Friday, December 27, 2024
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परिस्थितियों के अनुसार संतुलित व्यवहार बनाए रखना ही मानसिक स्वास्थ्य का प्रतीक

जब हम मानसिक स्वास्थ्य की चर्चा करते हैं तो किसी भी व्यक्ति की ऐसी कोई भी स्थिति जिससे हमें महसूस होता है कि उसका व्यवहार असामान्य है। किसी का भी असामान्य व्यवहार जो सामान्य दशा से अलग हो, हम कहते हैं यह व्यक्ति एबनॉर्मल है अथवा इसका बरताव भिन्न प्रकार का है। केवल मानसिक रोगी ही मानसिक सावाथ्य से पीड़ित या कमजोर नहीं होता वरन ऊपर से सामान्य दिखने वाला व्यक्ति भी अंदरूनी तौर पर या अपने असामान्य व्यवहार से मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से अस्वस्थ्य माना जायेगा।

मानसिक स्वास्थ्य जीवन की हर अवस्था में महत्वपूर्ण है, बचपन और किशोरावस्था से लेकर वयस्क तक। अपने जीवन के दौरान, यदि आप मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करते हैं तो आपकी सोच, मनोदशा और व्यवहार प्रभावित हो सकता है। मानसिक स्वास्थ्य में हमारा भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कल्याण शामिल है। यह हमारे सोचने, महसूस करने और कार्य करने के तरीके को प्रभावित करता है और यह निर्धारित करने में मदद करता है कि हम तनाव को कैसे संभालते हैं, दूसरों से कैसे जुड़ते हैं और विकल्प चुनते हैं।

जब कोई व्यक्ति अपने आप को असहाय, अकेला, परेशान, भ्रमित,चिंतित,डरा हुआ, चिड़चिड़ा होनाऔर निराश महसूस करता है यह स्थितियां बीमार मानसिक स्वास्थ्य की ओर संकेत करती हैं। ऐसे ही शरीर में ऊर्जा न होकर निढाल बने रहना, सामान्य गतिविधियों से अलग रहना, किसी भी कार्य में रुचि नहीं होना, दोस्तों अथवा परिवारजनों के होते हुए भी अकेले-अकेले रहना, छोटी – छोटी बातों पर अत्यंत क्रोधित होना या चिल्लाना, किसी बात को लगातार सोचते रहना उनसे बाहर नहीं निकलना, स्वयं की किसी से नुकसान महसूस करना या दूसरे को नुकसान पहुंचाने के विचार, सामान्य से अधिक धूम्रपान, शराब पीना या नशीली वस्तुओं अफीम, गांजा, गुटखा आदि का सेवन करना आदि ऐसे प्रमुख कारक हैं जो अस्वस्थ मानसिक स्थिति को बताते हैं। इन सब कारकों के परिप्रेक्ष में हम मानसिक रोगों के लिए व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक श्रेणियों में वर्गीकृत कर सकते हैं।

खराब शारीरिक स्वास्थ्य जीवन की किसी भी स्थिति में मनुष्य की मन:स्थिति पर विपरीत प्रभाव डालता है। मनोरोग विशेषज्ञों की माने तो इन सब से निराशा, तनाव, अवसाद, बुद्धि और याददस्त में कमी हो जाना आदि की गंभीर जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं और जिसकी परिणीति आत्महत्या करने के साथ – साथ डायबिटीज, हड्डियों के जोड़ों का दर्द, अस्थमा, ह्रदय रोग और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के रूप में होती हैं। समय रहते उचित उपचार नहीं किया जाए तो मनुष्य की स्थिति पागलपन तक पहुंच जाती हैं और कई बार ऐसे कारक मनुष्य को अपराध वृति की और ले जाते हैं।

बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने और उनमें नकारात्मक अथवा निराशा के भाव उत्पन्न नहीं हों इसके लिए जरूरी है की वे अपनी रुचि, पहल और योग्यता के अनुसार कार्य करें। उन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं हो। देखने में आता है कि अविभावक बच्चों की पसंद और योग्यता को नज़र अंदाज़ कर उन पर अनुचित दबाव बना कर अपनी इच्छाओं के अनुसार कार्य करने को बाध्य करते हैं जिससे वे अनावश्यक तनाव में आ जाते हैं। बच्चें अगर उनकी इच्छा के विपरीत चलते हैं तो वे तनाव में आ जाते हैं।

