श्रीजगन्नाथ पुरीधाम में प्रतिवर्ष आषाढ शुक्ल द्वितीया को अनुष्ठित होनेवाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा होती है जिसे गुण्डीचायात्रा, पतितपावन यात्रा,जनकपुरी यात्रा, घोष यात्रा,नव दिवसीय यात्रा तथा दशावतार यात्रा भी कहते हैं।यह यात्रा वास्तव में एक सांस्कृतिक महोत्सव है जिसमें न तो भाषा की दीवार होती है, न ही प्रांतीयता का बंधन। न जातीयता का मोह होता है ,न ही किसी धर्म-सम्प्रदाय का भेद-भाव क्योंकि भगवान जगन्नाथ स्वयं विश्व मानवता के केन्द्र विंदु हैं, विश्व मानवता के स्वामी हैं जो अपने आपमें सौर, वैष्णव, शैव,शाक्त,गाणपत्य़,बौद्ध और जैन के जीवंत विग्रह देव समाहार हैं।वे कलियुग के एकमात्र पूर्णदारुब्रह्म हैं जो अवतार नहीं अपितु अवतारी हैं।जो 16 कलाओं से सुसज्जित हैं।
श्रीमंदिर के सिंहद्वार के ठीक सामने श्रीमंदिर के दशावतार रुप के मध्य में अष्टलक्ष्मी विराजमान हैं जिनके मात्र दर्शन मात्र से सबकुछ प्राप्त हो जाता है। भगवान जगन्नाथ भक्तों की अटूट आस्था एवं विश्वास के देवता हैं जिनके रथयात्रा के दिन रथारुढ रुप को देखकर विश्व मानवता को शांति,एकता तथा मैत्री का पावन संदेश मिलता है। श्रीजगन्नाथ पुरी धाम वास्तव में एक धर्मकानन है जहां पर आदिशंकराचार्य, चैतन्य,रामानुजाचार्य,जयदेव,नानक,कबीर और तुलसी जैसे अनेक संत पधारे और भगवान जगन्नाथ की अलौकिक महिमा को स्वीकारकर उनके अनन्यभक्त बन गये।
2023 की रथयात्रा 20जून को है। पद्मपुराण के अनुसार आषाढ माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि सभी कार्यों के लिए सिद्धियात्री होती है।यह यात्रा भगवान जगन्नाथ के प्रति वास्तविक श्रद्धा,भक्ति, प्रेम,आत्मनिवेदन,करुणा,विश्वास को बनोये रखने तथा आत्मअहंकार के त्याग का दिव्य,अलौकिक तथा अनूठा सांस्कृतिक महोत्सव है जिसमें रथारुढ भगवान जगन्नाथ के दर्शन मात्र से मानव-जीवन सफल हो जाता है।मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।रथयात्रा भारतीय आत्मचेतना का शाश्वत प्रतीक है।
2023 की रथयात्रा के दिन 20जून को भोर में श्रीमंदिर के रत्नवेदी से चतुर्धादेव विग्रहों को एक-एककर पहण्डी विजय कराकर उनके अलग-अलग रथों पर आरुढ किया जाएगा। भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदिघोष रथ है जिसपर उनको आरुढ किया जाएगा। बलभद्रजी के रथ का नाम तालध्वज रथ है ,उस रथ पर उनको आरुढ किया जाएगा तथा देवी सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन रथ है जिसपर देवी सुभद्राजी और सुदर्शन जी को आरुढ किया जाएगा। रथयात्रा के दिन सबसे आगे तालध्वज रथ चलेगा। उसके बाद देवदलन रथ तथा सबसे आखिर में भगवान जगन्नाथ का रथ नंदिघोष रथ चलेगा।
प्रतिवर्ष तीनों रथ नये बनाये जाते हैं और पुराने रथों को तोड दिया जाता है।ऋग्वेद तथा यजुर्वेद में रथ के उपयोग का वर्णन मिलता है। प्रतिवर्ष रथ निर्माण के लिए काष्ठसंग्रह का पवित्र कार्य़ वसंत पंचमी से आरंभ होता है। काष्ठसंग्रह दशपल्ला के जंगलों से प्रायः होता है। रथनिर्माण का कार्य वंशपरम्परानुसार भोईसेवायतगण अर्थात् श्रीमंदिर से जुडे बढईगण ही करते हैं। इनको पारिश्रमिक के रुप में पहले जागीर दी जाती थी लेकिन जागीर प्रथा समाप्त होने के बाद उन्हें अब श्रीमंदिर की ओर से पारिश्रमिक दिया जाता है।
रथ-निर्माण में कुल लगभग 205 प्रकार के सेवायतगण सहयोग करते हैं। जिस प्रकार पांच तत्वों को योग से मानव शरीर का निर्माण हुआ है ठीक उसी प्रकार से पांच तत्वःकाष्ठ,धातु,रंग,परिधान तथा सजावटी सामग्रियों के योग से रथों का निर्माण होता है । रथनिर्माण का कार्य पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्यसिंहदेवजी मबाराजा के राजमहल श्रीनाहर के ठीक सामने रखखल्ला में होता है। रथयात्रा के एक दिन पूर्व आषाढ शुक्ल प्रतिपदा को तीनों रथों को खीचकर लाकर श्रीमंदिर के सिंहद्वार के सामने उत्तर दिशा की ओर मुंह करके खडा कर दिया जाता है। रथयात्रा के दिन तीनों रथों को इसप्रकार सूक्ष्म कोण से अगल-बगल ऐसे खडा किया जाता है कि रथों के रस्सों को खीचने में बडदाण्ड अर्थात् श्रीमंदिर के सिंहद्वार के ठीक सामने की चौडी और बडी सडक के बीचोंबीच ही तीनों रथ चलें।
