Thursday, November 28, 2024
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प्रभावी भाषण एक शक्ति, साधना और जीवंत संपदा भी है – डॉ.चन्द्रकुमार जैन

राजनांदगांव। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अच्छा बोलने की बढ़ती महत्ता को ध्यान में रखकर नागपुर में एक विशिष्ट प्रसंग में दिग्विजय कालेज के छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण से विभूषित तथा राष्ट्रपति सम्मानित प्राध्यापक डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने यादगार मार्गदर्शन दिया। प्रभावी सम्भाषण से छवि निर्माण विषय पर एकाग्र प्रस्तुतीकरण में डॉ.जैन ने भाषण की अचूक कला का अनोखा परिचय दिया और खुद अपनी शैली के जीवंत प्रवाह की मिसाल पेश कर श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा प्रभावी सम्भाषण एक शक्ति, कला और साधना भी है।
डॉ.जैन ने कहा कि भाषण व्यक्ति के भीतर छिपी एक ऐसी कला है जिसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं जान पाता। एक अच्छा वक्ता सदैव भाषण करने से पूर्व उसकी पूरी तैयारी करता है। एक-एक शब्द चुन-चुनकर बोलता है। शब्दों के महत्व को समझते हुए अपने विचार श्रोताओं के सम्मुख रखता है। जिस विषय पर आप करने वाले हैं उस संदर्भ में विचार संग्रह करना जरूरी है। विचार संग्रहित करने के लिए उस विषय पर पुस्तक, लेख और नवीनतम आंकड़े सभी इकठ्ठे करके उनका अध्ययन करना अति आवश्यक है।
डॉ.जैन ने बताया कि भाषण की विचार व्यवस्था करने का सबसे उत्तम और सरल तरीका है कि विचारों को एकत्रित कर बाद में उसे संक्षिप्त वाक्यों में लिख डालें। इस बात का बेहद ख्याल रखें कि आप जो विचार लिख रहे हैं उनमें सत्यता, एकता, सच्चाई होने के साथ ही वे तर्कशील भी होने चाहिए। याद रखें कि भाषण का प्रारंभ और अंत प्रभावशाली हो। भाषण के समय हमेशा उचित, सहज और शालीन पोशाक ही पहननी चाहिए। प्रभावशाली भाषण के लिए विचार, उनकी समुचित व्यवस्था, भाषा, कंठ-स्वर, उच्चारण, अंग संचालन इत्यादि अति आवश्यक है।
डॉ. जैन ने समझाया कि भाषण देने से पूर्व वक्ता अक्सर घबरा जाता है, उसके शरीर में कंपन होने लगता है जिसके कारण आत्मविश्वास, धैर्य और संयम की कमी आ जाती है। इसके लिए वक्ता को पूरी समझ और विवेक के साथ यह सोचकर मंच पर जाना चाहिए कि सभी श्रोता मुझसे कमजोर है और मैं उनसे अधिक मेधावी हूँ। इससे वक्ता को मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास बना रहता है। वक्ता को मंच तक सहज गति से चलकर जाना चाहिए। यदि मंच पर पाठ-मंच की व्यवस्था है तो उसके पीछे खड़ा होना चाहिए, नहीं है तो मंच के किनारे मध्य में खड़ा होना ठीक है। वक्ता को श्रोता की ओर देखने में कतराना नहीं चाहिए। वक्ता अपने श्रोता की तरफ मुखातिब हो, हर वक्त और हर दिशा में। तभी भाषण का प्रभाव संभव है। अंत में उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए डॉ.जैन को सम्मानित किया गया।

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