Saturday, November 23, 2024
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ऑपरेशन गंगा ः युध्द भूमि में फँसे हजारों छात्र-छात्राओं को सकुशल लाने के सफल अभियान की गौरवगाथा

कोई पुस्तक कैसे एक दस्तावेज बन जाती है इसका जीता जागता प्रमाण है मध्यप्रदेश के सृजनशील आईएएस अधिकारी श्री तरुण पिथोड़े द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘ऑपरेशन गंगा’। यह पुस्तक इसी नाम से अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुई है।

रुस यूक्रेन युध्द शुरु होने के बाद वहाँ फँसे हजारों भारतीयो छात्रों को भारत सरकार ने कैसे निकाला और इस काम में दुनिया भर में बसे भारतीयों, भारत से जुड़े सामाजिक व अध्यात्मिक संगठनों ने किस जीजिविषा से भारतीय छात्रों की सहायता की, उन तमाम किस्सों को पढ़ना एक रोमांचक, खौफनाक और दिलचस्प अनुभव है। ये पुस्तक अगर आप एक सांस में इस पुस्तक को पढ़ें तो ही इसके मर्म को समझ सकते हैं। श्री तरुण पिथोड़े ने एक आईएएस अधिकारी होने के नाते अपने संपर्कों, संबंधों और पहुँच की वजह से दुनिया भर में जाकर ऐसे ऐसे किस्सों को कलमबध्द किया है जो किसी अन्य आम लेखक के बस की बात नहीं। उन्होंने पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता और सजगता के साथ उन घटनाओं को सामने लाने की कोशिश की है जो शायद अखबार और टीवी की खबरों से हमें कभी पता नहीं चल पाती है।

पाँच अध्यायों और 194 पृष्ठों में सिमटी इस पुस्तक का एक एक अंश रोमांचित करता है। इस पुस्तक से ये भी पता चलता है कि सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोग अगर हों तो वे मुसीबत में पड़े लोगों की किसी भी तरह से मदद कर सकते हैं। पुस्तक के बहाने श्री पिथोड़े ने विदेशों में बसे भारतीयों की सफलता की कहानी को भी सामने लाने का प्रपयास किया है कि कैसे बरसों पहले खाली हाथ गए भारतीय आज दुनिया के कई देशों में सफल ही नहीं हैं बल्कि वहाँ की राजनीतिक विचारधारा को भी प्रभावित रखने की हैसियत रखते हैं।

यूक्रेन में चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं को भारत वापस लाने में भारत सरकार के साथ ही स्वामीनारायण संप्रदाय, इस्कॉन, माँ आनंदमयी मिशन, श्री श्री रविशंकरजी के आर्ट ऑफ लिविंग बुध्दिस्ट कॉलेज, गुरुद्वारों से लेकर यूक्रेन और आसपास के देशों में बसे भारतीयों ने जो भूमिका अदा की वह हमारी वसुधैव कुटुंबकम की धारणा को ही प्रतिबिंबित करती है, क्योंकि ये सहायता केवल भारतीय छात्र-छात्राओं को ही नहीं मिली थी बल्कि श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल से लेकर पाकिस्तान तक के छात्र-छात्राओं को सबने भरपूर मदद पहुँचाई। अपनी पुस्तक में श्री पिथोड़े कहते हैं कि पूरी दुनिया में आज भारतीय लोगों ने जो प्रतिष्ठा हासिल की है वह भारत की अध्यात्मिक शक्ति की वजह से है।

यूक्रेन में भारत के 22 हजार छात्र-छात्राएँ चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई कर रहे थे। सबसे बड़ी बात ये है कि ये किसी संपन्न परिवार के बच्चे नहीं बल्कि भारत के आम मध्यमवर्गीय या निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे ते जिनके माता-पिता ने इनको अपनी जमापूँजी और अपनी खेती बाड़ी की जमीन या पुश्तैनी संपत्ति दाँव पर लगाकर पढ़ने भेजा था। लाखों रुपये खर्च करने और अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर आने के बाद इन छात्र-छात्राओं पर क्या गुजरी होगी ये तो एक अलग बात है लेकिन जिस हालात में ये वहाँ से भागने को मजबूर हुए उसका एक एक किस्सा आपको दहला देता है। पाठक को ये एहसास होता है कि जिन छात्रःछात्राओं को वापस लाया जा रहा है वो किसी पर्यटन स्थल से नहीं बल्कि युध्द भूमि से लाया जा रहा है जहाँ चारों ओर अंधकार, बम के धमाके और किसी भी क्षण जान जाने का खतरा है। ऐसी स्थितियों में हजारों छात्रों को कुशलतापूर्वक निकाल लाना कोई मामलू बात नहीं।

भारत सरकार ने अपने पोलैंड, स्लोवाकिया, रोमानिया, माल्डोवा, हंगरी आदि देशों के स्थानीय अधिकारियों से टाई-अप कर छात्रों के लिए फैसिलिटेशन सेंटर उपलब्ध करवाए। ऑपरेशन गंगा भारतीय वायु सेना द्वारा 17 दिनों में 90 से ज्यादा उड़ानों की व्यवस्था की गयी।
पुस्तक में छात्र-छात्राओं से सीधे संवाद कर उनकी राम कहानी को जिस संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया गया है, उससे हमारे देश की सामाजिक और शैक्षणिक व्यवस्था की एक अलग ही तस्वीर सामने आती है।

श्री पिथोड़े ने मात्र छात्र-छात्राओं से ही सीधा संवाद नहीं किया बल्कि उनको लेकर आने वाले विमानों के पॉयलट, एअर होस्टेस, दूतावास के अधिकारियों , विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से लेकर हर उस व्यक्ति से संपर्क किया है जो इन तमाम घटनाओं का गवाह रहा है। यह पुस्तकेक तरह से भारत सरकार के ऑपरेशन गंगा पर एक प्रामाणिक शोधपत्र है।

अगली कड़ी में हम कुछ दिलचस्प किस्सों के माध्यम से जानेंगे कि ये पुस्तक कैसे एक ऐसी दुनिया से हमारा साक्षात्कार कराती है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।

पुस्तक ऑपरेशन गंगा

पृष्ठ 195

कीमत रु. 299

प्रकाशकः ब्लूम्सबरी

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(श्री तरुण पिथोड़े ने इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की है एवँ वे 2009 की बैच के आईएएस अधिकारी हैं। वर्तमान में मध्यप्रदेश नागरिक आपूर्ति निगम, भोपाल में प्रबंध संचालक के रूप में पदस्थ हैं। इसके पूर्व वे मध्य प्रदेश के राजगढ़, सीहोर, बैतूल व भोपाल में कलेक्टर एवँ जिला दंडाधिकारी की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। आपने मोटिवेशन , मनोविज्ञान, सामाजिक मैनेजमेंट पर और कोविड पर भी पुस्तकें लिखी है)

ये पुस्तक अमेजॉन पर इस लिंक पर उपलब्ध है- https://www.amazon.in/-/hi/Tarun-Pithode/dp/9356402531

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