रथ-संचालन के लिए झण्डियों को हिला-हिलाकर निर्देश दिया जाता है। सच कहा जाय तो रथयात्रा कहने के लिए मात्र एक दिन की होती है लेकिन वास्तव में यह सांस्कृतिक महोत्सव वैशाख मास की अक्षय तृतीया से आरंभ होकर आषाढ माह की त्रयोदशी तक चलता है। रथयात्रा के दिन देवविग्रहों को जिस प्रकार से आत्मीयता के साथ सेवायतगण कंधे से कंधा मिलाकर एक-एक पग आगे बढाते हुए पहण्डी विजय कराकर लाते हैं और उनको रथारुढ करते हैं वह सचमुच अलौकिक होता है।उस वक्त पहण्डी के आगे-आगे परम्परागात बनाटी प्रदर्शन,गोटपुअ नृत्य,ओडिशी नृत्यप्रदर्शन,घंटमर्दन,अल्पना,रंगोली आदि की सजावट देखते ही बनती है।
चतुर्धादेवविग्रहों को रथारुढ कराने के उपरांत पुरी गोवद्धन मठ के 145वें पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग अपने परिकरों के साथ आकर तीनों रथों पर एक-एककर जाकर रथों की सुव्यवस्था आदि का अवलोकन करते हैं। चतुर्धा देवविग्रहों को अपना आत्मनिवेदन प्रस्तुत करते हैं। उसके उपरांत जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्यसिंहदेवजी अपने राजमहल श्रीनाहर से पालकी में सवार होकर आते हैं और तीनों रथों पर चंदनमिश्रित जल छीडकर छेरापंहरा का अपना परम्परागत पवित्र दावित्व निभाते हैं। रथों को उनके घोडों तथा सारथी के साथ जोडा जाता है। “ जय जगन्नाथ“के जयघोष के साथ रथयात्रा आरंभ होती है। रथ खीचते समय रस्से दो प्रकार के उपयोग में लाये जाते हैं। एक सीधे रस्से तथा दूसरे घुमामवदार रस्से। तीनों रथों में चार-चार रस्से लगे होते हैं जिनको विभिन्न चक्कों के अक्ष से विशेष प्रणाली से लपेटकर और गांठ डालकर बांधा जाता है।
गुण्डीचा मंदिर जाने के रास्ते में भगवान जगन्नाथ रास्ते में अपनी मौसी के हाथों से तैयार पूडपीठा ग्रहण करते हैं। वे सात दिनों तक गुण्डीचा मंदिर में विश्राम करते हैं। विश्वमानवता के प्राण, जगत के नाथ समस्त मानवीय विकारों को दूर करने के लिए और जीवन के शाश्वत मूल्यों को अपने भक्तों को उनके व्यक्तिगत जीवन में अपनाने हेतु ही प्रतिवर्ष अपनी विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा पर आषाढ शुक्ल द्वितीया को निकलते हैं।श्रीमंदिर प्रशासन पुरी से प्राप्त जानकारी के आधार पर 2023 की रथयात्रा से संबंधित सभी तैयारियां श्रीमंदिर प्रशासन की ओर से पूरी कर लीं गईं हैं। वहीं स्थानीय प्रशासन,पुलिस प्रशासन तथा ओडिशा सरकार की ओर से सभी प्रकार की व्यवस्थाएं युद्धस्तर पर चल रहीं हैं।
पूर्वतट रेलवे की ओर से रथयात्रा स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था की जा रही है। रैपिट एक्शन फोर्स के तैनात करने की तैयारी चल रही है। यहीं नहीं , लगभग एक हजार स्वयंसेवी संगठन भी रथयात्रा के दिन पुरी आनेवाले लाखों भक्तों के लिए शीतल जल,अल्पाहार,भोजन,उनके ठहरे,पुरी की विस्तृत जानकारी तथा रथयात्रा से जुडी जानकारियां आदि निःशुल्क उपलब्ध कराने के लिए तैयार हो चुकी हैं। शंखक्षेत्र पुरी की साफ-सफाई,महोदधि स्वर्ण तट की साफ-सफाई का काम भी तीव्र गति से चल रहा है। पुरी के सभी मठों में भक्तों के ठहरहे तथा भजन-पूजन आदि की तैयारियां चल रहीं हैं।इंतजार है 20जून,2023 के आगमन का जिस दिन अपने रथ नंदिघोष रथ पर रथारुढ होकर भगवान जगन्नाथ अपनी पतितपावनी रथयात्रा करेंगे और विश्व के करोडों जगन्नाथ भक्तों को अलग-अलग टेलीविजन चैनलों के सीधे प्रसारण के माध्यम से दर्शन देंगे तथा वैश्विक एकता,मैत्री,सद्भाव,भाईंचारे और शांति का संदेश देंगे।
(लेखक आकाषशवाणी और दूरदर्रशन से रथयात्रा का आँखों देखा हाल प्रसारित करते हैं)