Tuesday, November 26, 2024
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सूडान में गृह युद्ध: संकट से समाधान तक

सूडान राष्ट्रव्यापी गृह युद्ध के गर्त में है. सेना के परस्पर विरोधी शक्तिशाली गुट राजधानी खार्तूम पर क़ब्ज़े की लड़ाई लड़ रहे हैं. इनके बीच टकराव शुरू हुए छह हफ़्ते से ज़्यादा का वक़्त बीत चुका है. इस संघर्ष के नतीजे साफ़-साफ़ दिखाई दे रहे हैं, वो है- एक मानवीय संकट, जिसमें क़रीब हज़ार लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है और तक़रीबन 10 लाख लोग बेघर और विस्थापित हो चुके हैं. ये लोग भोजन, ईंधन, पानी, दवाइयों और बिजली की गंभीर किल्लत का सामना करने को मजबूर हैं.

सूडान भू-सामरिक रूप से काफ़ी अहमियत रखता है, लिहाज़ा अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस देश को बदहाली भरे हालात में नहीं छोड़ सकता. ये मुल्क अरब और अफ़्रीकी जगत के बीच स्थित है.

15 अप्रैल 2023 को सूडानी सशस्त्र बलों (SAF) और वहां के अर्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फ़ोर्सेज़ (RSF) के बीच लड़ाई शुरू हो गई. सुरक्षा सुधारों, ख़ासतौर से RSF का सरकार के सशस्त्र बलों के साथ विलय करने के सवाल पर हफ़्तों से चले आ रहे तनाव और मतभेद के बाद हालात बेक़ाबू हो गए. मौजूदा सत्ता संघर्ष की अगुवाई दो जनरल कर रहे हैं. एक ओर सेना के जनरल अब्देल फ़तेह अल बुरहान हैं तो दूसरी ओर देश के दूसरे नंबर के नेता और RSF के अगुवा जनरल हमदान दगालो हैं, जिन्हें आमतौर पर हेमेदती के नाम से जाना जाता है. ये दोनों एक ज़माने में सहयोगी थे. दोनों ने मिलकर अक्टूबर 2021 में तख़्तापलट की अगुवाई की थी. दरअसल जनता की ताक़त के बूते संचालित विशाल क्रांति के ज़रिए 2019 में पूर्व राष्ट्रपति उमर अल-बशीर को सत्ता से बेदख़ल होना पड़ा था. इसके बाद असैनिक हुकूमत की ओर बदलाव की नाज़ुक शुरुआत हुई थी, जिस पर 2021 के तख़्तापलट ने पानी फेर दिया.

सूडान भू-सामरिक रूप से काफ़ी अहमियत रखता है, लिहाज़ा अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस देश को बदहाली भरे हालात में नहीं छोड़ सकता. ये मुल्क अरब और अफ़्रीकी जगत के बीच स्थित है. लाल सागर के साथ इसकी तटीय रेखा 853 किमी लंबी है और इसी रास्ते से दुनिया के कुल व्यापार के 10 प्रतिशत हिस्से की आवाजाही होती है. यही वो इलाक़ा है जहां रूस पूरी शिद्दत से अपने पांव जमाना चाहता है. ये दो नील नदियों के संगम बिंदु पर स्थित है, जिस पर मिस्र अपनी जल सुरक्षा के लिए निर्भर करता है. सूडान के पास अफ़्रीका के सबसे बड़े स्वर्ण भंडारों में से कुछ मौजूद हैं और इसके आस-पड़ोस के सभी देश आंतरिक संघर्ष और नाज़ुक हालातों के अलग-अलग दौर से गुज़र रहे हैं.

1956 में आज़ादी हासिल करने के बाद से सूडान गृह युद्धों के बदक़िस्मत दौर से गुज़रता आ रहा है. दशकों के संघर्ष और अस्थिरता ने इसे राजकाज चलाने के लिहाज़ से एक मुश्किल क्षेत्र बना दिया है. आज़ादी के बाद से सूडान में 6 बार तख़्तापलट की घटनाएं हो चुकी हैं जबकि 10 बार ऐसी कोशिशों को नाकाम कर दिया गया. इसके पीछे की वजहों में सूडान का विशाल क्षेत्रफल या फिर यहां के निवासियों में नस्ली, भाषाई और कबीलाई स्तर पर मौजूद व्यापक अंतर का हाथ रहा है.


