राजनांदगांव। संस्कारधानी के सुविज्ञ वक्ता, साहित्यकार, समाजसेवी और दिग्विजय महाविद्यालय के राष्ट्रपति सम्मानित प्राध्यापक डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने महाराष्ट्र में गरिमामय आयोजन में हुई व्याख्यानमाला की दूसरी कड़ी में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के निज सचिव की प्रभावी भूमिका अदा कर चुके, भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी श्री सुधीर कोचर के साथ अतिथि वक्ता के रूप में आमंत्रण पर स्मरणीय व्याख्यान दिया। डॉ.जैन ने ‘प्रार्थना का आधार, संस्कार और लोक व्यवहार’ और श्री कोचर ने ‘वाट्स अप की जनरेशन को महावीर का इन्विटेशन’ जैसे रोचक और दिशा दर्शक विषयों पर पर अपने-अपने उद्गार व्यक्त किये।
मरुधर ज्योति परम विदुषी साध्वी मणिप्रभा श्रीजी मा.सा. की विदुषी शिष्या डॉ. हेमप्रज्ञा श्रीजी मा.सा. के प्रेरक सान्निध्य में आयोजित महोत्सव में डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कहा कि संग्रहण में नहीं, विसर्जन में जीवन की सार्थकता है। ज़िंदगी को चीज़ों की प्रतीक्षा में जीने और प्रार्थना में होने में बड़ा अंतर है। हम समझें कि प्रार्थना याचना नहीं है, आत्मा की पुकार है, वह सही माने में अपने अंतरतम से जुड़ना है। प्रार्थना शब्दों का दोहराव मात्र नहीं, परम तत्व और सत्य के साथ संवाद का राजमार्ग है। प्रार्थना धरती के गर्भ से जन्म लेती और निरंतर प्रकाश की तरफ जाती जागृत चेतना का दूसरा नाम है।
डॉ.जैन ने कहा कि अपनी छोटी-छोटी निर्बलताओं में हताश नहीं होना, दूसरों से अपनी की उच्चतर शक्ति और सत्ता देखकर कभी घमंड नहीं करना बल्कि अपनी कमी या निर्बलता को दूर करने का सतत प्रयत्न करना ही सच्चा संस्कारी होने का परिचय देना है। हम कोशिश करें कि सुख के दिनों में स्वार्थ की दीवारें खडी न हों और दुःख के दिनों में भी परमार्थ का साथ न छूटे। दुनिया से जो मिले उसे कृतज्ञ भाव से ग्रहण करें और साँझ ढले तब स्वयं से पूछें कि आज किसी को आनंद का क्षण दिया या नहीं ?
अंत में डॉ.जैन ने कहा कि दुनिया में सब कुछ मेरा है, ऐसा मानकर जीवन को स्वीकार करना और मेरा कुछ भी नही, यह मानकर मृत्यु के लिए तैयार रहना ही लोक व्यवहार में सफलता का सही आधार है। आपसी संबंधों में पहले दूसरों को समझने की कोशिश हो फिर खुद को समझे जाने की तो बात बन जाएगी। लोक व्यवहार में सफलता के लिए सदा याद रखना होगा कि प्रभावित होना ही दूसरों को प्रभावित कर सकने की कुंजी है। यदि आप चाहते हैं की लोग आप पर विश्वास करें तो बस इतना ही करना होगा कि आप विश्वास के योग्य बनें। लोक व्यवहार में निपुणता के बगैर मिली लोक प्रतिष्ठा ज्यादा टिकती नहीं और लोक व्यवहार के दम पर मिली प्रतिष्ठा कभी डिगती नहीं।
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संग्रहण में नहीं, विसर्जन में है जीवन की सार्थकता – डॉ. जैन
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