इन दिनों समान नागरिक संहिता के सम्बन्ध में प्रसार माध्यमों, विशेषकर सोशल मीडिया में कई तरह की बातें चल रही हैं, जिससे जन सामान्य लोग भ्रमित हो रहे हैं. जनजाति समाज भी इसका अपवाद नहीं है, कुछ निहित स्वार्थी लोग भी जनजाति समाज को बरगला रहे हैं. ऐसे में कल्याण आश्रम जनजाति समाज, विशेषकर उनके सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों और शिक्षित वर्ग को सचेत करना चाहता है कि उन्हें किसी के बहकावे में आने की आवश्यकता नहीं है. अभी तो यह भी साफ़ नहीं है कि सरकार क्या करने जा रही है.
यदि जनजाति समाज के लोगों, उनके संगठनों को लगता है कि उनके रूढिगत प्रथाओं-व्यवस्थाओं पर इसके कारण कोई विपरीत प्रभाव पड़ेगा तो उन्हें सीधे विधि आयोग के सम्मुख अपने सरोकार रखने चाहिए. वहां 14 जुलाई तक ऑनलाइन अपना पक्ष रख सकते हैं. विधि आयोग सभी हित-धारकों से विचार-विमर्श के बाद केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट देगा.
उसके बाद ही सरकार कोई बिल संसद में लाएगी. कल्याण आश्रम भी जब ऐसा कोई बिल सामने आयेगा तो उस पर अपने सुझाव या प्रतिक्रिया देगी.
कल्याण आश्रम देश के विधि आयोग से भी अनुरोध करता है कि वह देश के विभिन्न जनजाति क्षेत्रों का दौरा कर जनजाति समाज के प्रमुख लोगों-संस्थाओं से विमर्श कर इस बारे में गहराई से उनके विचार; विवाह, विवाह विच्छेद, दत्तक, उत्तराधिकार जैसे विषयों पर उनकी परंपरागत व्यवस्था समझने का प्रयास करे. उसे जल्दबाजी में अपनी रिपोर्ट नहीं देनी चाहिए. इस संदर्भ में गठित संसदीय समिति के प्रमुख श्री सुशील कुमार मोदी जी की जनजातियों को इस कानून से बाहर रखने की भूमिका का हम स्वागत करते है।
(सत्येन्द्र सिंह)
उपाध्यक्ष,
अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम