Tuesday, November 26, 2024
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सोशल मीडिया पर आदिपुरुष के चिथड़े उड़े

आदिपुरुष फिल्म प्रदर्शित होते ही इसकी फूहड़ता, घटिया संवादों और निर्देशक के मानसिक दिवालियेपन को लेकर सोशल मीडिया पर आम लोगों ने फिल्म के चिथड़े उड़ा दिए हैं।

जिस तरह से #Adipurush फिल्म की समीक्षाएँ आ रही हैं, ये स्पष्ट हो गया है कि न तो फिल्म बनाने वालों की मंशा सही थी और न ही फिल्म की गुणवत्ता में कोई खर्च किया गया है। सारे रुपए एक्टर-प्रोड्यूसर ने आपस में बाँट खाए हैं। रावण का चित्रण खिलजी जैसा दिख रहा हैं। मेघनाद साउथ दिल्ली का कोई टैटू आर्टिस्ट लग रहा है।

भगवान राम को जीसस क्राइस्ट बना दिया गया है। वानर-भालुओं के लुक और गेटअप में बड़ी समस्या है। VFX इतना घटिया है कि जब कंप्यूटर नया-नया आया था तब सामान्य यूजर इस तरह की चीजें बना देते थे। लोग बोल रहे हैं कि ओम राउत ने ‘तानाजी’ भी बनाई थी जो अच्छी थी। लेकिन, इस फिल्म के बाद सैफ अली खान ने क्या कहा था ये याद है क्या? उसने कहा था कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं हुआ करता था। फिर उसी सैफ अली खान को ‘अदिपुरुष’ के लिए ₹16 करोड़ रुपए दिए गए। कहने का अर्थ है कि हिंदूद्रोही कमाते रहें और हम उनकी फंडिंग करते रहें?

कुमकुम सिंह ठाकुर के अनुसार
आदिपुरुष यह ऐसी फिल्म है जिसमें सिर्फ नाम और किरदारों का चयन रामायण से लिया गया है। कहानी पूरी तरह से काल्पनिक रखी गई है।
रावण बना सैफ़ अली खान जो एक चमगादड़ पर उड़ता है। बेचारे के पास पुष्पक विमान भी नहीं है दिखावटीपन इस हद तक ठूंस दिया है कि उसके किरदार में वह मुसलमान जैसा ही…

जो कह रहे हैं कि बच्चे इसे देख कर रामायण की कहानी जानेंगे, आप बताइए कि क्या आपको ये कहानी सीरियलों और फिल्मों से ही पता चली थी? अगर बचपन में परिवार ने रामायण-महाभारत की गाथा बच्चों को नहीं बताई है, राम-कृष्ण में श्रद्धा के बारे में नहीं बताया है – तो फिर ऐसी फिल्में कुछ नहीं कर पाएँगी। उल्टा इसे मदारी का नाच समझ कर बच्चे ताली बजाएँगे और उसी दृष्टि से देखेंगे जैसी नजरों से हॉबिट-रिंग्स सीरीज को देखते हैं।

मनोज मुंतशिर द्वारा लिखे गए डायलॉग्स घटिया हैं, ये ट्रेलर से ही समझ आ गया था। सीता को ‘भारत की बेटी’ बताना, ‘जय श्री राम’ का उद्घोष या फिर भगवा ध्वज की बातें करना, राष्ट्रवादी दौर का फायदा उठाने के लिए इस फिल्म को बनाया गया है। SS राजामौली के बिना #Prabhas अब तक फेल हैं, ‘साहो’ और ‘राधे श्याम’ को देख लीजिए। ‘आदिपुरुष’ का बजट ₹500 करोड़ है, ऐसे में उसे भारत में इतने की ही नेट कमाई करनी होगी सिर्फ एवरेज कहलाने के लिए, हिट-सुपरहिट तो भूल ही जाइए।

