सृजनात्मकता और शैक्षणिक सन्दर्भ में निर्देशन की अहम् भूमिका होती है। व्यक्ति स्वानुशासित होकर परिवेशगत परामर्श और निर्देशन से अपनी सृजनात्मकता को विकसित कर आगे बढ़ता चला जाता है। इन्हीं सन्दर्भों को आत्मसात् कर सृजन मूल्यों को संरक्षित और पल्लवित करते सृजनकार शिक्षा और साहित्य के समन्वयक बन कर सामाजिक सन्दर्भों को विकसित कर रहें हैं।
वर्तमान में शिक्षा विभाग में कार्यरत और साहित्य सृजन को समर्पित कोटा शहर के लेखक-शिक्षक की एक बानगी –
डॉ. अतुल चतुर्वेदी ने अपने अनवरत व्यंग्य लेखन और काव्य सृजन से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। आपकी -एक टुकड़ा धुप,कितने खुशबू भरे दिन थे (काव्य संग्रह),गणतंत्र बनाम चेंपा,घोषणाओं का वसंत (व्यंग्य संग्रह) इत्यादि पुस्तकें प्रकाशित है।
कृष्णा कुमारी ने काव्य के साथ हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में अनवरत प्रचुर लेखन करके कला-साहित्य -संस्कृति के सन्दर्भों को गति प्रदान की है।आपकी- मैं पुजारिन हूँ, कितनी बार कहा है तुमसे (कविता संग्रह), तो हम क्या करें(ग़ज़ल संग्रह),जंगल में फाग(बाल गीत), प्रेम है केवल ढाई आखर,नागरिक चेतना(निबंध संग्रह),ज्योतिर्गमय(आलेख),आओ नैनीताल चलें(यात्रा वृत्तांत), स्वप्निल कहानियाँ(कहानी संग्रह) इत्यादि पुस्तकें प्रकाशित है।
बद्री लाल मेहरा ‘दिव्य’ ने राजस्थानी और हिन्दी में अनवरत काव्य सृजन कर काव्य धारा को गति प्रदान की है। आपकी- शहीद की माँ (हिन्दी कविता संग्रह) और म्हारा हिवड़ा रा मोती(राजस्थानी कविता संग्रह) पुस्तकें प्रकाशित हैं।
हलीम आईना ने अनवरत लेखन कर अपनी व्यंग्य कविताओं से व्यंग्य विधा को समृद्ध कर गति प्रदान की है। आपकी-हँसो भी हँसाओ भी चर्चित काव्य- संग्रह है।
अशोक गुप्ता ने शिक्षा के साथ पर्यावरणीय चेतना से सम्बन्धित लेखन से चेतना जागृत की है। आपकी प्रकृति चिंतन(आलेख संग्रह) पुस्तक प्रकाशित है।
प्रेम शास्त्री ने अपने राजस्थानी गीतों के माध्यम से काव्य की धारा को प्रवाहित कर सामाजिक सन्दर्भों को चेतना प्रदान की है। आपकी -जुलमां सूं लड़ जाऊँगी (राजस्थानी काव्य संग्रह) पुस्तक प्रकाशित है।
यही नहीं हाड़ौती अंचल के अनेकानेक शिक्षक-साहित्यकार अपने शैक्षणिक कार्य के साथ साहित्य सृजन करते हुए राष्ट्रीय, सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक परिवेश को संरक्षित कर समृद्ध कर रहे हैं फिर चाहे वह उच्च शिक्षा में हों या माध्यमिक शिक्षा में।
(लेखक कोटा में रहते हैं और समीक्षक व स्तंभकार हैं)