जनरलों की लड़ाई का कारण?
अप्रैल 2019 के लोकप्रिय क्रांति के दौरान उमर अल-बशीर को सत्ता से बेदख़ल कर दिया गया. उसके बाद जनरलों और नागरिकों के एक मुश्किल गठजोड़ ने अगस्त 2019 से अक्टूबर 2021 तक सूडान का राजकाज चलाया. अक्टूबर 2021 में तख़्तापलट की एक और वारदात हुई. सेना और सुरक्षाबलों से सत्ता नागरिकों को सौंपे जाने की मांग को लेकर प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया. इसके बावजूद “नागरिकों की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार” का मुखौटा बहुत जल्द उतर गया. पूर्व प्रधानमंत्री अब्दुल्ला हमदोक और उनकी कैबिनेट को पद से हटाकर गिरफ़्तार कर लिया गया. हालांकि सेना की हिंसक दमनकारी हरकतों के बावजूद नागरिकों की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार की मांग को लेकर जनता का विरोध-प्रदर्शन एक बार फिर शुरू हो गया.

हेमेदती अपने रुख़ पर अड़े हुए हैं और अपने बलों का SAF में विलय करने से इनकार करते आ रहे हैं. ग़ौरतलब है कि रैपिड सपोर्ट फ़ोर्सेज़ में ज़्यादातर कबीलाई और अफ़्रीका के अन्य ग़रीब देशों के विद्रोही लड़ाका समूह शामिल हैं.

दरअसल देश के संसाधनों पर नियंत्रण पाने को लेकर दोनों जनरलों की कभी न मिटने वाली चाह मौजूदा टकराव की जड़ में है. आज़ादी के बाद के सूडानी इतिहास पर नज़र डालें तो हम पाते हैं कि इस दौरान खार्तूम में ज़्यादातर निरंकुश अरब शासकों का ही राज रहा, जो देश की दौलत से मुनाफ़े जुटाने की जुगत में लगे रहे. इनमें से ज़्यादातर दौलत तेल और सोने की शक़्ल में थी. सोने की खदानों (ख़ासतौर से दारफ़ुर में) का संचालन RSF करती है. इससे हासिल राजस्व से हज़ारों सैनिकों का ख़र्च वहन करने में मदद मिलती है. ये सैनिक हेमेदती के मातहत काम करते हैं. हेमेदती के नज़रिए से देखें तो RSF के सेना में विलय करने के प्रस्ताव से उनके स्वतंत्र आर्थिक आधार को ख़तरा पहुंचता है. उनके आर्थिक और सियासी मंसूबे रूसी और अमीराती मदद से संचालित अवैध सोना खनन और व्यापार पर टिके हुए हैं. इसी की बदौलत RSF को सूडानी सशस्त्र बलों के सियासी दायरे में घुसपैठ करने का मौक़ा मिला है.

हेमेदती अपने रुख़ पर अड़े हुए हैं और अपने बलों का SAF में विलय करने से इनकार करते आ रहे हैं. ग़ौरतलब है कि रैपिड सपोर्ट फ़ोर्सेज़ में ज़्यादातर कबीलाई और अफ़्रीका के अन्य ग़रीब देशों के विद्रोही लड़ाका समूह शामिल हैं. हेमेदती RSF का SAF में विलय करने के लिए कम से कम 10 साल का वक़्त मांग रहे हैं, जो सूडानी सेना के रुख़ से उलट है. SAF की मांग इस काम को दो वर्षों में पूरा किए जाने या फिर अंतरिम कालखंड की पूरी मियाद में ख़त्म कर लेने की है. इससे निर्वाचित सरकार को सुचारू रूप से कामकाज संभालने का मौक़ा मिल सकेगा.

SAF और RSF, दोनों के आंतरिक संगठन, साज़ोसामान, जंगी इतिहास और विशिष्टताएं अलग-अलग हैं. अनुमान के मुताबिक SAF में तक़रीबन 2 लाख सक्रिय कर्मी हैं जबकि RSF में क़रीब 70 हज़ार से 1.5 लाख कर्मियों के होने का आकलन है. भले ही SAF ज़मीन पर ज़्यादा गतिशील नहीं है लेकिन ये अफ़्रीकी सेना के हिसाब से पारंपरिक स्वरूप वाला संगठन है. इसके पास टैंक, बख़्तरबंद निजी वाहन और वायु सेना मौजूद है, जो इसे हवाई रूप से श्रेष्ठ बनाती है. SAF अपने ज़्यादातर लड़ाकू विमान, मिसाइल और बख़्तरबंद गाड़ियां चीन, रूस, यूक्रेन और बेलारूस से जुटाती है. बहरहाल, दारफ़ुर में 2004 की हिंसा के बाद संयुक्त राष्ट्र ने सूडान को हथियारों की आपूर्ति पर रोक लगा दी. इससे SAF को हासिल होने वाले हथियारों की आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो गई.