जितना इस फिल्म का प्रमोशन किया गया है, उतना मैने आज तक किसी फिल्म का प्रमोशन होते हुए नहीं देखा। अयोध्या में टीजर लॉन्च किया गया। तिरुपति में फिल्म का फाइनल ट्रेलर रिलीज हुआ। मुंबई से लेकर हैदराबाद तक बड़े-बड़े कार्यक्रम किए गए। हनुमान जी के लिए सीट छोड़ने का ऐलान हुआ। राम चरण और रणबीर कपूर से टिकट बँटवा कर उनके फैंस को भी अपनी तरफ खींचने की कोशिश की गई। कुल मिला कर हर वो चीज की गई, जिससे फिल्म सुर्खियों में बनी रहे। मैं तो ये बोल भी नहीं रहा कि बिकनी पहनने वाली ‘ठुमकेश्वरी’ कृति सेनन को माँ सीता का किरदार दिया गया। इसे कारण न माना जाए फिर भी फिल्म बनाने वालों में कहीं कोई श्रद्धा की भावना दिखी नहीं।

पेड ट्वीट्स की बौछार हो रही है फिलहाल, मदारी का नाच आप भी देख लीजिए। बात-बात पर बड़े ब्रांड्स के बॉयकॉट का ऐलान करने वालों को इस फिल्म में कोई समस्या नहीं नजर आ रही। मेरे हिसाब से इसे ईशनिंदा में ही गिना जाना चाहिए। कुछ लोग ‘अपने-अपने राम’ वाली थ्योरी लेकर आए हैं, उनसे बस यही कहूँगा कि वो फिल्म वालों से ऐलान करवा दें कि उन्होंने वाल्मिकी या तुलसीदास को स्रोत नहीं माना है, इंडोनेशिया-मलेशिया वाली कहानी है ये।

आदिपुरुष यह ऐसी फिल्म है जिसमें सिर्फ नाम और किरदारों का चयन रामायण से लिया गया है। कहानी पूरी तरह से काल्पनिक रखी गई है।

रावण बना सैफ़ अली खान जो एक चमगादड़ पर उड़ता है। बेचारे के पास पुष्पक विमान भी नहीं है दिखावटीपन इस हद तक ठूंस दिया है कि उसके किरदार में वह मुसलम!न जैसा ही लग रहा है ब्राह्मण की वेषभूषा भी नहीं मिली बेचारे को पहनने के लिए।

फिल्म के डायरेक्टर ने डायलॉग ऐसे चिपकाए हैं जैसे कोई काल्पनिक कार्टून देख रहा हों हनुमान जी और माता सीता के मिलन पर हनुमान जी हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं लेकिन इस फिल्म में हनुमान जी मोगेम्बो खुश हुआ वाला दृश्य दिखाया गया है।

रावण की लंका जलाते वक्त के डायलॉग भी घटिया है तेल तेरे बाप का आग तेरे बा प की तो जलेगी भी तेरे ही बाप की।

रावण हमेशा जनेऊ धारण करके रखता था और भगवान शिव का परम भक्त था इस लिए ललाट पर त्रिकुंड तिलक लगाकर रखता था। लेकिन इस फिल्म में कभी रावण की जनेऊ गायब हो जाती है तो कभी तिलक गायब हो जाता है।

कुछ मिला कर मूर्ख बना कर पैसा कमाने का प्रोग्राम बनाया हुआ है। अगर सच में कुछ करना है तो इस मूवी को नकार कर उसके टिकट के पैसे से गायों को चारा पानी रख देना पुण्य अर्जित हो जाएगा।

डॉ रमाकान्त लिखते हैं, मनोज मुंतशिर स्तरहीन हैं। वह सामान्य फिल्म/गीत लिख सकते हैं। उनके हाव भाव से उनके बौद्धिक क्षमता का पता चलता है।यज्ञ संवाद को लेकर जैसी मेरी आशंका थी, उससे भी खराब #आदिपुरूष में है। मुझे कुमार विश्वास और मनोज मुंतशिर दोनों पर कभी विश्वास नहीं बना। कादर खान इन सबसे अच्छा थे।

अजीत भारती लिखते हैं, ये फिल्म नहीं भारत का सामूहिक दुर्भाग्य है।

VFX के नाम पर बिना हिलने वाले पेड़, पानी में नाव है, पैर रखने से हिलती नहीं, बैकग्राउंड चलता दिखता है, आधे पानी में बाँस की नाव चलती नहीं। समुद्र के किनारे नारियल के पेड़ पोस्टर की तरह हैं, हवा नहीं चल रही। अशोक वाटिका में चेरी के…

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