Sunday, November 24, 2024
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शिखा अग्रवाल की कविताएँ अपने समय के स्पन्दन को ध्वनित करती है

कोटा में जन्मी, पली, शिक्षित हुई और विवाह कर मुंबई चली शिखा अग्रवाल साहित्य में अपने कदम बढ़ा कर हाड़ोती साहित्य जगत अपनी जन्म भूमि को गौरवान्वित कर रही हैं। ज्यादा समय नहीं बीता जब दिल्ली के “साहित्य चेतना मंच” द्वारा उनकी साझा काव्य संग्रह ” रंगरेज रंग जिंदगी के ” में प्रकाशित चार कविताओं के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस चौथे संकलन में देश की 26 रचनाकारों की 104 कविताओं को प्रकाशित किया गया है।

शिखा ने बताया पता नहीं कैसे कविता लिखने की रुचि जाग्रत हो गई। मैं घर में अपने पिता को लिखते देखती थी। उनके लेख देश की कई पत्र – पत्रिकाओं में छपते थे। शायद इस परिवेश का प्रभाव मेरे मन पर हुआ और मैं कुछ तुकबंदी करने लगी । एक दो खास सहेलियों को दिखा कर खुश हो जाती थी। मेरे विवाह को हुए 15 साल हो गए। इस दौरान मैं विभिन्न विषयों पर आलेख लिखती रही। जब मेरे लेख पत्रों में छपने लगे और दो पुस्तक भी प्रकाशित हो गई तो एक दिन कविताएं लिखने का ख्याल मन में आया। मैंने कोई दो साल पहले जब कविता लिखना शुरू किया तो ” मन दर्पण के प्रतिबिंब” नाम से एक रजिस्टर में संकलन करना शुरू कर दिया। जब भी कविता लिखती उसमें उतार देती थी। जब कुछ कविताएं तैयार हो गई तो सोशल मीडिया पर पोस्ट करना शुरू किया और दिल्ली के साहित्य चेतना मंच से फेसबुक के माध्यम से जुड़ गई। उन्होंने मेरी कविताओं को देख कर मुझे कुछ कविताएं भेजने का आग्रह किया और उनमें से चार कविताओं को अपनी पत्रिका में स्थान दे कर मेरा हौसला बढ़ाया।

अपनी इस प्रथम उपलब्धि से हर्षित और उत्साहित शिखा ने बताया कि वे अब तक 60 कविताएं लिख चुकी हैं जिनमें से कुछ कविताएं राष्ट्रीय हिंदी समाचार पोर्टल और समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं। फेस बुक के विभिन्न काव्य मंचों पर, राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर कविताएं प्रकाशित होने और पाठकों द्वारा की जाने वाली उत्साहवर्धक टिप्पणियों ने मुझे निरंतर प्रेरित किया।

शिखा अग्रवाल का हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार है। उनके लिए वह दिन खुशियां ले कर आया जब उन्हें अचानक सूचना प्राप्त हुई कि राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर द्वारा इनके काव्य संग्रह ” मन दर्पण के प्रतिबिंब ” को 11 हजार रुपए की प्रकाशन सहायता के लिए चयन कर लिया गया है। यह काव्य संग्रह 15 सितंबर को प्रकाशित हो गया है। हिंदी साहित्य में पद्य विधा में यह इनकी प्रथम कृति है। इस काव्य संग्रह की कविताओं पर कोटा के विद्वान कथाकार और समीक्षक विजय जोशी कहते हैं ” सृजन सन्दर्भों को समर्पित कवयित्री शिखा अग्रवाल की कविताएँ अपने समय के स्पन्दन को ध्वनित करती हैं।”

