग में आततायियों के प्रति धीरे-धीरे समायोजन का भाव पैदा हो गया है और वे इससे लाभान्वित होने की जुगत में रहते हैं और परिवर्तन आदि की बातें कितनी खोखली हैं।।
क्योंकि जो भी वास्तविक परिवर्तन करना चाहेगा भारत में, वह सर्वप्रथम और सर्वाधिक बल शासन के ढांचे में बदलाव के लिए देगा और उसमें न्याय व्यवस्था तथा पुलिस व्यवस्था में बदलाव ही सर्वोपरि महत्व का है। 

परंतु उस पर कोई चिंतन डॉक्टर लोहिया के बाद भारत के किसी भी बड़े राजनेता ने व्यवस्थित रूप में नहीं किया और उस दिशा में कोई बड़े महत्वपूर्ण व्याख्यान भी नेता लोग नहीं देते।

ऐसी स्थिति में इस ढाँचे के प्रति सभी सबल समूहों की श्रद्धा है, यही पता चलता है। परंतु यह ढांचा राज्य के तंत्र को बहुत अधिक और बहुत ही अनुचित शक्ति देता है क्योंकि वह भारत के राजधर्म और राज्य की तथा न्याय व्यवस्था की परंपरागत विधियों से पूरी तरह विपरीत है और इसका लक्ष्य न्याय नहीं अपितु शासक समूहों का समाज पर कठोरतम नियंत्रण है । 

जो कम्युनिस्ट्स इस ढाँचे का विरोध करते हैं ,।वह इससे भी अधिक कठोर नियंत्रण समाज पर लाते हैं ।
यह दुनिया का सत्य है।। 

इस तरह मुख्य बात यह है कि राजनीतिक क्षेत्र में न्याय की इच्छा रखने वाला कोई भी व्यक्ति न्याय व्यवस्था और पुलिस व्यवस्था के वर्तमान स्वरूप को तथा राज्य व्यवस्था के भी वर्तमान स्वरूप को परिवर्तित करने के लिए गंभीरतापूर्वक ज्ञान का प्रचार करेगा या आंदोलन तथा अभियान का विस्तार करेगा।। 

इसके पक्ष में रहकर किसी भी शुभ परिवर्तन की अपेक्षा करना ही गलत है।

एक निवेदन

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