(इन्द्र विद्यावाचस्पति के जन्मदिवस- 9 नवंबर पर विशेष रूप से प्रकाशित)
इन्द्र विद्यावाचस्पति (1889-1960), कुशल पत्रकार, गंभीर विचारक एवं इतिहासवेत्ता थे। वे स्वामी श्रद्धानन्द के पुत्र थे।
इन्द्र विद्यावाचस्पति का जन्म 9 नवम्बर सन् 1889 को पंजाब के जालन्धर जिले के नवां शहर में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई। अध्ययन के समय ही उन्हें सद्धर्म प्रचारक के सम्पादन का मौका मिला। यहीं से उनकी प्रवृति पत्रकारिता की ओर गयी। अपने जीवनकाल में उन्होने विजय, वीर अर्जुन तथा जनसत्ता का सम्पादन किया। ‘विजय’ दिल्ली से प्रकाशित होने वाला पहला हिन्दी समाचार पत्र था। इनका देहावसान २३ अगस्त सन् १९६० को दिल्ली में हुआ।
इन्द्र जी ने शिक्षा तथा साहित्य सृजन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। शिक्षा के क्षेत्र में उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान गुरुकुल कांगड़ी का संचालन एवं मार्गदर्शन है। इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में कार्य करते हुए उन्होने गुरुकुल की उपाधियों को केन्द्र एवं राज्य सरकारों से मान्यता प्रदान कराने का स्तुत्य एवं सफल कार्य किया। गुरुकुल में हिन्दी माध्यम से तकनीकी विषयों की शिक्षण की व्यवस्था करके इन्होने हिन्दी की अमूल्य सेवा की।
कृतियाँ
ये इतिहास के गम्भिर अध्येता थे। अत: इनकी इतिहास-विषयक रचनाएं अत्यन्त प्रामाणिक एवं उच्च श्रेणी की मानी गयीं हैं। ‘भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का उदय और अन्त’, ‘मुगल साम्राज्य का क्षय और उसके कारण’, ‘मराठों का इतिहास’ उनकी सर्वप्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्रितियों में ‘आर्यसमाज का इतिहास’, ‘उपनिषदों की भूमिका’ तथा ‘संस्कृत्ति का प्रवाह’ उल्लेखनीय हैं। ‘शाह आलम की आँखें’ प्रतिनिधि ऐतिहासिक उपन्यास है तो ‘नैपोलियन बोनापार्ट की जीवनी’, ‘महर्षि दयानन्द का जीवन-चरित’ ‘मेरे पिता’ उल्लेखनीय जीवन-ग्रन्थ हैं।
इन्द्र जी का भाषा पर पूरा अधिकार था। इनकी शैली में सहज प्रवाह है। वस्तुस्थिति का मार्मिक चित्रण करने की अद्भुत क्षमता है। इनकी कृतियाँ हिन्दी का गौरव हैं।