“प्रियंका एक अक्खड़ घमंडी लड़की थी जो एक अमीर बिगड़ी साहबजादे की तरह रहती थी, मुझे उसके ताने याद हैं”
भारत के राजनैतिक इतिहास में विरोध की एक परम्परा रही ही है लेकिन यह परंपरा एक स्वस्थ विरोध की.. जिसमें तर्कों के साथ संसद में भी एक लकीर खींची जाती रही है। प्रधानमंत्री नेहरू के समय संसद में विपक्ष के एक से बढ़कर एक सांसद थे जो प्रखर वक्ता थे और तर्कों के साथ अपनी बात सदन के पटल पर या अन्य सार्वजनिक मंचों रखते थे।
लेकिन आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस नित नए स्तर पर गिर रही है। गाँधी परिवार की पांचवी पीढ़ी भारत की राजनीति में बदतमीज़ी के नए आयाम बना रही है। कैसे?
राहुल गाँधी हर भाषण में प्रधानमंत्री पद पर अमर्यादित टिप्पणियां करते ही रहते हैं। यहाँ तक कि वो पीएम को चोर तक कह चुके हैं और अब उनकी बहन प्रियंका गाँधी ने कहा है कि नरेंद्र मोदी कायर है।
राहुल गाँधी आधा जीवन व्यतीत कर चुके हैं लेकिन आप उनके 52 साल की उपलब्धियों से परिचित ही होंगे और उनकी बहन प्रियंका गाँधी, जिन्होंने अपने जीवनकाल में एक भी चुनाव नहीं लड़ा है। माने शून्य राजनैतिक उपलब्धि, उत्तर प्रदेश का कार्यभार संभाला तो वहां भी पार्टी का बंटाधार हो गया।
तो प्रश्न यह है कि ना इनका कोई जनाधार है और न ही ऐसी छवि है कि दोनों को एक मजबूत नेतृत्व के रूप में देखा जाए, तो फिर इतनी हिम्मत या आत्मविश्वास कैसे कि वे भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसे बदजुबानी का इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं?
कुछ लोग इसकी वजह गाँधी परिवार को मानते हैं। माना गया कि सात दशक परिवार ने राज किया तो उसका प्रभाव हो सकता है क्योंकि नेहरू तो स्वयं को साहेब मानते ही थे और इसी अभिमान का अंश उनकी पुत्री इंदिरा गाँधी में भी देखा गया।
लेकिन राहुल-प्रियंका को यह बड़बोलापन और घमंड दादा-दादी के गाँधी परिवार से नहीं बल्कि नाना-नानी के माइनो परिवार से मिला है। एंटोनियो माइनो ने सोनिया गाँधी बन कर भारत की नागरिकता तो स्वीकार की लेकिन राहुल और प्रियंका को पश्चिम का Superiority Complex यानी श्रेष्ठताबोध की भावना विरासत में दी।
उनके इस स्वभाव का उल्लेख मिलता है एक लेख में, हमारी आज की जानकारी इसी लेख के इर्द गिर्द है।
वर्ष 1998 में फ्रंटलाइन मैगज़ीन में छपे एक लेख ‘इन माइनो कंट्री’ में पत्रकार वैजू नरवने, एंटोनियो माइनो (सोनिया गाँधी) एवं उनके परिवार का पूरा ब्यौरा देती हैं। पत्रकार इटली के ओरबसानों शहर जाती हैं, जहाँ सोनिया गाँधी का बचपन गुजरा था।
इस इंटरव्यू के दौरान पत्रकार की मुलाकात सोनिया गांधी की एक सहपाठी से होती है। वह बताती हैं, “एंटोनियो माइनो (Antonio maino) अच्छी इंसान थी लेकिन हमेशा उन्हें अपने सामाजिक श्रेष्ठता (Superiority) का एहसास रहता था और उनकी बहन अनुष्का, वह एक बेहूदा लड़की थी। सोनिया की बेटी भी अपनी मौसी (Aunt) जैसी थी। प्रियंका एक अमीर बिगड़ी और अक्खड़ घमंडी लड़की, मुझे उसके ताने याद हैं,वो किसी साहबजादे की तरह थी। ”
आज प्रियंका गाँधी की इस ‘विशेषता’ के बावजूद वह कांग्रेस पार्टी को संचालित कर रही हैं और उनसे योग्य व्यक्ति पार्टी में साइडलाइन हो रहे हैं। सचिन पॉयलेट इसका अच्छा उदाहरण हैं।
शायद अब कांग्रेस पार्टी उन्ही लोगों का ठिकाना है जो ‘जी हुज़ूरी’ करना जानते हैं। वरना आपको वर्ष 1999 तो याद होगा ही कैसे शरद पवार समेत कांग्रेस के बड़े नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर पार्टी छोड़ दी थी।
‘इन माइनो कंट्री’ लेख में ओरबसानों शहर के मेयर बताते हैं, “जिस तरह से माइनो ने भारत में अपनी जगह बनाई मुझे आश्चर्य है कि क्या हम इटली में एक विदेशी महिला को स्वीकार कर पाते? खासकर तब जब वह एक ऐसी पार्टी के मुखिया बनी हैं जो पार्टी स्वयं को अपने देश में विदेशी शासन के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बताती है। भारतीयों के एक निश्चित वर्ग ने अपने भाग्य के साथ उन पर भरोसा किया है”
यह निश्चित वर्ग कौन था और कौन है आप समझ ही गए होंगे।
आज प्रियंका गाँधी अपने भाषण में कहती हैं कि ‘लोकतंत्र को मेरे परिवार ने खून से सींचा’ लेकिन प्रश्न यह है कि वह किसका परिवार था जिसने इटली के फ़ासिस्ट तानाशाह बेनितो मुसोलिनी की सेना का हिस्सा था?
इस लेख से यह भी ज्ञात हुआ कि सोनिया गांधी के पिता का रिश्ता फासीवादी से था। इंटरव्यू में ओरबसानों शहर के एक बुजुर्ग जो सोनिया गांधी के पिता को करीब से जानते थे, वह बताते हैं , “आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए, यूजेनियो माइनो (प्रियंका गाँधी के नाना) असियागो से आया था, जहां राष्ट्रवाद मजबूत था। वह जर्मनों के साथ रूसी अभियान में लड़े और फासीवादी विचारधारा के प्रति सच्चे रहे।”
क्या इसके बाद भी प्रियंका गाँधी के पास लोकतंत्र और फासीवाद पर ज्ञान देने की नैतिकता बच जाती है?
नैतिकता तो कांग्रेस पार्टी तब ही स्वाहा कर चुकी थी जब उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के साथ उनकी पत्नी जसोदाबेन के नाम पर भी राजनीति की। तो यहाँ पर क्या अब यह बताना आवश्यक नहीं है कि राजीव गाँधी से विवाह करते वक़्त सोनिया गाँधी ने अपने परिवार को सूचना देना भी उचित नहीं समझा।
इस लेख में राजीव गाँधी और एंटोनियो माइनो की मुलाकात पर सोनिया गाँधी की एक पुरानी मित्र बताती है, “मुझे याद है जैसे कल की बात हो। सोनिया 20 साल की थी। हमारा स्कूल रीयूनियन हो रहा था और वह वहां कुछ पुराने विद्यार्थियों के साथ आई थी। रात का खाना परोसा जा रहा था। तभी उसने अचानक कहा कि उसे जाना है। हमने उसे कारण पूछा। उसने कहा, “मैं नहीं रुक सकती। मेरे पास आज रात के खाने के लिए एक विशेष अतिथि आ रहा है।” जब हमने उससे पूछा कि वह कौन है जो इतना खास है, तो उसने अजीब तरह से सिर हिलाते हुए कहा: “यह भारत की प्रधामंत्री इंदिरा गांधी का बेटा है।”
“थोड़ी समय के बाद वह भारत चली गई। वह तब तक 21 साल की हो गई थी। और फिर उनकी शादी की खबर भी हमें अखबार की सुर्ख़ियों से पता चली। उसने 21 वर्ष की होते ही भारत से अपने पिता को अपने निर्णय की सूचना देते हुए एक टेलीग्राम घर भेज दिया था। वह हमेशा थोड़ी चालाकी करती थी। उन्हें राजनीति में अच्छा करना चाहिए।”
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप की कोई सीमा नहीं है लेकिन जनता भी नेताओं से न्यूनतम नैतकिता की उम्मीद तो करती ही है। ऐसे में जब प्रियंका गाँधी प्रधानमंत्री से ‘तू-तड़ाक’ कर ‘कायर’ कहती हैं तो उन्हें विचार करना चाहिए कि जब इतिहास के पन्ने ऐसे ही पलटे जाएंगे तब उनके पास यह कहने का विकल्प भी नहीं बचेगा कि ‘क्यों हवा निकल गयी?’।
साभार https://www.thepamphlet.in/ से