सूर्योपासना का सबसे बड़ा पर्व मकर संकृंति भारत में विविध परम्पराओं के साथ हर्षोल्हास से मनाया जाता है। उत्तर भारत के राज्यों में पवित्र नदियों में स्नान कर तिल, गुड, खिचड़ी, उड़द,चावल,वस्त्र दान देने परंपरा है। तमिनाडु में पोंगल,असम में बिहू के रूप में, बिहार में खिचड़ी के रूप में मनाने की परम्पराएँ हैं। इस पर्व पर दान का विशेष महत्व है। नेपाल में भी इस पर्व को बड़े चाव से मनाया जाता है। वहां का थारु समुदाय का यह विशेष पर्व है।
इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आता है अतः कहीं-कहीँ इसे उत्तरायणी भी कहा जाता है। बताया जाता है इस दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चल कर कपिल मुनि के आश्रम से हो कर सागर में उनसे मिली थी एवम् भीष्मपितामह ने अपनी देह त्याग के लिए मकर संक्रांति के दिन का चयन किया था। पश्चिमी बंगाल में गंगा सागर स्नान का बड़ा महात्म्य है।
परंपरा से प्रतिदिन सूर्य को जल से अर्घ्य देने की प्राचीन परंपरा निरन्तर चली आ रही हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव प्रत्यक्ष रूप से दर्शन देने वाले देवता हैं। वेदों में सूर्य का उल्लेख विश्व की आत्मा और ईश्वर के नेत्र के रूप में किया गया है। सूर्य की पूजा से जीवनशक्ति, मानसिक शांति, ऊर्जा और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती हैं। यही वजह है कि लोग उगते हुए सूर्य को देखना शुभ मानते हैं और सूर्य को अर्घ्य देते हैं। मान्यता है कि रविवार के दिन सूर्य देव का व्रत रखने से सभी इच्छाएं पूरी होती है।
वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है, कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी।
रामायण में भी इस बात का जिक्र है कि भगवान राम ने लंका के लिए सेतु निर्माण से पहले सूर्य देव की आराधना की थी। भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब भी सूर्य की उपासना करके ही कुष्ठ रोग से मुक्ति पाई थी। वैदिक साहित्य के साथ-साथ आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है। आज तो सूर्य बिजली उत्पादन करने के विशाल श्रोत के रूप में देखा जा रहा है।
समाज में जब मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो सूर्य की मूर्ति के रूप में पूजा प्रचलित हुई। इसी कारण भारत में सूर्य देव के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर पाये जाते हैं। भारत के सूर्य मन्दिरों में उलार्क सूर्य मंदिर, कोणार्क सूर्य मंदिर, मोढ़ेरा सूर्य मंदिर, कटारमल सूर्य मन्दिर, रणकपुर सूर्य मंदिर, सूर्य पहर मंदिर, सूर्य मंदिर, प्रतापगढ़, दक्षिणार्क सूर्य मंदिर, औंगारी सूर्य मंदिर, बेलार्कसूर्य मंदिर, सूर्य मंदिर, हंडिया, सूर्य मंदिर, गया, सूर्य मंदिर, महोबा, रहली का सूर्य मंदिर, सूर्य मंदिर, झालरापाटन, सूर्य मंदिर, रांची, सूर्य मंदिर, जम्मू, मार्तंड मंदिर, कश्मीर एवं सूर्य मंदिर, कंदाहा आदि शामिल हैं।
जानिए भारत के कुछ प्रमुख सूर्य मन्दिरों के बारे में….
कोणार्क का सूर्य मंदिर
ओडिशा में भुवनेश्वर के समीप कोणार्क का मंदिर न केवल अपनी वास्तुकलात्मक भव्यता के लिए बल्कि शिल्पकला की बारीकी के लिए प्रसिद्ध है। यह कलिंग वास्तुकला का उच्चतम बिन्दु है जो भव्यता, उल्लास और जीवन के सभी पक्षों का अनोखा ताल मेल प्रदर्शित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किया गया है और इसका निर्माण 1250 ई. में पूर्वी गंगा राजा नरसिंह देव प्रथम के कार्यकाल में किया गया था। इसमें कोणार्क सूर्य मंदिर के दोनों और 12 पहियों की दो कतारें है। इनके बारे में कुछ लोगों का मत है कि 24 पहिए एक दिन में 24 घण्टों का प्रतीक है, जबकि कुछ का कहना है कि ये 12 माह का प्रतीक हैं। यहां स्थित सात अश्व सप्ताह के सात दिन दर्शाते हैं। समुद्री यात्रा करने वाले लोग एक समय इसे ब्लैक पगोडा कहते थे, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह जहाजों को किनारे की ओर आकर्षित करता था और उनका नाश कर देता था।
झालरापाटन का सूर्य मंदिर
राजस्थान में झालरापाटन का सूर्य मंदिर यहाँ के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह मंदिर अपनी प्राचीनता और स्थापत्य वैभव के कारण कोणार्क के सूर्य मंदिर और ग्वालियर के श्विवस्वान मंदिर का स्मरण कराता है। शिल्प सौन्दर्य की दृष्टि से मंदिर की बाहरी व भीतरी मूर्तियाँ वास्तुकला देखते ही बनती है । मंदिर का ऊर्घ्वमुखी कलात्मक अष्टदल कमल अत्यन्त सुन्दर जीवंत और आकर्षक है। शिखरों के कलश और गुम्बज अत्यन्त मनमोहक है। मंदिर का निर्माण नवीं सदी में हुआ था। यह मंदिर अपनी प्राचीनता और स्थापत्य वैभव के कारण प्रसिद्ध है। कर्नल जेम्स टॉड ने इस मंदिर को चार भूजा (चतुर्भज) मंदिर माना है। वर्तमान में मंदिर के गर्भग्रह में चतुर्भज नारायण की मूर्ति प्रतिष्ठित है।