उदहारणः समझने के लिए इसका एक अच्छा उदाहरण मैं स्वयं का देना चाहूंगा। प्रसंग 1972 से 1975 का है जब मैं कक्षा 10 में हाई स्कूल की परीक्षा में गणित विषय में ग्रेस से उत्तीर्ण हुआ। मैं गणित में कमजोर था अतः कला संकाय के विषय लेना चाहता था। मेरे दादा जी ने मेरी योग्यता और इच्छा को दरकिनार कर ग्रेस से पास होने पर भी डॉक्टर बनाने का सपना संजो लिया। लाख मेरे मना करने पर नहीं माने और दबाव डाल कर विज्ञान विषय दिला दिया। परिणाम हुआ कि मैं दो साल गणित और भौतिक शास्त्र विषयों की वजह से दो साल लगातार फेल होता गया। दूसरी बार फेल होने पर इतना तनाव में आ गया की जीवन बेकार लगने लगा और आत्महत्या के विचार मन में आने लगे। जब भी ऐसे विचार आते दोस्तों के पास जा कर भुलाने की कोशिश करता था। अब भी नहीं माने तो मन मार कर तीसरे साल जैसे – तैसे थर्ड डिविजन में हायर सेकेंडरी पास की। इन सब से मैं गहरे तनाव में आ गया और सोचने लगा था मेरा आगे क्या होगा? अब मैने ठान लिया और उनकी एक न सुनी और बीए में प्रवेश ले लिया परिणाम मैं गुड सेकंड डिविजन से उत्तीर्ण हो गया। दादा जी समय – समय पर ताने मारते रहते थे डॉक्टर बन जाता तो अच्छा रहता।

बीए पास करने के बाद मेरा मन पढ़ाई से उछट गया और मैंने जयपुर में एक निजी कंपनी में नौकरी कर ली। पता नहीं वहां कैसे सेठ जी से प्रभावित हुआ और उनकी प्रेरणा से स्वयं पाठी के रूप में रुचि होने से इतिहास विषय में नौकरी करते हुए राजस्थान विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री प्रात कर अपने असफल दो सालों की भरपाई की। बाद में जनसंपर्क विभाग में नौकरी करते हुए इतिहास में ही कोटा खुला विश्विद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि भी प्राप्त करने में सफल हुआ।

मेरा यह दृष्टांत उन अविभावकों की आंखें खोलने को पर्याप्त होगा जो बच्चों की रुचि और योग्यता का उचित आकलन नहीं कर केवल अपनी इच्छा को सर्वोपरि रखते हैं। परिणाम बच्चें कई प्रकार के तनाव में आ जाते हैं और तनाव का भार उनमें इस हद तक निराशा और हताशा में बदल जाता है कि वे आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। फिर ऐसे अविभावकों के पास जीवनभर पछतावे के अलावा कुछ नहीं रहता है।

मानसिक स्वास्थ्य दुरुस्त रहे जरूरी है माता – पिता और अविभावक अपने बच्चों पर नज़र रखे, किसी समस्या पर वात्सल्य भाव से खुल कर बात करें, बच्चों के मनोरंजन पर ध्यान देवें, समस्या होने पर मनोरोग चिकित्सक को समय रहते दिखाएं और परामर्श के मुताबिक इलाज कराएं। बच्चों को पूरा प्रेम, स्नेह दें, उनके लिए समय जरूर निकाले और समय – समय पर उनकी गतिविधियों पर चर्चा भी करें। बच्चों को कभी भी कठोर नियंत्रण में नहीं रखे उन्हें आज़ादी से बिना दबाव के काम करने दें परन्तु उनकी गतिविधियों पर नज़र भी रखे। बच्चों को पोष्टिक स्वादिष्ट भोजन दें और शुरू से ही व्यायाम और योग करने, प्रातः कालीन भ्रमण पर जाने की आदतों का विकास कर उन्हें इनका महत्व बताएं और अच्छे संस्कार देवें। महत्वपूर्ण यह भी है कि कभी भी बच्चों के सामने आपस में झगड़े या ऊंची आवाज़ में बातें नहीं करें।

हमें अच्छा मानसिक स्वास्थ्य और संतुलन बनाए रखने के लिए हमेशा खुश रहने, तनाव मुक्त जीवन जीने, अच्छे विचारशील लोगों की संगति, अच्छा साहित्य पढ़ने, व्यायाम और योग को जीवन में स्थान देने, नशा मुक्त जीवन शैली आदि को अपनाना चाहिए । समस्या होने पर ओझा, स्यानों, झाड़ फूंक करने वालों के चक्कर में न पड कर मनोरोग विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क कर उचित उपचार करना चाहिए।

(लेखक पत्रकार हैं और कोटा में रहते हैं।)

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