फेसबुक द्वारा काव्य सृजन मंच द्वारा समय – समय पर काव्य सृजन में सृजनात्मक विकास की दृष्टि से कई प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं। विख्यात कवि दुष्यंत जी की प्रसिद्ध कविता की दो पंक्तियां दी गई थी जिसे अपने सृजन कौशल से आगे बढ़ाना था। इस संदर्भ में शिखा का सृजन देखिए…..
एक जंगल है तेरी आंखों में
मैं जहां राह भूल जाता हूं
तू किसी रेल सी गुजरती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूं…!
ईक समंदर है तेरे दिल में
मैं जहां प्रेम का किनारा भूल जाता हूं
तू किसी शिकारे सी गुजरती है
मैं किसी लहर सा हिलौरें मारता हूं…!
इक सुर्ख गुलाब है तेरे गेसुओं में
मैं जहां हर सुगन्धी भूल जाता हूं
तू किसी नज़ारे सी गुजरती है
मैं किसी प्रेमी सा महकता रहता हूं…!
इक किताब है तेरी बातों में
मैं जहां हर अक्षर भूल जाता हूं
तू किसी कुरान सी गुजरती है
मैं किसी क़ाज़ी सा पढ़ता रह जाता हूं…!

अपनी कविताओं में उर्दू शब्दों का प्रयोग करने पर पूछा , तुमने तो उर्दू पढ़ी नहीं फिर इस भाषा का ज्ञान जहां से हुआ ? इन्होंने बताया कि इन शब्दों का प्रयोग करने के लिए करीब 600 शब्दों और उनके हिंदी पर्यायवाची शब्दों का एक शब्दकोश तैयार किया और इसमें नए शब्द जोड़ती रहती हूं। इस प्रकार कई शब्द तो कंठस्थ हो गए हैं और काव्य सृजन करते हुए स्वयं जुबान पर आ जाते हैं।

प्रभा साक्षी का अभिमत
” भारत अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना जा रहा है। भारत की आजादी के लिए बहुत से लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। कविता में कवियत्री ने देशभक्ति को बहुत ढंग से प्रस्तुत किया है कवियत्री ने बताया है कि देशभक्ति से बड़ा कोई धर्म नहीं है। कवियत्री शिखा अग्रवाल ने भारत को जो आजादी मिली है उसको इस कविता के माध्यम बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।” संपादक प्रभा साक्षी, नई दिल्ली की इस टिप्पणी के साथ 15 अगस्त 2023 को प्रकाशित किया। देखिए “शम्मे-वतन का उपवन” कविता की बानगी………
हजारों ख्वाहिशें कुर्बां हुईं,
हजारों जानें फ़ना हुईं,
हजारों नारियां सती हुई,
फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।
बंगाल की लेखनी से स्वर उभरे,
रविंद्र, बंकिम लेखक थे कुछ सरीखे,
जन-गण-मन का उद्घोष था,
वंदे-मातरम् से जब हिंद गूंजा था,
फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।
घर टूटा, शहर छूटा, वतन बंटा,
धरती मां का सीना फटा,
लहू से शहीदों ने इसे जब सींचा,
फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।
अंग्रेजों की करी हमने गुलामी थी,
वंदे-मातरम् के नारों पर,
छलनी हुई पीठ खुदीराम बोस की थी।
भगवत-गीता हाथ में लिए,
सूली पर जब वो चढ़ा,
फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।
नमक के लिए ये हिंद लड़ा,
बिरसा मुंडा लगान के लिए लड़ा,
गांधी जी की चरखा चली,
आंदोलन की ज्वाला जली,
पद यात्राओं का दौर चला,
धरने-अनशन का कारवां चला,
फिर गुलज़ार हुआ शम्मे वतन का उपवन।
केसरी सिंह बारहठ की लेखनी थी,
चेतावनी-री-चुंगटिया रची थी,
जगा मेवाड़ के महाराणा का स्वाभिमान,
त्याग मुगलों का निमंत्रण तोड़ा उनका
अभिमान, कलम बनी जब तलवार,
फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।
हिमाचल बना आजादी का साक्षी,
बर्फीले तूफान में मौत का मंजर चला,
घर- घर रूदन की आवाज़ें थी।
केसरी सिंह के सपूत वीर प्रताप थे महान्,
“मेरी मां रोती है तो रोने दो। मैं अपनी मां को हंसाने के लिए
हजारों माताओं को नहीं रुलाना चाहता।”
गूंज हर तरफ इन शब्दों की थी,
सरहद के टुकड़ों ने आज़ादी नवाज़ी थी।
फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।
कोख की शहादत पर,
धर्म की शहादत पर,
बचपन की शहादत पर,
सिंदूर की शहादत पर,
हिन्द की हर आंख जब खुलकर बही ,
फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का वतन।