मोढ़ेरा का सूर्य मंदिर
यह मंदिर अहमदाबाद से लगभग 102 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे भारत के तीन प्रसिद्ध प्राचीनतम सूर्य मंदिरों में से एक माना गया है। इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि पूरे मंदिर के निर्माण में जुड़ाई के लिए कहीं भी चूने का उपयोग नहीं किया गया है। ईरानी शैली में निर्मित इस मंदिर को भीमदेव ने तीन हिस्सों में बनवाया था। पहला हिस्सा गर्भगृह, दूसरा सभामंडप और तीसरा सूर्य कुण्ड है। ये मंदिर गुजरात के मोढ़ेरा में स्थित है। मोढ़ेरा मेहसाना से 25 किमी. की दूरी पर है।
लोहार्गल सूर्य मंदिर
यह मंदिर राजस्थान के झुंझुनू जिले में स्थित है। यहां मंदिर के सामने एक प्राचीनतम पवित्र सूर्य कुण्ड बना हुआ है। मान्यता है की यहा स्नान के बाद ही पांडवो को ब्रहम हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी।
मार्तंड का सूर्य मंदिर
मार्तण्ड सूर्य मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के अनंतनाग नगर में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। मार्तण्ड का यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। यहाँ पर सूर्य की पहली किरण के साथ ही मंदिर में पूजा अर्चना का दौर शुरू हो जाता है। मंदिर की उत्तरी दिशा में सुन्दर पर्वतमाला है। यह मंदिर विश्व के सुंदर मंदिरों की श्रेणी में भी अपना स्थान बनाए हुए है।
मार्तंड मंदिर प्रतिरूप सूर्य मंदिर
दक्षिण कश्मीर के मार्तण्ड के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर के प्रतिरूप का सूर्य मंदिर जम्मू में भी बनाया गया है। मंदिर मुख्यतरू तीन हिस्सों में बना है। पहले हिस्से में भगवान सूर्य रथ पर सवार हैं जिसे सात घोड़े खींच रहे हैं। दूसरे हिस्से में भगवान शिव का परिवार दुर्गा गणेश कार्तिकेय पार्वती और शिव की प्रतिमा है और तीसरे हिस्से में यज्ञशाला है।
औंगारी का सूर्य मंदिर
नालंदा का प्रसिद्ध सूर्य धाम औंगारी और बडगांव के सूर्य मंदिर देश भर में प्रसिद्ध हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां के सूर्य तालाब में स्नान कर मंदिर में पूजा करने से कुष्ठ रोग सहित कई असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। प्रचलित मान्यताओं के कारण यहां छठ व्रत त्यौहार करने बिहार के कोने-कोने से ही नहीं, बल्कि देश भर के श्रद्धालु यहां आते हैं। लोग यहां तम्बू लगा कर सूर्य उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ संपन्न करते हैं। कहते है कि भगवान कृष्ण के वंशज साम्ब कुष्ठ रोग से पीड़ित था। इसलिए उसने 12 जगहों पर भव्य सूर्य मन्दिर बनवाए थे और भगवान सूर्य की आराधना की थी। ऐसा कहा जाता है तब साम्ब को कुष्ठ से मुक्ति मिली थी। उन्ही 12 मन्दिरो मे औगारी एक है।
उन्नाव का सूर्य मंदिर
उन्नाव के सूर्य मंदिर का नाम बह्यन्य देव मन्दिर है। यह मध्य प्रदेश के उन्नाव में स्थित है। इस मन्दिर में भगवान सूर्य की पत्थर की मूर्ति है, जो एक ईंट से बने चबूतरे पर स्थित है। जिस पर काले धातु की परत चढी हुई है। साथ ही, साथ 21 कलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सूर्य के 21 त्रिभुजाकार प्रतीक मंदिर पर अवलंबित है।
रणकपुर का सूर्य मंदिर
राजस्थान के रणकपुर नामक स्थान में अवस्थित यह सूर्य मंदिर, नागर शैली मे सफेद संगमरमर से बना है। भारतीय वास्तुकला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता यह सूर्य मंदिर जैनियों के द्वारा बनवाया गया था जो उदयपुर से करीब 98 किलोमीटर दूर स्थित है।
रांची का सूर्य मंदिर
रांची से 39 किलोमीटर की दूरी पर रांची टाटा रोड़ पर स्थित यह सूर्य मंदिर बुंडू के समीप है 7 संगमरमर से निर्मित इस मंदिर का निर्माण 18 पहियों और 7 घोड़ों के रथ पर विद्यमान भगवान सूर्य के रूप में किया गया है। 25 जनवरी को हर साल यहां विशेष मेले का आयोजन होता है।
बेलाउर का सूर्य मंदिर
यह मंदिर पश्चिभिमुख है। सूर्य पूजा का छठ पर्व पर हजारो श्रद्धालु इस सूर्य मंदिर में दर्शन करने दूर दूर से आते है। वे भगवान सूर्य को जल से अर्ध्य देते है। मंदिर में सात घोड़े वाले रथ पर सवार भगवान भास्कर की प्रतिमा ऐसी लगती है मानों वे साक्षात धरती पर उतर रहे हों।