Sunday, November 24, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेक्या न्यायालय में फटे पुराने कपड़े पहनने वालों को न्याय नहीं मिलेगाः...

क्या न्यायालय में फटे पुराने कपड़े पहनने वालों को न्याय नहीं मिलेगाः मुख्य न्याायाधीश के खिलाफ अवमानना की याचिका

इंदौर, जबलपुर। रतलाम के पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर के खिलाफ मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में कंटेम्प्ट पिटीशन दायर कर दी है। इसके जरिए सवाल उठाया गया है कि क्या अपनी सुविधा अनुसार या फटे-पुराने कपड़े पहनकर हाईकोर्ट की शरण लेने वाले किसी गरीब को इंसाफ मांगने का हक नहीं? श्री सकलेचा ने इस मामले में बहस करने के लिए इंदौर के वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर को अपना वकील बनाया गया है।

उन्होंने कहा है कि मामले की सुनवाई मुख्यपीठ जबलपुर के स्थान पर इंदौर बेंच में सुनिश्चित की जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि सीजे के खिलाफ बहस के लिए जबलपुर के किसी वकील के तैयार न होने की वजह से इंदौर के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री माथुर से चर्चा करनी पड़ी। वे वस्तुस्थिति से अवगत होने के बाद केस अपने हाथ में लेने तैयार हो गए।

चूंकि वे वयोवृद्ध हैं और शारीरिक वजह से जबलपुर आने की स्थिति में नहीं हैं अत: केस इंदौर में ही सुनवाई के लिए निर्धारित किया जाए। मध्यप्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता सीनियर एडवोकेट आनंद मोहन माथुर ने इस जानकारी की पुष्टि करते हुए बताया कि वे सकलेचा की ओर से सीजे श्री खानविलकर के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग करेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि 15 व 16 अक्टूबर को डीमेट मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश श्री खानविलकर ने श्री सकलेचा के साथ बेहद अपमानजनक व्यवहार किया।

उन्होंने तेज स्वर में व्यंग्यात्मक-कटाक्ष करते हुए कहा-”आप हाईकोर्ट में केस की सुनवाई के लिए आए हैं या जींस-टी-शर्ट के साथ झोला लटकाकर किसी बागीचे या पहाड़ पर सैर-सपाटे के लिए आए हैं? इतना कहकर पहले तो पीछे की बेंच में बैठने की हिदायत दी गई और बाद में कोर्ट-रूम से बाहर निकलने कह दिया गया। चूंकि सीजे का रवैया एक व्यक्ति की गरिमा का हनन करने वाला था, अत: श्री सकलेचा द्वारा सीजे के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई किए जाने की गुहार के साथ हाईकोर्ट की शरण ले ली गई है।

सुप्रीम कोर्ट की 12 नजीरों का हवाला-

वरिष्ठ अधिवक्ता श्री माथुर ने बताया कि श्री सकलेचा की कंटेम्प्ट पिटीशन में सुप्रीम कोर्ट की 12 नजीरों का हवाला दिया गया है। इसके साथ ही सीजे पर संविधान के अनुच्छेद- 21 के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है। याचिका में इस तथ्य का भी उल्लेख किया गया है कि डीमेट मामले की सुनवाई के दौरान श्री सकलेचा ने एक लिखित आवेदन दिया था, जिसे पहले तो अपने पास रख लिया गया, लेकिन बाद में वापस कर दिया गया। किसी केस की सुनवाई के दौरान नियमानुसार प्रस्तुत की गई अर्जी या तो खारिज की जानी चाहिए थी या फिर स्वीकृत। चूंकि ऐसा नहीं किया गया अत: सीजे का यह रवैया भी कठघरे में रखे जाने योग्य है।

साभार- http://naidunia.jagran.com से

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार