Monday, July 1, 2024
No menu items!
spot_img
No menu items!
Homeअध्यात्म गंगाआदि पत्रकार -देवर्षि नारद

आदि पत्रकार -देवर्षि नारद

सृष्टिकर्ता प्रजापति ब्रहमा के मानस पुत्र नारद। महान तपस्वी, तेजस्वी, सम्पूर्ण वेदान्त, शास्त्र के ज्ञाता तथा समस्त विद्याओं में पारंगत नारद। ब्रहमतेज से संपन्न नारद। नारद जी के महान कृतित्व व व्यक्तित्व पर जितनी भी उपमाएं लिखी जाएं कम हैं। देवर्षि नारद ने अपने धर्मबल से परमात्मा का ज्ञान प्राप्त किया । वे प्राणिमात्र के कल्याण के लिए सदा उपस्थित रहे। वे देवता, दानव और मानव समाज के हित के लिये सर्वत्र विचरण, चिंतन व विचार मग्न रहते थे। देवर्षि नारद की वीणा से निरंतर नारायण की ध्वनि निकलती रहती थी।भगवदभक्ति की स्थापना तथा प्रचार के लिए ही नारद का अवतार हुआ। नारद चिरंजीवी हैं। नारद जी का संसार में अमिट प्रभाव है। देव, दानव, मानव सबके सत्कार्यों में देवर्षि नारद सहायक सिद्ध होते हैं। नारद जी का जीवन जनकल्याण व मंगलमय जीवन के लिये ही है। नारद जी पर नारायण की विशेष कृपा है। वे शत्रु तथा मित्र दोनों में ही लोकप्रिय थे।

देवर्षि नारद त्रिकालदर्शी व पृथ्वी सहित सभी ग्रह नक्षत्रों में घट रही घटनाओें के ज्ञाता तो थे ही उनके मन में कठिन से कठिन समस्याओं के समाधान भी चलायमान रहते थे। देवर्षि नारद व्यास, वाल्मीकि, शुकदेव जी के गुरु रहे। नारद ने ही प्रह्लाद, ध्रुव, राजा अम्बरीष आदि को भक्तिमार्ग पर प्रवृत्त किया। नारद ब्रहमा, शंकर, सनतकुमार, महर्षि कपिल, मनु आदि बारह आचार्यो में अन्यतम हैं। प्रचलित कथा के अनुसार देवर्षि नारद अज्ञातकुल शील होने पर भी देवर्षि पद तक पहुंच गये थे। बाल्यकाल में भी उनके मन में चंचलता नहीं थी, वे मुनिजनों की आज्ञा का पालन किया करते थे। उनकी अनुमति प्राप्त करके वे बरतनों में लगी हुई जूठन दिन में एक बार खा लिया करते थे। इससे उनके जन्म के सारे पाप धुल गये। नारद की सेवा से प्रभावित होकर मुनिगण उन पर अपनी कृपा रखने लगे।

संतों की सेवा करते – करते उनका हृदय शुद्ध रहने लगा। भजन – पूजन में उनकी रुचि बढ़ती गयी। उनके हृदय में भक्ति का प्रादुर्भाव हो गया। वे अपनी माता के साथ ब्राहमण नगरी में रहते थे। माता के कारण वे भी कहीं अन्यत्र नहीं जा सके। कुछ दिनों बाद एक दिन उनकी माता को सर्प ने काट लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी नारद जी ने उसे विधि का विधान माना और गृह का त्याग करके उत्तर दिशा की ओर चल दिये। इसके बाद उन्होनें अपनी सतत साधना और तपस्या के बल पर देवर्षि का पद प्राप्त किया। किसी – किसी पुराण में देवर्षि नारद को उनके पूर्वजन्म में सारस्वत नामक एक ब्राहमण बताया गया है। जिन्होनें “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र के जाप से भगवान नारायण का साक्षात्कार किया।
कालान्तर में पुनः ब्रहमा जी के दस मानसपुत्रों के रूप में जन्म लिया। नारद शुद्धात्मा, शांत, मृदु तथा सरल स्वभाव के हैं। मुक्ति की इच्छा रखने वाले सभी लोगों के लिए नारद जी स्वयं ही प्रयत्नशील रहते हैं।नारद जी को ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन होते थे। उन्हें ईश्वर का मन कहा गया है। वे परम हितैषी हैं उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं हैं। वे प्रभु की प्रेरणा से निरंतर कार्य करते रहते हैं। नारद जी ने दक्ष प्रजापति के हयाश्व- शबलाक्ष नामक सहस्र पुत्रों को अध्यात्म तत्व का पाठ पढ़ाया। देवर्षि नारद ने सभी के लिये भगवदभक्ति का द्वार खोल रखा था। वे जीवमात्र के कल्याण के लिये भगवान नाम कीर्तन की प्रेरणा देते रहते हैं।