दूसरी ओर, RSF का गठन SAF के विस्तार और उसकी काट के रूप में समान ताक़त वाला सशस्त्र बल तैयार करने के इरादे से किया गया था. इसकी उत्पत्ति जंजावीद लड़ाकों से हुई. इन्हें दारफ़ुर में अल-बशीर के नेतृत्व में अलगाववादी विद्रोह को कुचलने की ज़िम्मेदारी दी गई थी. वक़्त के साथ हेमेदती का दर्जा RSF में ऊंचा होता चला गया और उन्होंने इसका नेतृत्व संभाल लिया. 2015 में वो आधिकारिक रूप से सूडानी राज्यसत्ता के सुरक्षा तंत्र का हिस्सा बन गए. युद्धकला के नज़रिए से RSF एक गतिशील गुरिल्ला संगठन है, जो हल्के वज़न वाले हथियारों और हल्की बख़्तरबंद गाड़ियों का इस्तेमाल करता है. इसे विद्रोही गतिविधियों को कुचलने वाले सशस्त्र बल के तौर पर जाना जाता है. हालांकि रैपिड सपोर्ट फ़ोर्सेज़ को सूडानी सशस्त्र बलों के समान सैन्य प्रशिक्षण हासिल नहीं होता. नतीजतन मोर्चे की सुरक्षा करने या हमलों से अपना बचाव करने को लेकर इसकी हालत मुश्किल हो जाती है. फ़िलहाल दोनों ही पक्षों में भारी गतिरोध बना हुआ है. संघर्ष के मौजूदा चरण में ये बात पूरी तरह से साफ़ है. ना तो SAF और ना ही RSF को अपने प्रतिद्वंदी पर बढ़त हासिल हो पा रही है.

क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाकाफ़ी प्रतिक्रिया
सूडान में जोख़िम भरे हालातों की पहचान करने में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी काफ़ी सुस्त रही है. साथ ही लोकतंत्र की ओर क़दम बढ़ाने में उस मुल्क को बाक़ी दुनिया की ओर से काफ़ी कम मदद पहुंचाई गई है. रस्साकशी में उलझे दोनों ही जनरलों ने टकराव ख़त्म करने की ओर कोई झुकाव नहीं दिखाया है. दोनों में से किसी भी पक्ष ने वार्ताओं के लिए गंभीर होने के स्पष्ट रूप से कोई संकेत नहीं दिए हैं. अफ़्रीकी संघ (AU) ने अपनी ओर से सूडान में हुई हिंसा की निंदा करते हुए मानवतावादी आधार पर तत्काल संघर्षविराम का आह्वान किया है. अमेरिका, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की मध्यस्थता में हुए संघर्षविरामों के बावजूद सूडान में लड़ाइयों का दौर जारी है. नतीजतन सूडान को AU की सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है.

क्षेत्रीय शक्तियों और सूडान के पड़ोसियों ने दो में से एक जनरल के पक्ष में अपने समर्थन का इज़हार किया है. कुछ मामलों में दोनों ही गुटों के लिए समर्थन जताया गया है. सूडान के मसलों में एक लंबे अरसे से दख़ल देता आ रहा मिस्र, और सऊदी अरब SAF और अल-बुरहान की हिमायत कर रहे हैं, जबकि संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और लीबिया के जनरल ख़लीफ़ा हफ़्तार ने RSF को समर्थन दिया है. कई अन्य देश तो अब भी कोई फ़ैसला नहीं ले सके हैं. इथियोपिया के साथ भी सूडान के रिश्ते तनावपूर्ण हैं. अल फ़शागा जैसे क्षेत्रों में भूभाग से जुड़े दावों और ग्रांड इथियोपियन रेनेसां डैम (GERD) को लेकर मतभेद के चलते सूडान और इथियोपिया के रिश्तों में खटास है. यहाँ ये बताना भी अहम है कि सूडान के दारफ़ुर इलाक़े में बढ़ते तनाव के उसके पश्चिमी मोर्चे में फैल जाने का ख़तरा है. इससे लीबिया, चाड और मध्य अफ़्रीकी गणराज्य (CAR), जैसे देशों पर असर पड़ने की आशंका है.

