तत्कालीन हैदराबाद प्रांत में निजामशाही के दौरान रजाकारों द्वारा हिंदुओं के खिलाफ की गई हिंसा पर आधारित फिल्म रजाकार (‘Razakar- The Silent Genocide of Hyderabad) मूवी का पोस्टर लॉन्च हो गया है। इसे तेलंगाना के पूर्व भाजपा अध्यक्ष बंदी संजय कुमार ने शनिवार (15 जुलाई 2023) को रिलीज किया।
इस पोस्टर में दिखाया गया है कि एक हिंदू को राइफल की आगे लगी चाकू पर मार कर लटका दिया गया है। पोस्टर में यह भी दिखा रहा है कि उसके अगल-बगल घोड़ों पर कुछ लोग खड़े हैं, जो संभवत: रजाकारों के सैनिक हैं।
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फिल्म का पोस्टर रिलीज करने के दौरान करीमनगर के सांसद बंदी संजय कुमार, पूर्व सांसद एपी जितेंद्र रेड्डी, गुडुर नारायण रेड्डी और महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल सी विद्यासागर राव जैसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता मौजूद रहे। फिल्म के स्टारकास्ट भी इस मौके पर मौजूद रहे।
इस फिल्म के निर्माता भाजपा नेता गुडुर नारायण रेड्डी (Gudur Narayan Reddy) हैं। नारायण रेड्डी करीब चार दशक तक कॉन्ग्रेस से जुड़े रहे थे। वे तीन साल पहले ही भाजपा में शामिल हुए हैं। फिल्म को यता सत्यनारायण ने लिखा और निर्देशित किया है। अभिनेत्री वेदिका की भी इसमें भूमिका है। इस फिल्म को हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम में रिलीज करने की योजना है।
कार्यक्रम में बोलते हुए निर्देशक रेड्डी ने कहा कि यह फिल्म धार्मिक संघर्ष पर आधारित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि ना ही इस फिल्म को किसी के बीच असंतोष पैदा करने के लिए बनाया गया है। उन्होंने कहा कि शेख बंदगी, मकदूम मोइनुद्दीन और पत्रकार शोएबुल्ला खान जैसे लोगों का हवाला दिया और कहा कि इन लोगों ने उस समय सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
यता सत्यनारायण ने कहा, “यह मुक्ति के संघर्ष से प्रेरित फिल्म है। यह 800 नायकों की कहानी है। यह वह कहानी है, जिसने हैदराबाद को आजादी दिलाई। नारायण रेड्डी हमेशा मुझसे यह फिल्म करने के लिए कहते रहे हैं। मैंने कहा कि देखते हैं। यह कोई धार्मिक इतिहास नहीं है, यह हमारा इतिहास है। अगर हम रजाकर की फिल्म नहीं देखते हैं, तो हमारे जीवन का कोई मतलब नहीं है।”
महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल विद्यासागर राव ने कहा, “उस समय इसमें 8 जिले थे। महाराष्ट्र में 5 जिले और कर्नाटक के 3 जिले हैदराबाद में शामिल थे। ब्रिटिश सरकार ने सबको मिलाकर एक देश बनाने का फैसला किया तो निज़ाम ने एक स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर दी। निजाम ने दो लाख लोगों की एक मजबूत रजाकारों की सेना बनाई। कई अपराध किए।”
उन्होंने आगे कहा, “हमारे देश को आजादी मिलने के 17 महीने बाद हैदराबाद को आजादी मिली। इस्लाम अलग है और रजाकार अलग हैं। रजाकारों के खिलाफ लड़ने वालों में मुस्लिम भाई भी शामिल थे। मौलाना और तबरेज खान जैसे कई लोगों ने हैदराबाद की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। आने वाली पीढ़ियों को ऐसा इतिहास जानने की जरूरत है। हमें रजाकारों की फिल्म देखनी चाहिए और इसे प्रोत्साहित करना चाहिए।”
