यह दुनिया बुद्धिमान का सम्मान करती है लेकिन चरित्रवान की अनुसरण करती है। सत्य,अहिंसा तथा त्याग के पुजारी महात्मागांधी बुद्धिमान और चरित्रवान दोनों थे।इसीलिए वे जिस रास्ते पर चल देते थे लोग बिना कुछ सोचे-समझे उनके पीछे-पीछ चल देते थे।(चल पडे जिधर दो डगमग में,चल पडे कोटि पग उसी ओर) वह चाहे उनका सत्याग्रह आंदोलन हो,असहयोग आंदोलन हो,नमक सत्याग्रह हो,सविनय अवज्ञा आंदोलन हो अथवा भारत छोडो आंदोलन,गांधीजी के इन सभी आंदोलनों की कामयाबी का पूरा श्रेय उनके व्यक्तिगत जीवन के अन्य गुणों के साथ-साथ उनकी कमाल की बुद्धिमत्ता तथा उनके पारदर्शी चरित्र का था।
स्कूलों में छोटे-छोटे बच्चों को अकबर-बीरबल की बुद्धिमत्ता की कहानी बच्चों को सुनाई जाती है जिससे कि बच्चे बडे होकर बुद्धिमान बन सकें।आदिशंकराचार्य ने अपनी बुद्धिमत्ता और उज्ज्वल चरित्र जैसे गुण के बल पर ही मण्डन मिश्र को हरा दिया था। नचिकेता की बुद्धिमानी को सभी स्वीकार करते हैं।
राम और कृष्ण के बाल्यकाल की बुद्धिमत्ता की बखान रामायण और महाभारत में अमर रुप में वर्णित है।यह भी सच है कि एक बुद्धिमान और चरित्रवान बालक बडा होकर भारत राष्ट्र को विकसित तथा आदर्श चरित्रवाला बना सकता है। जैसेः भारत के स्वर्गीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री(गुदडी के लाल) जिन्होंने जय जवान और जय किसान का नारा दिया और उसे अपनाकर भारत विकास के मार्ग पर अग्रसर है। उन्होंने सरलता और सादगी का संदेश दिया।आज इन्हीं दोनों बातों- बुद्धिमान तथा चरित्रवान बनने की जरुरत सम्पूर्ण भारतवर्ष को है।
आज अगर भारत को विकासशील से विकसित बनाना है तो सबसे पहले भारत के सभी राजनेता,सामान्य नागरिक, शिक्षक, विद्यार्थी, प्रशासक,नौकरशाह,विधिवेत्ता,फिल्म निर्माता, अभिनेता,खिलाडी,सोसलमीडिया तथा पत्रकार आदि को आत्मविश्वासी, सत्यनिष्ठ, ईमानदार, कर्तव्यपरायण के साथ-साथ बुद्धिमान और चरित्रवान बनना होगा।
समाज के प्रति,देश के प्रति और राष्ट्र के प्रति अपने-अपने कर्तव्य को समझना होगा जिससे कि भारत का शक्तिबोध और सौंदर्यबोध सुरक्षित रह सके।इस दिशा में इस बात की खुशी अवश्य है कि भारत की नई शिक्षानीतिः2020 में इन जीवन मूल्यों की हिफाजत की बात केवल कही ही नहीं गई है अपितु उनको शिक्षकों तथा बच्चों को अपनाने हेतु सफल प्रयास भी किया गया है। अब देखना पडेगा कि एनसीइआरटी अपने पाठ्यक्रम में लागू इन शाश्वत मूल्यों को किस प्रकार देश के भारत देश के नौनिहालों,युवाओं और युवतियों के दिल-दिमाग पर व्यावहारिक रुप में लागू कर पाती है। इसके लिए सतत और निरंतर निगरानी और सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है। समय-समय पर शिक्षकों के लिए अभिविन्यास कोर्स की आवश्यकता है। प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
बुद्धिमत्ता को विकसित करने के लिए अधिक से अधिक बोधात्मक तथा व्यावहारिक धरातल पर कथालेखन की आवश्यकता है।हमारे वेदों,पुराणों,उपनिषदों,गीता,रामायण तथा महाभारत में वर्णित सच्चरित्रता से संबंधित समस्त शाश्वत जीवनमूल्यों को देश के नौनहिलों,युवाओं और युवतियों के हृदय में भरने की आवश्यकता है। हमारे देश की आमजनता को इसके लिए सचेत करने की आवश्यकता है।आज के सोसल मीडिया को सीमित करने की आवश्यकता है।बच्चों के लिए मोबाइल के प्रयोग पर यथासंभव पाबंदी लगाने की आवश्यकता है।देश के सूचनातकनीकी से जुडे लोगों,कारोबारीवर्ग,व्यापारीवर्ग और यहां तक कि फुटपाथ के किनारे अपने-अपने कारोबार करनेवाले लोगों को भी इस विषय में गंभीरता के साथ सोचने की आवश्यकता है।
दूसरों को ज्ञान देनेवालों को भी सबसे पहले अपने आपको बुद्धिमान और चरित्रवान बनाने की आवश्यकता है।देश के राष्ट्रीय चरित्र को आज बचाने की आवश्यकता है।यह पुनीत कार्य केवल देश के प्रधानमंत्री अथवा किसी राज्य सरकार के मुख्यमंत्री तक ही सीमित नहीं होना चाहिए अपितु यह जिम्मेदारी भारत के सभी नागरिकों की होनी चाहिए कि वे सबसे पहले बुद्धिमान और चरित्रवान बनें।इस बात को भारत के सभी धर्मगुरुओं तथा सभी धर्मों के माननेवाले लोगों को भी व्यक्तिगत रुप में अपनाने तथा इनका अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है।
भारत के सभी धार्मिक तथा पर्यटनस्थलों पर भी इस संबंध में यथोचित प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है जिससेकि सामूहिक रुप में सभी बुद्धिमान,जिम्मेदार और चरित्रवान बन सकें और विकासशील भारत एक विकसित भारत बन सके जिसमें सभी बुद्धिमान और चरित्रवान हों।
-(लेखक भुवनेश्वर में रहते हैं और अध्यात्मिक व सामाजिक विषयों पर निरंतर लेखन करते हैं)