(स्मृतिशेष) आचार्य श्री ज्ञानेश्वरार्य
एक शंका प्रायः यह भी लोगों के मन में आती है कि जो स्वामी दयानन्द जी ने पंचमहायज्ञ विधि में, संस्कारविधि में जो-जो मंत्र लिखे हैं उन्हीं के माध्यम से ईश्वर ध्यान हो का सकता है अन्य किन्ही मंत्रों से ईश्वर का ध्यान नहीं हो सकता क्या यह सत्य है? इसके विषय में उत्तर ये है कि ऐसी बात नहीं है कि उन्हीं मंत्रों के माध्यम से ही ईश्वर का ध्यान हो सकता है। हम वेद के किसी अन्य मंत्र से भी ईश्वर की उपासना, ध्यान कर सकते हैं। इतनी बात अवश्य है कि उन मंत्रों के अंदर ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव का वर्णन होना चाहिए। ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना विषय होने चाहिए। न केवल वेदमंत्र अपितु ऋषियों के बनाए ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों में जो श्लोक हैं उन श्लोकों के माध्यम से भी ईश्वर की उपासना कर सकते हैं। दर्शन आदि में ऋषियों द्वारा जो सूत्र बनाये हैं, उनके माध्यम से भी उपासना कर सकते हैं। ऋषियों ने ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव की व्याख्या करते हुए जिन वाक्यों की रचना की है, जो वेद मंत्रों के भाष्य किए हैं, सूत्रों के भाष्य किए हैं, उन भाष्यों के वाक्यों से भी ईश्वर की उपासना कर सकते हैं।
अर्थात् हम किसी भी सामान्य शब्द से भी ईश्वर की प्रार्थना-उपासना कर सकते हैं शर्त एक है मंत्रों में, उन श्लोकों में, वाक्यों में, शब्दों में, ईश्वर के गुण-कर्म- स्वभाव का वर्णन आता हो। कोई भी मंत्र, कोई भी वाक्य, कोई भी सूत्र, कोई भी श्लोक ईश्वर कैसा है? किस प्रकार के गुण वाला है? किस प्रकार के कर्मों को करता है? किस प्रकार के स्वभाव वाला है? आदि विषयों को यदि बताता है तो उस मंत्र, सूत्र, श्लोक, वाक्य, शब्द से हम ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना कर सकते हैं।
जो व्यक्ति मंत्र भी नहीं जानता है, श्लोक भी नहीं जानता है, सूत्र भी नहीं जानता है, संस्कृत भी नहीं जानता है, ऋषियों के वाक्यों को भी नहीं जानता है, कोई अच्छे संस्कृत का शब्द उसके पास नहीं हैं तो उसका भी उपाय है कि विद्वानों के, भक्तों के बनाए जो भजन, गीत हैं उन भजनों के माध्यम से भी ईश्वर का ध्यान कर सकता है। ध्यान के लिए एकाग्रता व समर्पण आवश्यक है। यदि हमारा समर्पण ईश्वर के प्रति है और हम एकाग्र है, उसके प्रति प्रेम है, तो ईश्वर का ध्यान भजन से भी कर सकते हैं और गीत से भी कर सकते हैं।
उपासना हेतु मंत्र चयन
जिन मन्त्रों का चयन ऋषियों ने ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना के लिए किया है उन मन्त्रों में ईश्वर की उपासना कैसे करनी चाहिए? क्या-क्या माँगना चाहिए? हमको क्या-क्या अपेक्षा है? वो सारी बातें उन मंत्रों में निहित हैं। शरीर के विषय में, मन के विषय में, आत्मा के विषय में जो-जो हमारी अपेक्षाएं हैं। हमें क्या चाहिए? ईश्वर क्या दे सकता है? ये सारी बातें इन मंत्रों में सूत्र रूप में बताया गया है।
ईश्वर कैसा है? उसका गुण-कर्म-स्वभाव कैसा है? हम कैसे ईश्वर को प्राप्त कर सकते है? ईश्वर की उपासना करने से क्या लाभ होता है? क्या महत्व, उपयोगिता है? ईश्वर की उपासना से क्या हमारी प्रयोजन की सिद्धि होती है? ये सारी बातें जितनी सूक्ष्मता से, सरलता से, संक्षेप से इन मंत्रों में बतायी गयी है उतनी और अन्य मंत्रों में नहीं मिलती हैं।
इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह उन मंत्रों के से ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना करें। क्योंकि ऋषि लोग बुद्धिमान थे उन्होंने विशेष मंत्रों का चयन किया, ऐसे वैसे सामान्य मंत्रों को नहीं ले लिया। फिर भी प्रायः देखने में आता है एक ही एक प्रकार के मंत्रों का उच्चारण करने से व्यक्ति ऊब जाता है जैसे कि एक-एक प्रकार का भोजन करने से, एक-एक प्रकार के वस्त्र पहनने से व्यक्ति ऊब जाता है, ऐसे ही एक ही एक प्रकार के मंत्रों से भी ऊब जाता है। इसमें यह अवकाश है कि हम और भी अनेक अन्य प्रकार के मंत्रों को ले कर, जिसमें ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव अच्छी प्रकार से बताये गये हों और उन मन्त्रों में यह भी बताया गया हो कि उपासना के क्या लाभ क्या हैं? उन मंत्रों के माध्यम से भी ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना की जा सकती है, ऐसा कोई अनिवार्य नियम नहीं है कि केवल संस्कार विधि या पंचमहायज्ञ पुस्तक में बताये गये मंत्रों से ही ईश्वर का ध्यान हो सकता है अन्य मंत्रों, सूत्रों, श्लोकों, वाक्यों या शब्दों से नहीं हो सकती।
(स्रोत : निराकार ईश्वर की उपासना, पृ. 29-32)