फिल्म के निर्माता गुडुरु नारायण रेड्डी ने कहा, “मैंने यह फिल्म अपने दादाजी की प्रेरणा से बनाई है। निजाम के शासनकाल के दौरान रजाकारों के अत्याचार को रोकने वाला कोई नहीं था। जब सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यहाँ सेना भेजी, तब राजवी ने हमारे गाँव में घुसने की कोशिश की। तब मेरे दादाजी ने उसे गाँव में प्रवेश करने से रोक दिया। राजवी और मेरे दादाजी के बीच एक बड़ा वाकयुद्ध हुआ। हमारे कई बुजुर्गों ने मुझे इसके बारे में बताया। मैंने एक भारतीय के रूप में रजाकार नाम की फिल्म बनाई। मैंने किसी का अपमान करने के लिए यह फिल्म नहीं बनाई।”
कौन थे रजाकार
अंग्रेजों के शासनकाल में हैदराबाद के नवाब बहादुर यार जंग ने मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (MIM) नाम की एक पार्टी बनाई थी। उन्होंने रजाकारों की फौज बनाई थी, जिसमें आम मुस्लिम शामिल थे। यह फौज भी नवाब की सेना की ही तरह थी। इस सेना की कमान निजाम के पास ना होकर बहादुर यार जंग के पास थी।
बहादुर यार जंग के बाद रजाकारों की की जिम्मेदारी कासिम रिजवी ने संभाली। इनका मूल मकसद देश की आजादी के बाद हैदराबाद को पाकिस्तान की तरह ही एक इस्लामिक राज्य बनाना था। केएम मुंशी ने अपनी किताब ‘द एंड ऑफ एन इरा’ में लिखा है कि कासिम रिजवी कहता था, “हम महमूद गजनवी की नस्ल के हैं। अगर हमने तय कर लिया तो हम लाल किले पर आसफजाही झंडा फहरा देंगे।”
आजादी की प्रक्रिया के दौरान भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान से विलय को लेकर बातचीत की। हालाँकि, इस प्रस्ताव को ठुकरा कर निजाम ने 3 जून 1947 को फरमान जारी कर हैदराबाद को आजाद मुल्क घोषित कर दिया। कहा जाता है कि हैदराबाद के निजाम को रजाकारों के मुखिया कासिम रिजवी ने भरोसा दिया था कि वह भारतीय सेना का मुकाबला कर सकता है।
हैदराबाद को अलग इस्लामी मुल्क बनाने के रजाकार अत्याचारों की सीमा लाँघ गए। रजाकारों ने बहुसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया। उनका कत्ल किया। हजारों महिलाओं का बलात्कार किया गया। भारत में विलय की जो भी माँग करता, उसे वे रजाकारों में शामिल कट्टरपंथी मुस्लिम निशाना बनाते। इसको लेकर हैदाराबाद में दंगे भड़क उठे और हिंदुओं के लिए जीना मुश्किल होने लगा। रिजवी ने हैदराबाद की सत्ता अपने हाथ में ले ली।
आखिरकार 13 सितंबर 1948 को सरदार पटेल ने हैदराबाद को भारत में मिलाने के लिए ऑपरेशन पोलो की अनुमति दी। यह सैन्य कार्रवाई पाँच दिनों तक चली। इसमें 1373 रजाकार और हैदराबाद रियासत के 807 जवान मारे गए। वहीं, भारतीय सेना के 66 जवान भी वीरगति को प्राप्त हो गए। अंत में सरेंडर करने के बाद हैदराबाद का भारत में विलय हो गया।
इसके बाद रिजवी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लगभग एक दशक तक जेल में रखने के बाद कासिम रिजवी को इस शर्त पर रिहा कर दिया गया कि वह 48 घंटों में पाकिस्तान चला जाएगा। रिजवी को पाकिस्तान ने अपने शरण दे दी थी।