27 जून महाराजा रणजीत सिंह की पुण्यतिथि पर )
वे साँवले रंग का नाटे कद के मनुष्य थे। उनकी एक आँख शीतला के प्रकोप से चली गई थी। परंतु यह होते हुए भी वह तेजस्वी थे। आत्मबल का उदाहरण देखना हो तो महाराजा रणजीत सिंह में देखना चाहिए महाराजा रणजीत सिंह जी जीतने बड़े योद्धा था उतने ही बड़े उदार महामानव थे।
उनके जीवन के 3 अलभ्य प्रकरण
1.- एक बार एक कवि उनके दरबार में कविता सुनाना चाहता था।
द्वारपाल ने अंदर जाने देने के लिए शर्त रखी कि तुम्हारी कविता में राजा की एक आँख का जिक्र जरूर हो। (उनकी एक आँख शीतला के प्रकोप से चली गई थी)
अंदर जाकर कवि ने कविता सुनाई –
ओरों की दो दो भली ते केहि के काज
तेरी एक ही आँख मे कोटि आँख की लाज
महाराजा रणजीत सिंह जी ने उसे बहुत पुरस्कार दिया।
2.- एक बार उन्होंने सेना के साथ जंगल में पड़ाव डाला भोजन पकाते समय पता चला कि नमक लाना भूल गए। तब किसी ने कहा कि निकट के गाँव में से जाकर नमक ले आए। जब सैनिक नमक लेकर आए तो महाराजा रणजीत सिंह जी ने पूछा
क्या नमक का मूल्य दे आए ?
सैनिकों ने कहा – नमक का भी क्या मूल्य देना।
तभी महाराजा ने कहा तत्काल नमक का मूल्य दे कर आओ। यदि राजा मुफ्त में नमक लेगा तो उसके सिपाही तो पूरा गाँव ही लूट लेंगे।
3.- एक बार महाराजा कहीं जा रहे थे। तभी उनके माथे पर पत्थर आकार लगा। उनके माथे पर से खून बहने लगा। तभी सैनिक एक बुढ़िया को पकड़ लाए जिसने पत्थर फेंका था। बुढ़िया ने हाथ जो कर कहा कि वह अपने पोते के लिए फल तोड़ने के लिए पत्थर फेंका था जो गलती से उनके माथे पर लग गया।
महाराजा ने उस बुढ़िया को तत्काल कुछ धन दिया। सैनिकों को बहुत आश्चर्य हुआ। तभी महाराजा ने कहा कि एक पेड़ पत्थर मारने पर फल देता है तो मैं क्या पेड़ से भी गया गुजारा हूँ?
महाराजा रणजीत सिंह को कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी, वह अनपढ़ थे। अपने पराक्रम से विरोधियों को धूल चटा देने वाले रणजीत सिंह पर 13 साल की कोमल आयु में प्राण घातक हमला हुआ था। हमला करने वाले हशमत खां को किशोर रणजीत सिंह ने खुद ही मौत की नींद सुला दिया।
बाल्यकाल में चेचक रोग की पीड़ा, एक आँख गवाना, कम उम्र में पिता की मृत्यु का दुःख, अचानक आया कार्यभार का बोझ, खुद पर हत्या का प्रयास इन सब कठिन प्रसंगों ने रणजीत सिंह को किसी मज़बूत फौलाद में तबदील कर दिया। उनके राज में कभी किसी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया गया था। रणजीत सिंह बड़े ही उदारवादी राजा थे, किसी राज्य को जीत कर भी वह अपने शत्रु को बदले में कुछ ना कुछ जागीर दे दिया करते थे ताकि वह अपना जीवन निर्वाह कर सके। वो महाराजा रणजीत सिंह ही थे जिन्होंने हरमंदिर साहिब यानी गोल्डन टेम्पल का जीर्णोधार करवाया था।
महाराजा रणजीत सिंह न गौ मांस खाते थे ना ही अपने दरबारियों को इसकी आज्ञा देते थे। सन 1805 में महाराजा ने भेष बदलकर लार्ड लेक शिविर में जाकर अंग्रेजी सेना की कवायद, गणवेश और सैन्य पद्धति को देखा और अपनी सेना को उसी पद्धति से संगठित करने का निश्चय किया. प्रारम्भ में स्वतन्त्र ढंग से लड़ने वाले सिख सैनिकों को कवायद आदि का ढंग बड़ा हास्यपद लगा और उन्होंने उसका विरोध किया पर महाराजा रणजीत सिंह अपने निर्णय पर दृढ़ रहे।
महान इतिहासकार जे. डी कनिंघम ने कहा था-
” निःसंदेह रणजीत सिंह की उपलब्धियाँ महान थी। उसने पंजाब को एक आपसी लड़ने वाले संघ के रूप में प्राप्त किया तथा एक शक्तिशाली राज्य के रूप में परिवर्तित किया।
महाराजा रंजीत सिंह के झंडे में हिन्दू देवी देवताओं के प्रतीक चित्र थे।