देवर्षि नारद का वर्ण गौर सिर पर सुंदर शिखा सुशोभित है। उनके शरीर में एक विशेष प्रकार की उज्वल ज्योति निकलती रहती थी। वे देवराज इंद्र द्वारा प्राप्त श्वेत दिव्य वस्त्रों को धारण किये रहते हैं। वे अनुषांगिक धर्मों के ज्ञाता थे। नारद लोप, आगम, धर्म तथा वृत्ति संक्रमण के द्वारा प्रयोग में आये हुये एक- एक शब्द की अनेक अर्थो में विवेचना करने में सक्षम थे। कृष्ण युग में गोपियों का वर्चस्व स्थापित किया। प्रथम पूज्य देव गणेश जी को नारद जी का ही मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ था।

देवर्षि नारद स्वभावतः धर्म निपुण तथा नाना धर्मो के विशेषज्ञ हैं।वे चारों वेदों के ज्ञाता हैं। उन्होंने विभिन्न वैदिक धर्मों की मर्यादाएं स्थापित की हैं। वे अर्थ की व्याख्या के समय सदा संशयों का उच्छेद करते हैं। नारद जी के द्वारा रचित अनेक ग्रंथों का उल्लेख मिलता है – जिसमें प्रमुख हैं नारद पंचरात्र,नारद महापुराण,वृहदरदीय उपपुराण, नारद स्मृति, नारद भक्ति सूत्र, नारद परिवाज्रकोपनिषद आदि। इसके अतिरिक्त नगरीय शिक्षा शास्त्र के साथ ही अनेक स्तोत्र भी नारद जी के द्वारा रचित बताये जाते है।

भगवद भक्ति की स्थापना तथा प्रचार के लिये नारद जी का आविर्भाव हुआ। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते थे। इस कारण सभी युगों में सभी लोकों में समस्त विद्याओं में समाज के सभी वर्गो में नारद जी का सदा से प्रवेश रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं वरन दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर किया है। समय -समय सभी ने उनसे परामर्श लिया है। नारद जी भागवत संवाददाता भी थे, संदेश वाहक भी थे और ब्रह्माण्ड के प्रथम पत्रकार भी माने गये।

नारद जी के विभिन्न उपनाम भी हैं। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उन्हें संचारक अर्थात सूचना देने वाला पत्रकार कहा गया है।इसके अतिरिक्त संस्कृत के शब्दकोष में उनका एक नाम ”पिशुन“ आया है जिसका अर्थ है सूचना देने वाला संचारक, सूचना पहुंचाने वाला ,सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक देनेवाला है। आचार्य पिशुन से स्पष्ट है कि देवर्षि नारद तीनों लोकों में सूचना अथवा समाचार के प्रेषक के रूप में परम लोकप्रिय थे।

वे रामायण युग में भी थे तो महाभारत काल में पांडवों के सबसे बड़े हित साधक भी थे। जनमानस के कल्याणार्थ नारद मुनि ने सत्यनारायण भगवान की कथा, व्रत महात्मय आदि की श्रेष्ठता समाज में स्थापित की। जिज्ञासा प्रकट करने के बाद ही भगवान श्रीहरि ने नारद जी को समस्त पूजा एवं हवन का विस्तार से वर्णन किया और अंत में आश्वस्त करते हुए उनसे कहा कि श्रद्धा पूर्वक किया गया भगवान सत्य नारायण का व्रत सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है। महाभारत युग में भी पाण्डवों का हित साधन नारद जी ने ही किया था। महारानी द्रौपदी को पांच पांडवों के साथ रहने का नियम भी नारद जी ने ही बनवाया था जिससे पतिव्रता द्रौपदी और पांचों पांडवों के बीच सामंजस्य का वातवरण बना रहे।

नारद जी के व्यक्तित्व व कृतित्व को लेकर भांति – भांति की कथायें प्रचलित हैं। सभी पुराणों में महर्षि नारद एक मुख्य व अनिवार्य भूमिका में उपस्थित हैं। परमात्मा के विषय में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने वाले दार्शनिक को नारद कहा गया है।पुराणों में नारद को भागवत संवाददाता भी कहा गया है। यह भी सर्वमान्य है कि नारद की ही प्रेरणा से महर्षि वाल्मीकि ने रामायण जैसे महाकाव्य और व्यास ने महाभारत जैसे काव्य की रचना की थी।

नारद सदैव ही सामूहिक कल्याण की भावना को सर्वोपरि रखते थे। नारद में अपार संचार योग्यता व क्षमता थी।आदि पत्रकार नारद जी की पत्रकारिता सज्जन रक्षक व एवं दुष्ट विनाशक की थी। वे सकारात्मक पत्रकार की भूमिका में रहा करते थे। पत्रकार के रूप में काशी, प्रयाग,मथुरा ,गया ,बद्रिकाश्रम, केदारनाथ, रामेश्वरम सहित सभी तीर्थों की सीमा तथा महत्व का वर्णन नारद पुराण में मिलता हैं। देवर्षि नारद जी की पत्रकारिता समाज के लिए हितकारी व दुष्टों का संहार करने वाली थी। नारद जी की पत्रकारिता अध्यात्म पर आधारित थी। उन्होंने स्वार्थ , लोभ, एवं माया के स्थान पर परमार्थ को श्रेष्ठ माना। महान विपत्तियों से मानवता की रक्षा का काम किया।

वर्तमान समय में पत्रकारिता को नारदीय आदर्श अपनाने की आवश्यकता है।

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार