सच में क्या गजब की सहिष्णुता थी, जाने कहाँ गए वो दिन? ये नरेंद्र मोदी अच्छे दिन का बोलकर कहाँ लेकर आ गए.!!
जरा सोचिए:
कुछ वर्षों पूर्व 26 नवम्बर 2008 के दिन कुछ भटके हुए युवाओं ने मुंबई में ताज होटल, रेलवे स्टेशन और विभिन्न जगहों पर अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इजहार किया था -कई सौ काफिरों को मार डाला था और
1) भारत जैसे साम्प्रदायिक देश को सबक सिखाया था, गजब की सहिष्णुता थी तब।
2) देश के गृह मंत्री जी बार बार कपडे बदल कर नए नए सूट पहन कर आ रहे थे।
3) मुख्य मंत्री जी फिल्मकारों को लेकर आ रहे थे ताकि वह घटना की लाइव रिकॉर्डिंग लेकर फिल्म बना सकें।
4) प्रधान मंत्री जी कड़ी निंदा कर रहे थे।
5) देश के कमांडो को मुंबई पहुँचाने में एक पूरा दिन लग गया था, फिर उनके पास घटना स्थल तक पहुँचाने के लिए बस तक न थी।
देश में अमन चैन का राज था।
1) साहित्यकार सुकून से बैठ कर कवितायें लिख रहे थे,
2) पत्रकार और मीडिया सरकार की तारीफ़ के पुल बाँध रही थी की क्या गजब का संयम है।
3) महेश भटट जी के सुपुत्र हमला करने की प्लानिंग बनाने वाले रिचर्ड हेडली को मुंबई टहला रहे थे तो वहीँ फिल्मकार चैन सुकुन से पदम श्री और पदम विभूषण का इन्तजार कर रहे थे।
4) आमिर खान अपनी पत्नी के साथ कैंडल लाइट डिनर कर रहे थे तो
5) शाहरुख़ खान जी पाक्सितान बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए टहल रहे थे।
6) राहुल गांधी स्पेन बाल कटाने गए थे.
कोई परेशान नहीं
कोई उद्वेलित नहीं,
कोई देश नहीं छोड़ रहा था और
कोई पुरस्कार नहीं वापस कर रहा था।
सच में गजब की सहिष्णुता थी,
जाने कहाँ गए वह दिन.!!
काश ऐसे दिन फिर लौटकर आ जाये
पर ये नरेंद्र मोदी को क्या पड़ी है जो विश्व के देशो में घूम घूमकर आतंकवादियो और दाऊद जैसो की फंडिंग रोक रहे हैं
देशवासी तो उस पर जोक बना रहे है
क्या जरूरत है नरेंद्र मोदी को सऊदी अरब में मंदिर बनवाने की भारत में राम मंदिर तो बनवा नही पा रहे,
हम सब देशवासी यही चाहते हैं की आतंकवादियो की फंडिंग पूर्व सरकार के कार्यकाल अनुसार चलती रहे वर्ना देश असहिष्णु हो जायेगा,
आतंकवादी हमलो के बिना हमें अच्छा नही लगता
हाय कोई तो लौट दे 26/11 जैसे बीते हुए दिन.!!
ताकि देश के बुध्दिजीमियों को सहिष्णु बने रहने में सुविधा रहे!