लता मंगेशकर ने सिर्फ़ प्रेम गीत ही नहीं गाए। प्रेम भी किए। कई प्रेम किए। पर सफलता कहिए, सिद्धि कहिए, एक में भी नहीं मिली। पर पब्लिक डोमेन में उन की कुछ प्रेम कथाएं भी हैं। जैसे पहला क़िस्सा मशहूर संगीतकार सी रामचंद्र का है। फ़िल्म इंडस्ट्री में तब यह जोड़ी सीता-राम की जोड़ी कही जाती थी। शुरुआती समय में सी रामचंद्र लता मंगेशकर पर न्यौछावर थे। इस का खुलासा सी रामचंद्र ने अपनी आत्मकथा में बहुत विस्तार से किया है। लिखा है कि एक-एक गाने के लिए रात-रात भर लता मंगेशकर उन के पैर दबाती रहती थीं। उन का दांपत्य भी बिगड़ गया था। उन की पत्नी कहती थीं, क्या है उस काली-कलूटी में जो तुम मुझे छोड़ कर उस के पीछे पड़े रहते हो। ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आंख में भर लो पानी / जो शहीद हुए हैं उन की ज़रा याद करो क़ुर्बानी गीत लिखा प्रदीप ने, संगीत सी रामचंद्र ने दिया।
इस गीत के लिए सी रामचंद्र को दिल्ली से फ़ोन गया। कहा गया कि हफ़्ते भर में एक गीत तैयार कीजिए। एक सभा में गाया जाना है। प्रधानमंत्री पंडित नेहरु के सामने। 1962 के चीन युद्ध में भारत की शिकस्त के बाद देश के लोगों में जोश भरना था। सी रामचंद्र ने कम समय का हवाला देते हुए बहुत इफ-बट किया पर उन्हें लगभग आदेश दे दिया गया। अब सी रामचंद्र ने सारी स्थिति समझाते हुए कवि प्रदीप से गीत लिखने को कहा। प्रदीप ने गीत लिख लिया तो लता मंगेशकर से गाने को कहा। रिकार्डिंग छोड़िए, पूरी रिहर्सल भी ठीक से नहीं हो पाई थी। पर जब लता ने प्रदीप के इस गीत को सी रामचंद्र के संगीत में गाया तो लोग ही नहीं, पंडित नेहरु भी रो पड़े। वह नेहरु जो कहते नहीं अघाते थे कि नेहरु सब के सामने नहीं रोया करते। यह गीत आज भी लोगों को बरबस रुला देता है।
उस समय बतौर संगीतकार सी रामचंद्र टाप पर थे। लता मंगेशकर टाप की गायिका। बात रवानी पर थी। पर एक सुबह एक प्रोड्यूसर का फ़ोन आया सी रामचंद्र को कि सीता अब तेरे साथ नहीं गाना चाहती। सीता मतलब, लता मंगेशकर। सी रामचंद्र ने कहा, सुबह-सुबह मजाक कर रहे हो? प्रोड्यूसर ने कहा, मजाक नहीं कर रहा। सचमुच सीता तेरे साथ नहीं गाना चाहती। समझ नहीं आ रहा कि क्या करुं। तुम्हीं बताओ! सी रामचंद्र ने कहा कि तुम सीता से कुछ नहीं कह पाए, मुझ से ही क्यों कह रहे हो? प्रोड्यूसर ने कहा कि सीता टाप की गायिका है। उस के नाम से फ़िल्म बिकती है। तुम दोस्त हो, इस लिए पूछ रहा हूं। सी रामचंद्र ने कहा, तुम सीता से गवा लो। मुझे भूल जाओ। प्रोड्यूसर ने यही किया। सी रामचंद्र ने लिखा है कि फिर इस के बाद उन्हों ने फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दी। समझ गए कि अब फ़िल्म इंडस्ट्री में रहना, अपमान भोगना है। फिर अपने ही गानों के स्टेज शो करने लगे। कोई पचीस बरस तक वह इस घटना के बाद जीवित रहे। इसी मुंबई में रहे। पर फिल्म इंडस्ट्री और सीता को भूल कर।
यही वह दिन थे जब लता मंगेशकर बारी-बारी हर किसी चौखट को बाहर फेंक रही थीं जिस चौखट के आगे उन्हें सिर झुकाना मंज़ूर नहीं था। सी रामचंद्र के बाद वह सचिन देव वर्मन से भी रायल्टी के लिए लड़ गईं। और उन के साथ गाने से इंकार कर दिया। शंकर-जयकिशन से भी वह उलझीं। राजकपूर से भी उन का झगड़ा हुआ। मसला वही रायल्टी। लता मंगेशकर का कहना था कि गाने का एकमुश्त पेमेंट ही नहीं, आजीवन रायल्टी भी चाहिए। जैसे प्रोड्यूसर, संगीतकार लेते हैं। यही वह दिन थे जब कहा जाने लगा कि लता मंगेशकर किसी और गायिका को आगे नहीं बढ़ने देतीं। सब को किक करवा देती हैं। उन की छोटी बहन आशा भोसले तक लता मंगेशकर पर यह आरोप लगाने लगीं। कि दीदी मुझे आगे नहीं बढ़ने दे रहीं। पर सच यह नहीं था। सच यह था कि लता मंगेशकर के आगे कोई टिक नहीं पा रहा था। लता का सुर और लोच सब को मार डालने के लिए काफी था। मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, मन्ना डे, हेमंत कुमार, किशोर कुमार हर किसी के साथ लता मंगेशकर ही गा रही थीं। बाद में नए से नए गायक भी लता के साथ गाने लगे।
बाज़ार लता मंगेशकर की आवाज़ में क़ैद था। बिना लता के किसी का गुज़ारा नहीं था। बारी-बारी सभी लता मंगेशकर की शर्तों को मान गए। एस डी वर्मन, राज कपूर आदि सभी लता मंगेशकर के आगे नतमस्तक हो गए। बाद में लता और आशा भोसले के बिगड़ते संबंधों पर तो सुर नाम की एक फ़िल्म भी बनी। पर यह तो बहुत बाद की बात है। उस समय तो मुबारक़ बेग़म, सुमन कल्याणपुर, कमल बारोट आदि सभी लता की आवाज़ के आगे निरुत्तर थीं। बहुत मुश्किल से लता मंगेशकर के साम्राज्य में हेमलता ने एंट्री ली। स्पेस बनाया। पर रवींद्र जैन ने हेमलता का आर्थिक और दैहिक शोषण इतना किया कि हेमलता टूट गईं। अब अमरीका में रहती हैं। फिर कविता कृष्णमूर्ति, अलका याज्ञनिक, अनुराधा पोडवाल भी आईं। पर लता मंगेशकर के सुर को कोई चुनौती नहीं दे सका। सब दीदी-दीदी का दामन थामे रहीं। बहरहाल अब लता मंगेशकर शिखर पर थीं। दिलीप कुमार, राज कपूर, मुकेश, रफ़ी, किशोर सब की छोटी बहन बन गईं। और दुनिया भर के लोगों की दीदी। छोटे बड़े सभी लता दीदी कहने लगे।
तो बात हो रही थी लता मंगेशकर के प्रेम प्रसंगों की। सी रामचंद्र के बाद लता मंगेशकर से राजा साहब डूंगरपुर का नाम जुड़ा। उन दिनों वह भारतीय क्रिकेट के सर्वेसर्वा थे। राजा तो थे ही। लता मंगेशकर का क्रिकेट प्रेम तभी से शुरु हुआ। मरते दम तक रहा, यह क्रिकेट प्रेम लता मंगेशकर का। राजा साहब डूंगरपुर का लता मंगेशकर से प्रेम लंबे समय तक रहा। बात विवाह तक लेकिन पहुंच कर भी नहीं पहुंची। प्रेम पर्वत बन गया। आहिस्ता-आहिस्ता राजा साहब डूंगरपुर लता की पिक्चर से बाहर हो गए। लेकिन रहे कुंवारे ही। विवाह नहीं किया। कई सारी बातें सामने आईं। फ़िल्म गॉसिप वाली पत्रिकाओं में अनेक क़िस्से लिखे गए।
