एक वैज्ञानिक ने एक अदभुत काम किया इधर। कैक्टस का एक पौधा, जिसमें कांटे ही कांटे होते हैं और जिसमें कभी बिना कांटे की कोई शाखा नहीं होती, एक अमरीकन वैज्ञानिक उस पौधे को बहुत प्रेम करता रहा। लोगों ने तो समझा कि पागल है, क्योंकि पौधे को प्रेम करना! अरे आदमी को ही प्रेम करने वाले को बाकी लोग पागल समझते हैं, तो पौधे को प्रेम करने वाले को तो कौन समझदार समझेगा! उसके घर के लोगों ने भी समझा कि दिमाग खराब हो गया है। वह सुबह से उठता तो वह पौधा ही पौधा था। उसी को प्रेम करता, उससे बातें भी करता। तब तो और पागलपन हो गया। वृक्ष से तो बातें हो कैसे सकती हैं?
उस वैज्ञानिक ने जब यह घोषणा की कि मैं एक वृक्ष से बातें शुरू किया हूं और मुझे आशा है कि मैं सफल हो जाऊंगा। तो सारे अमरीका में उसकी हंसी उड़ी, सारे अखबारों में उसकी फोटो छपी कि यह आदमी पागल हो गया। कहीं कोई वृक्ष से बातें किया है कभी? लेकिन वह अदभुत पागल आदमी था कि अपने काम में लगा रहा। इस कैक्टस के पौधे से, जिसमें कांटे ही कांटे होते हैं, वह रोज सुबह बैठ कर घंटे भर बातें करता, उससे प्रेम करता, उस पर पानी सींचता, जितने हृदय के भाव होते उसको बताता। वृक्ष तो चुप रहता, वृक्ष क्या बोलेगा, वृक्ष तो कभी बोला ही नहीं है, इसलिए एकतरफा ही बातें होतीं, वह वैज्ञानिक खुद ही उस पौधे से कुछ कहता रहता।
उसकी पत्नी भी परेशान हो गई, उसके बच्चे भी हैरान हुए। उन्होंने कहा, यह क्या पागलपन किया? बदनामी होगी। इससे कोई फल आने वाला है!
लेकिन उसने कहा कि मैं प्रतीक्षा करूंगा। और उस पौधे से उसने क्या कहा? उस पौधे से सारी बातें करता, जैसे कोई मित्रों से करता है। और अंत में एक बात रोज उससे कह देता। उससे कह देता कि मैं तो तुमसे कह रहा हूं, पता नहीं मेरी भाषा तुम समझते हो या नहीं समझते हो, पता नहीं तुम तक मेरी बातें पहुंचेंगी या नहीं पहुंचेंगी, लेकिन अगर मेरा प्रेम तुम तक पहुंच जाए तो तुम किसी इशारे से जाहिर तो कर ही सकते हो कि मेरा प्रेम तुम तक पहुंच गया। तो मैं तुम्हें बताता हूं, तुम यह इशारा कर देना तो मैं समझ जाऊंगा। और उसने क्या कहा? उसने यह कहा कि तुम्हारे इस पौधे में–कांटों वाला पौधा है कैक्टस का, उसमें कांटे ही कांटे हैं–अगर एक ऐसी शाखा निकल आए जिसमें कांटे न हों, तो मैं समझ जाऊंगा कि मेरी बातें तुम तक पहुंचीं।
उस पौधे में कभी बिना कांटे की कोई शाखा नहीं निकली, यह तो असंभव ही था। लेकिन सात साल तक वह यह कहता रहा। और तुम हैरान हो जाओगे, एक दिन ऐसा आया कि उस पौधे में एक शाखा निकली जिसमें कांटे नहीं थे। तब तो सारा अमरीका स्वीकार किया, सारी दुनिया ने स्वीकृति दी कि जरूर मनुष्य की प्रेम की वह आवाज उस पौधे के प्राणों तक भी पहुंची, अन्यथा वह शाखा कैसे निकलती जिसमें कांटे नहीं हैं? सारी शाखाएं कांटों वाली, एक शाखा बिना कांटे की भी निकल आई। पौधा भी, अगर सतत उसके साथ प्रेम किया गया, उत्तर दिया उसने।
तो अगर तुम जिंदगी से पूछो–पत्थरों से, पौधों से, आदमियों से, आकाश से, तारों से–तो सब तरफ से उत्तर मिलेंगे। लेकिन तुम पूछो ही नहीं, तो उत्तरों की वर्षा नहीं होती, ज्ञान कहीं बरसता नहीं किसी के ऊपर। उसे तो लाना पड़ता है, उसे तो खोजना पड़ता है। और खोजने के लिए सबसे बड़ी जो बात है वह हृदय के द्वार खुले हुए होने चाहिए। वे बंद नहीं होने चाहिए। दुनिया की तरफ से दरवाजे बंद नहीं होने चाहिए, बिलकुल खुला हुआ मन होना चाहिए। और जो भी आए चारों तरफ से, निरंतर सजग रूप से, होशपूर्वक उसे समझने, सोचने और विचारने की दृष्टि बनी रहनी चाहिए।
समाधि कमल -प्रवचन 14
ओशो