Saturday, November 23, 2024
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डॉ. रमेश चंद्र मीणाः आदिवासियों और दलितों के लिए लेखन से बनाई पहचान

शिक्षण के साथ-साथ साहित्य को भी पल्लवित कर रहे हैं बूंदी के प्रोफेसर और साहित्यकार डॉ. रमेश चंद्र मीणा। हिंदी साहित्य में दलित और आदिवासी आपके लेखन के केंद्र में रहे हैं। आप लेखन के साथ – साथ निरंतर साहित्य में शोध कार्य में लीन रहते हैं। दैनिक जनसत्ता सहित विभिन्न दो दर्जन से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं विभिन्न विषयों पर नियमित प्रकाशित होती हैं। आपने दो दर्जन से अधिक सेमिनारों में अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए हैं। आकाशवाणी केंद्र, कोटा से भी आपकी वार्ताएं प्रसारित होती हैं।

आप नियमित रूप से लेखन में लीन रहते हैं और इसी के परिणाम स्वरूप अब तक आपकी 10 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और 14 संपादित पुस्तकों में आपके लेख प्रकाशित हुए हैं। प्रकाशित पुस्तकों में ‘कोरे कागज ‘ संस्मरण, कागज’ इसी वर्ष 2023 में प्रकाशित हुई है। अन्य पुस्तकों में ‘विकास से परे अंधेरे से घिरे’ ‘संस्मरण’, ‘दलित साहित्य एक पड़ताल’, ‘आदिवासियत’(कहानी संग्रह), ‘ आदिवासी लोक और संस्कृति’, ‘वृद्धो की दुनिया’, उपन्यासों मे आदिवासी भारत’, ‘ आदिवासी दस्तक’, ‘आदिवासी विमर्ष’ और ‘चित्रलेखा: एक मूल्यांकन शामिल हैं। आपके बनासजन, हिंदी कथा साहित्य में आदिवासी संवेदना, आदिवासी कथा साहित्य और विमर्ष, आधुनिक हिंदी साहित्य में दलित चेतना का स्वर, आदिवासी उपन्यास समय और संवेदना, न्याय की अवधारणा में दलित,साक्षात्कारों में आदिवासी, माओवाद,हिंसा और आदिवासी-आज के प्रश्न ,लोकरंग’ एक, आर्यकल्प’(अंबेडकर दर्शन विमर्ष और दलित साहित्य,आदिवासी साहित्य और दलित लेखन में स्त्री चेतना’ आपके प्रमुख आलेख हैं।

आपके लेखन की गुणवत्ता इसी से परिलक्षित होती है कि आपको दिसंबर 2022 में आदिवासी स्टडी सेंटर जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर से से अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया। आपको नवंबर 2017 में क्रांतिधरा मेरठ साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया है।

परिचय-
आदिवासी और दलित पर केंद्रित साहित्य के रचनाकार डॉ.रमेश चंद्र मीणा का जन्म एक जनवरी 1965 में सवाईमाधोपुर के गांव बडौद में पिता मांगी लाल और माता रामप्रसादी के परिवार में हुआ। आपने जे.एन.यू से एम.ए., एमफिल और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आप वर्तमान में बूंदी महाविद्यालय में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर के रूप में सेवारत हैं। आप निरंतर हिंदी साहित्य में शोधकार्य में लीन रहते हैं।
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा

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