पुस्तकें
अर्थ पूर्ण कविताओं के सृजन के साथ – साथ अब ये “बियोंड द स्काई” रजिस्टर में अंग्रेजी भाषा में भी कविताएं लिख रही हैं। साथ ही हिंदी कविता सृजन भी समानांतर चल रहा है। काव्य सृजन से पूर्व “हेल्थ केयर”, “भीलवाड़ा टेक्सटाइल सिटी” और अंग्रेजी भाषा में ” इनक्रेडिबल उदयपुर द बेस्ट हॉलीडे डेस्टिनेशन ” पुस्तकों का लेखन और प्रकाशन कर चुकी हैं। आपने दो अन्य पुस्तकें ” विश्व स्तरीय अजमेर” और अंग्रेजी भाषा में ” ग्लोबल टू लोकल – वर्ल्ड हेरिटेज लिस्टेड विथ यूनेस्को” साझा रूप से लिखी हैं। हाल ही में फैशन पर अंग्रेजी भाषा में आपकी 7 वीं पुस्तक ” “फैशन-एन इंस्टिंक्ट” मुंबई के वीएसआरडी पब्लिशिंग हाउस से सितंबर 23 में प्रकाशित हुई है। आपकी सभी पुस्तकें आप द्वारा किए गए गहन शोध पर आधारित हैं।

आप विविध विषयों पर अब तक 50 से अधिक आलेख लिख चुकी हैं जो देश के विभिन्न समाचार पत्रों और राष्ट्रीय हिंदी समाचार पोर्टल पर प्रकाशित हुए हैं। आप ढाई वर्ष तक कोटा से प्रकाशित पाक्षिक समाचार पत्र ” टुडे आई” की उप संपादक रही हैं। विभिन्न संस्थाओं के लिए आपने कई स्मारिकाओं का प्रकाशन भी किया है। वर्तमान से भीलवाड़ा में भारत विकास परिषद की मासिक गृह पत्रिका ” मंजूलिका” का एक वर्ष से संपादन कर रही हैं।

काव्य मेघदूत मंच की तीन दर्जन कविता प्रतियोगिता में भाग लेने पर प्रशस्ति पत्रों से सम्मानित किया गया। भारत विकास परिषद भीलवाड़ा के अभिरुचि शिविर में सक्रिय समाज सेवा तथा विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजेता रहने पर सम्मानित किया गया। सखी मंडल भीलवाड़ा द्वारा आयोजित नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम रहने पर नकद राशि से सम्मानित किया गया। लघु उद्योग इकाई भीलवाड़ा द्वारा प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।

आप अंतर्राष्ट्रीय काव्य मंच भीलवाड़ा इकाई से सम्बद्ध हो कर मासिक गोष्ठियों में काव्य पाठ करती हैं। आप भीलवाड़ा की भारत विकास परिषद, लघु उद्योग इकाई, लायंस क्लब आदि संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़ी हैं।

परिचय
साहित्य, समाजसेवा और विभिन्न संस्थाओं में सक्रिय शिखा अग्रवाल का जन्म 1 दिसंबर 1980 को कोटा में पिता प्रभात कुमार सिंघल और माता मंजु सिंघल के परिवार में दूसरी संतान के रूप में हुआ। बड़ा भाई सौरभआई.आई.टी.इंजीनियर है। आप ने एक वर्ष उदयपुर में और शेष समस्त शिक्षा अंग्रेजी लिटरेचर में स्नातकोत्तर और बी.एड. की डिग्रियां प्राप्त की। उदयपुर के मीरा कला केंद्र से कत्थक नृत्य में एक वर्ष तक नियमित प्रशिक्षण प्राप्त किया है। कोटा के निजी विद्यालय में स्पोकन इंग्लिश में व्याख्या के रूप में कार्य किया। आप भीलवाड़ा में घर से ही स्पोकन इंग्लिश में कोचिंग करती हैं। साहित्य सृजन के साथ – साथ समाजसेवा में सक्रिय हैं। स्वाध्याय,लेखन,पर्यटन, फोटोग्राफी, नृत्य आपकी अभिरुचि के विषय हैं।

संपर्क
1-एफ -18, ओल्ड हाउडिंग बोर्ड, शास्त्री नगर,
भीलवाड़ा(राज.)
———
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

एक निवेदन

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