फिर अचानक गीतकार साहिर लुधियानवी और लता मंगेशकर का नाम शुरु हो गया। पर बहुत जल्दी यह चर्चा थम गई। बात मज़रुह सुल्तानपुरी तक आई। उन दिनों लता मंगेशकर बहुत बीमार थीं। मज़रुह सुल्तानपुरी अकेले शख्श थे जो लता मंगेशकर का हाल लेने रोज लता के पास जाने लगे थे। पर यह शोला भी जल्दी ही बुझ गया। तब तक मुकेश, रफ़ी, किशोर सभी विदा हो चुके थे। अब लता मंगेशकर श्रद्धा और गरिमा का सबब बन चुकी थीं। लोग उन्हें पूजने लगे थे। अब तक एक दो नहीं, पूरी दुनिया लता मंगेशकर की आशिक़ बन चुकी थी। करोड़ो दीवाने उन की आवाज़ के आशिक़। वह देवी की तरह पूजी जाने लगीं। सरस्वती उन्हें अपना दिल बैठी थीं। और यह देखिए अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उन्हें भारत-रत्न घोषित कर दिया। सचमुच वह भारत-रत्न ही हैं। प्रेम और ख़ुशी बांटने वाली लता मंगेशकर अब सर्वदा के लिए सब के दिल की डोर बन चुकी हैं। नेहरु युग से ले कर मोदी युग तक की अनन्य गायिका। वह एक शेर याद आता है :
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
लता मंगेशकर वही दीदा-वर हैं। आप इश्क़ करते हैं, भारत में रहते हैं और लता मंगेशकर के गाए गीत नहीं जानते, या नहीं सुने तो माफ़ कीजिए, आप से बड़ा अभागा कोई और नहीं है। जब तक दुनिया में प्रेम, ममता और त्याग की भावना रहेगी, लता मंगेशकर और उन की गायकी रहेगी। अमर रहेगी। देश के जिस भी हिस्से में गया हूं, चाहे नार्थ ईस्ट हो, वेस्ट हो या साऊथ, हिंदी मिले न मिले, लता मंगेशकर के गाने ज़रुर मिलते हैं। दक्षिण भारत के मंदिरों में भी लोग लता मंगेशकर के गाए भजन सुनते हैं। शिलांग में भी उन के गाए रोमैंटिक गाने सुनते देखा लोगों को। दार्जिलिंग और गैंगटॉक में भी। कोलकाता से शिमला तक लता बजती हुई मिलती हैं। सरहद पार पाकिस्तान आदि में तो हैं लता, श्रीलंका में भी लता मंगेशकर का गाना सुनते पाया है। अमरीका, यूरोप में लता मंगेशकर के कार्यक्रम होते ही थे। अलग बात है कि हृदयनाथ मंगेशकर बताते हैं कि अगर पिता दीनानाथ मंगेशकर जीवित रहे होते और कि दीदी पर घर की ज़िम्मेदारी न होती दीदी के कंधे पर तो दीदी कभी प्लेबैक नहीं गाती। शास्त्रीय संगीत ही गाती।
मेरा सौभाग्य है कि लता मंगेशकर के पूरे परिवार से मैं मिला हूं। उन के छोटे भाई हृदयनाथ मंगेशकर से तो मित्रता ही हो गई। लता मंगेशकर, आशा भोंसले, उषा मंगेशकर और हृदयनाथ मंगेशकर से इंटरव्यू भी किया है। उन की चौथी बहन मीना, हृदयनाथ मंगेशकर की पत्नी और बेटी राधा से भी मिला हूं। पूरा परिवार सफलता, सादगी और स्वर-साधना की प्रतिमूर्ति है। लता मंगेशकर और उन की गायकी को ले कर मेरे पास जानी-अनजानी बहुत सी कहानियां हैं। फिर कभी। साभार – https://sarokarnama.blogspot.com/2022/02/blog-post_6.html