सोनकच्छ। मध्य प्रदेश की सोनकच्छ तहसील का गंधर्वपुरी गांव अपने पास के ऐतिहासिक और पुरातात्विक विरासतें सहजे हुए है यहां पाषाण प्रतिमाओं और कलाकृतियों का संग्रहालय है गंधर्वपुरी के हर घर की दीवार, खेत, सीढ़ियों में भग्नावेश पाए गए हैं, पर्यटन की दृष्टि से भी गन्धर्वपुरी विशेष स्थान रखता है, विशेष देखरेख के अभाव में इन प्रतिभाओं को नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है खुले संग्रहालय में वर्षा ऋतु में दो-दो फीट पानी भर जाता है जिससे मूर्तियों का क्षरण होता रहता है।
इसे सहेजने की आवश्यकता है, श्री राष्ट्रीय जैन प्राच्यविद्या अनुसंधान संगठन द्वारा आयोजित संगोष्ठी मे पुरातत्व एवं रसायन विशेषज्ञ श्री प्रवीण श्रीवास्तव ने अपने विचार व्यक्त किये, मन्दसौर निवासी इतिहासकार एवं लिपि विशेषज्ञ श्री कैलाश पाण्डे ने कहा कि हड़प्पा मोहरों में पाए जाने वाला जेबू कुबड़ वाला बैल जैन तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ से जुड़ा हुआ है मोहरों पर पाए जाने वाले स्वास्तिक और श्रीवत्स नाम की गांठ छबियां सभी तीर्थंकरों से जुड़ी है शेर और घोड़ा वैदिक ग्रन्थों और जैन तीर्थंकरों के प्रतीकों की सूची में पाए जाते हैं।
जैन अपनी स्वच्छता और पवित्रता की भावना के लिए जाने जाते हैं वह हड़प्पा के शहरों में पानी की टंकियां और एक बहुत ही परिष्कृत जल निकासी प्रणाली के साथ भी पाए गए, यह सभी हड़प्पा पर जैन प्रभाव होने के पक्ष में परिभाषित करते हैं।
संगोष्ठी मे वास्तुविद् देवेन्द्र सिंघई, ज्योतिषाचार्य एम के जैन एवं लेखक महेन्द्र जैन मनुज ने भी विचार व्यक्त करते हुए कहा कि श्री राष्ट्रीय जैन प्राच्यविद्या अनुसंधान संगठन के माध्यम से गन्धर्वपुरी के पुरातत्व अवशेषों को सहेजने की योजना बनाकर क्रमबद्ध विकास किया जायेगा एवं शीघ्र ही हड़प्पा जैन संस्कृति पर स्वर्गीय कैलाशजी सिंघई द्वारा किये गये अनुसंधान पर शोध ग्रन्थ का प्रकाशन होगा, अतिथियों का सम्मान श्री पंकज जैन एवं श्रीमती नीलू जैन ने किया संगोष्ठी का संचालन श्रीमती इन्दु जैन ने किया एवं पलक जैन ने आभार माना।