भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष श्री सीतासरन शर्मा का कहना है कि संसद व विधानसभाओं का महत्व बनाए रखने से ही संविधान के उद्देश्यों व लोकतंत्र की गरिमा बढ़ेगी। आज संसद में नारेबाजी होती है और सड़कों पर बहस होती है, यह आज की विसंगति है। जबकि संसद में बहस और विमर्श ही हमारे लोकतंत्र का प्राण है।
श्री शर्मा आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित व्याख्यान में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने ‘भारतीय संविधान: नागरिक के दायित्व और अधिकार’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जब धर्म की व्यवस्था में हम परिवर्तन कर सकते हैं, तो समयानुकूल संवैधानिक परिवर्तन भी आवश्यक है, उन्हें टाला नहीं जा सकता है। परिवर्तन जीवन का नियम है। जहाँ तक संविधान का सवाल है तो परिस्थिति एवं सामाजिक परिवर्तन के मद्देनजर अमेरिका में जहाँ 200 वर्षों में 27 संविधान संशोधन हुए हैं, वहीं हमारे देश में आजादी के बाद अभी तक 100 संविधान संशोधन हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि संविधान को संचालित करने वाले योग्य व्यक्ति हों और वह संविधान की मंशा के अनुरूप प्रावधनों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करे। उन्होंने कहा कि आज देश दिशा पकड़ने की ओर अग्रसर है। इसमें युवाओं की महती भूमिका होगी। संविधान में समाजवाद के नाम पर निहित छद्म समाजवाद से हमें बचना होगा। तभी हम बाबा साहब अम्बेडकर की परिकल्पनाओं को मूल रूप से साकार कर पाएँगे।
श्री शर्मा ने कहा कि भारत का संविधान दुनिया में विशिष्ट माना जाता है। डॉ. आम्बेडकर ने कहा था कि संविधान कितना भी अच्छा बना लो यदि उसे चलाने वाले लोग अच्छे नहीं होंगे तो वह चल नहीं सकता है। संविधान में जन आवश्यकताओं एवं बदली हुई परिस्थिति के अनुरूप अनेक परिवर्तन भी किये गये। आपातकाल के दौरान संविधान में ‘सोशलिस्ट’ एवं ‘सेक्यूलर’ शब्द जोड़ा गया जो उचित नहीं है। यह प्रावधान तो संविधान में पहले से ही समाहित था। उन्होंने कहा कि संविधान में हम भारत के लोग, कहा गया है। परन्तु आज ‘हम’ का स्थान ‘एनजीओ’ ने ले लिया है जो ठीक नहीं है। आज ज्यादातर याचिकायें नागरिकों द्वारा नहीं बल्कि ‘एनजीओ’ द्वारा लगाई जा रही हैं। उन्होंने पत्रकारिता के विद्यार्थियों से कहा कि भविष्य में ‘लोकतंत्र का चैथा स्तंभ’ सबसे अधिक शक्तिशाली होगा। आप लोगों को बहुत जिम्मेदारी के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन करना होगा।
समारोह के मुख्य वक्ता हरियाणा एवं पंजाब उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश डॉ. भारत भूषण प्रसून ने कहा कि भारत के संविधान का सम्बन्ध भारतीयों की अंतरात्मा से है। संविधान हमारे जीवन के अंग-अंग से जुड़ा है। संविधान भारतीयों के सपनों को संजोये हुये है। इसे व्यक्ति की आवश्यकता के अनुरूप ढाला गया है। भारतीय संविधान को समझने के लिये हमें संविधान के पीछे छिपे उसके मूल भाव को समझना होगा। न्यायमूर्ति प्रसून ने कहा कि 26 नवंबर, 1949 को भारत के संविधान को अंगीकार किया गया। 1979 से डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी की पहल पर यह दिन कानून दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के बाद यह दिवस संविधान दिवस के रूप में भी मनाये जाने का निर्णय लिया गया है।
उन्होंने बताया कि भारतीयता का भारतीय संविधान के साथ एक अटूट बन्धन है। संविधान निर्माताओं ने संविधान की प्रस्तावना में हम भारत के लोग, उल्लेखित किया। संविधान में इस देश के नागरिकों के दायित्वों को भी उल्लेखित किया गया है और इन दायित्वों के निर्वहन के लिये उसे अधिकार भी देता है। संविधान ही देश के सबसे निचले पायदान पर बैठे व्यक्ति को यह अवसर प्रदान करता है कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया से देश का सर्वोच्च पद हासिल कर सकता है। अंग्रेजों की अवधारणा थी कि भारतीय अपना संविधान नहीं बना सकते हैं और यदि बना भी लें तो उसे चला नहीं सकते हैं। हमारे संविधान निर्माताओं और देश के प्रत्येक नागरिक ने अंग्रेजों के इस दावे को गलत साबित किया। हमारे देश के संविधान के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि हमने विभिन्न देशों के संविधान से अनेक प्रावधानों को लेकर भारत का संविधान बना लिया। संविधान निर्माता डॉ. आम्बेडकर ने कहा कि हमने दुनिया के संविधानों से किन्हीं प्रावधानों को चुराया नहीं है बल्कि उन्हें भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल डालकर अंगीकार किया है। हमारे संविधान का एक अनूठा पहलू लचीलापन है। अमेरिका के संविधान में अब तक न्यूनतम संशोधन हुए हैं जबकि हमारे देश में 100 संशोधन हो चुके हैं। इसके पीछे मूल भाव यह है कि हम समय एवं परिस्थितियों के अनुसार नागरिकों के हित में संविधान में संशोधन करते रहते हैं। संविधान में देश की महिलाओं एवं कमजोर वर्गों को भी संरक्षण देने का प्रावधान किया गया है जो एक अनूठा पहलू है एवं दुनिया के किसी और देश में नहीं है।
अध्यक्षीय संबोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि संविधान देश के नागरिकों को अपनी इच्छानुसार जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता है और जन इच्छाओं के अनुरूप ही संविधान में संशोधन भी किये जाते हैं। जब हमारे पास लिखित संविधान नहीं था तब भी हमारा राष्ट्र किसी न किसी विधान पर चलता था और उस समय प्रकृति के नियम पर चलना ही विधान माना जाता था। संविधान में कई कमियां हो सकती हैं परन्तु उसके बाद भी यह सर्वश्रेष्ठ है। संविधान में किये गये प्रावधानों पर चलकर ही भारत विश्व को नेतृत्व प्रदान करेगा।
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय कुलाधिसचिव श्री लाजपत आहूजा, कुलसचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, वरिष्ठ पत्रकार सर्वश्री सर्वदमन पाठक, शिवहर्ष सुहालका, जी. के. छिब्बर, सरमन नगेले, महेन्द्र गगन, सुरेश गुप्ता, शाकिर नूर, डॉ. रामजी त्रिपाठी, साकेत दुबे सहित विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी, विद्यार्थी एवं नगर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।