सूडान में जोख़िम भरे हालातों की पहचान करने में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी काफ़ी सुस्त रही है. साथ ही लोकतंत्र की ओर क़दम बढ़ाने में उस मुल्क को बाक़ी दुनिया की ओर से काफ़ी कम मदद पहुंचाई गई है.

रूस और चीन, दोनों के सूडान से भारी-भरकम हित जुड़े हैं. बताया जाता है कि रूस एक सैन्य सौदे को लेकर सूडान से बातचीत कर रहा है. इस सौदे से रूस को लाल सागर के तट पर स्थित पोर्ट सूडान में नौसैनिक सुविधाएं स्थापित करने की छूट मिल जाएगी. यहां से समुद्री जहाज़ों की आवाजाही के कई मार्ग गुज़रते हैं. रूस की निजी सैन्य कंपनी – द वेगनर ग्रुप के ठेकेदारों को सूडानी स्वर्ण भंडारों की सुरक्षा में नियमित रूप से तैनात किया जाता रहा है. पिछले वर्षों में चीन ने भी सूडान में भारी-भरकम निवेश किए हैं, और सूडान में संघर्ष का दौर लंबा खिंचने से उसके आर्थिक हित ख़तरे में पड़ सकते हैं. पिछले कुछ समय से चीन ख़ुद को क्षेत्रीय शांति के लिए एक मध्यस्थ के रूप में पेश करता आ रहा है. इस कड़ी में ईरान और सऊदी अरब के बीच कूटनीतिक रिश्तों की ऐतिहासिक रूप से बहाली हो पाई है. इससे पहले चीन ने जून 2022 में हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका शांति, सुशासन और विकास सम्मेलन का आयोजन किया था. ये इतिहास में अपनी तरह का पहला सम्मेलन था.

सूडान की घटनाओं से विचलित अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस टकराव का टिकाऊ समाधान ढूंढने को लेकर भारी दबाव में है. अमेरिका, फ़्रांस, यूनाइटेड किंगडम और अन्य यूरोपीय देश अपने राजनयिक कर्मचारियों और नागरिकों को सूडान से सुरक्षित बाहर निकालने की जद्दोजहद में लगे हैं. भारत सरकार ने भी सूडान में फंसे अपने नागरिकों को वहां से बाहर निकालने का अभियान शुरू किया. 24 अप्रैल को चालू किए गए इस अभियान को ‘ऑपरेशन कावेरी’ का नाम दिया गया. इस मुहिम को अंजाम देने और नागरिकों को वापस लाने में मदद के लिए भारत ने जेद्दा और पोर्ट सूडान में दो अलग-अलग नियंत्रण केंद्र स्थापित किए. भारत ने अपनी वायु सेना (17 उड़ानों) और नौसेना (भारतीय जहाज़ों द्वारा 5 फेरे लगाए गए) का इस्तेमाल करके तक़रीबन 4000 हिंदुस्तानी नागरिकों को सुरक्षित रूप से वापस लाने में कामयाबी पाई. इतना ही नहीं, भारत ने सूडान को मदद के तौर पर 24,000 किलोग्राम मानवतावादी राहत आपूर्तियां भी पहुंचाई.

इस टकराव का सार्थक और टिकाऊ हल पाने के लिए दोनों प्रतिद्वंदी जनरलों को दो केंद्रीय मसलों पर सहमति बनानी होगी. ये मुद्दे हैं: काफ़ी अर्सा पहले किए गए वादे के मुताबिक नागरिकों को सत्ता सौंपना, और RSF को राष्ट्र की सेना में एकीकृत किए जाने के सवाल का हल निकालना. आगे चलकर संयुक्त राष्ट्र, अफ़्रीकी संघ और हॉर्न और अफ़्रीका के क्षेत्रीय समूह विकास पर अंतर-सरकारी प्राधिकरण (IGAD) की तिकड़ी ही सूडानी संघर्ष को ख़त्म करने के लिए किसी भी प्रकार के मध्यस्थता प्रयासों की अगुवाई करने के लिहाज़ से सबसे बेहतर स्थिति में रहेगी.

अभिषेक मिश्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फ़ेलो हैं.
क्षिप्रा वासुदेव, नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के द सेंटर फ़ॉर अफ़्रीकन स्टडीज़ में पीएचडी रिसर्च स्कॉलर हैं.

साभार-https://www.orfonline.org/hindi/ से

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