Saturday, November 23, 2024
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जनजातीय संग्रहालय में ‘भारत में मंदिर के मायने’ पर लोकरुचि संवाद संपन्न

  • भारत में ज्ञान का केन्‍द्र रहे हैं मंदिर : प्रो. अल्‍पना त्रिवेदी
  • पहले राजा के महल नहीं, मंदिर भव्‍य और विशाल बनते थेः प्रो. कैलाश राव
  • मंदिर हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैः प्रो. कैलाश राव

भोपाल। भारत में मंदिरों का विकास स्‍वत: स्‍फूर्त भावना से हुआ। यहां पर मंदिर- धर्म, विद्या, व्‍यापार और राजनीति का केन्‍द्र रहे हैं। मंदिरों से ही भारत में सामुदायिकता, बहुलता, समावेशिकता का विकास हुआ। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला की फैलो प्रो. अल्पना त्रिवेदी ने ये उद्गार गुरुवार को जनजातीय संग्रहालय में व्‍यक्‍त किये।

दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान द्वारा आयोजित लोकरुचि संवाद में मुख्‍य वक्‍ता के रूप में ‘भारत में मंदिर के मायने’ (Temple Matters) विषय पर बोलते हुए प्रो. त्रिवेदी ने कहा कि भारत में मंदिर मानव-जीवन का केन्‍द्र रहे हैं। वे अन्न-क्षेत्र के साथ-साथ सेवा के भी प्रमुख केन्‍द्र रहे हैं। मंदिर ही मान‍व के समस्‍त संस्‍कारों की धुरी हैं, जिसका संबंध जन्‍म से लेकर मृत्‍यु संस्‍कारों तक जुड़ा है। उन्‍होंने कहा कि मंदिरों के अलावा भारत में सम्‍पूर्ण तीर्थ केन्‍द्रों से भारत एकता के सूत्र में बंधा हुआ है। प्रो. त्रिवेदी ने कहा कि भारत में मंदिरों से कला, संगीत, साहित्‍य, नृत्‍य आदि विकसित हुए। दरअसल भारत मंदिरों के माध्‍यम से ही कर्मभूमि के रूप में जाना जाता है। हम इनके माध्‍यम से इतिहास रच रहे थे।

पर्यावरण की दृष्टि से मंदिरों का विशेष महत्‍व
इस अवसर पर विशिष्‍ट अतिथि प्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ. नारायण व्‍यास ने मध्‍यप्रदेश में मंदिरों के विकास पर प्रकाश डाला। शैलकला चित्रों से लेकर आधुनिक मंदिरों का उल्‍लेख करते हुए उन्‍होंने देव मूर्तियों के विकास परंपरा की चर्चा की और बताया कि भारत में पत्‍थर का पहला मंदिर सांची में बनाया गया था। डॉ. व्‍यास ने कहा कि भारत में पर्यावरण की दृष्टि से मंदिरों का विशेष महत्‍व है। अधिकांश मंदिरों के द्वार पर गंगा-जमुना की मूर्तियां इसका प्रमाण हैं।

मंदिर हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैः
कार्यक्रम की अध्‍यक्षता कर रहे स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के निदेशक प्रो. कैलाश राव ने कहा कि संपूर्ण भारत के मंदिरों में बने द्वारपाल इतने शक्तिमान सम्‍पन्‍न बनाए जाते हैं कि उनसे अंदर बैठे भगवान की शक्ति का आभास हो जाता है। भारत के सभी शहर और गांव मंदिरों में ही बसते हैं। हमारे यहां देव को सर्वश्रेष्‍ठ समर्पित करने की परंपरा रही है। उन्‍होंने कहा कि प्राचीन काल में राजा के महल की बजाय मंदिर भव्‍य और विशाल बनाए जाते थे। कोई भी नागरिक देव स्‍थान को भूमि देने में संकोच नहीं करता था। मंदिर हमारे आर्थिक संस्‍थान के रूप में संचालित थे, जहां से कोई भी व्‍यक्ति भूखा नहीं लौटता था। ये हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे हैं। मंदिरों में सारे उत्‍सव- त्‍यौहार मनाए जाते थे और हर मंदिर में आवश्‍यक रूप से अन्‍न क्षेत्र होता था। आज भी अनेक मंदिर इसके उदाहरण हैं। डॉ. राव ने कहा कि हर गांव से लेकर शहर के संचालन में मंदिर की बड़ी भूमिका है।

इस लोकरुचि संवाद का आयोजन दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान द्वारा किया गया और संयोजन थिंक इंडिया ने किया। कार्यक्रम का संचालन दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के निदेशक डॉ. मुकेश कुमार मिश्रा ने किया। आभार प्रदर्शन थिंक इंडिया के संयोजक निर्विकल्‍प शुक्‍ला ने किया। कार्यक्रम में नगर के अनेक प्रबुद्ध जनों के साथ मैनिट, एनएलआईयू, एसपीए, आईसर आदि संस्‍थाओं के छात्र भी सम्मिलित हुए।

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