इस इन्स्टाग्राम पोस्ट को ध्यान से पढ़ेंगे तो आपको “मुर्तद” शब्द दिख जायेगा। इस “मुर्तद” का अर्थ होता है वैसे व्यक्ति जो या तो पैदा मुहम्मडेनों के घर में हुए थे इसलिए मुहम्मडेन थे, या कभी धर्म परिवर्तन करके मुहम्मडेन बने और फिर मजहब को छोड़ दिया। उदाहरण की तौर पर आपको मुगल बादशाह अकबर याद होगा जो पैदा होने के हिसाब से मुहम्मडेन होता, लेकिन आपने इतिहास की दसवीं तक की किताबों में ही पढ़ रखा है कि उसने बाद में “दीन-ए-इलाही” नाम का मजहब शुरू कर दिया था, इसलिए वो भी “मुर्तद” था।
अकबर के जिक्र से आपको ये भी याद आएगा कि हुंमायूं का मकबरा आपने दिल्ली में देखा होगा। बाद के मुगल शाहजहाँ का मकबरा ताजमहल में ही बताया जाता है। जो लोग काले जादू में यकीन रखते हैं वो औरंगजेब को “जिंदा पीर” बुलाते हैं, इसलिए उसका मकबरा भी है। तो फिर सबसे बड़े मुगल बादशाह अकबर का मकबरा कहाँ गया? असल में अकबर का मकबरा आगरा के पास सिकंदरा में है। कथित तौर पर इसे जहाँगीर ने 1605-1613 में बनवाया था। फिर इसका जिक्र क्यों नहीं आता?
औरंगजेब के काल में जब जाटों के बर्दाश्त की इन्तहा हो गयी तो गुस्से में जाटों ने हमला कर दिया। जब 1685 में राजाराम जाट ने हमला किया तो मुगल सूबेदार मीर अबुल फजल ने मुकाबला किया और आक्रमण पूरी तरह सफल नहीं हुआ। जाटों ने 1688 में दोबारा हमला किया तो पिछली लड़ाई में बलवान जाटों के किस्से सुन चुका नाइब मुहम्मद बाका आगरा में ही दुबका रहा, लड़ने उतरा ही नहीं। शाइस्ता खान दिल्ली से पहुंचा नहीं। अजीज अहमद और कैथरीन ऐशर जैसे इतिहासकार लिखते हैं कि जाटों ने अकबर की कब्र खोदकर उसकी हड्डियाँ जला डाली। इसलिए अकबर की कोई कब्र है ही नहीं, और आपने अकबर के मकबरे का जिक्र नहीं सुना।
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