Saturday, November 23, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेभारतीय रेल्वे अंग्रेजी राज से आज तक, मुंबई से कोलकोता अभी भी...

भारतीय रेल्वे अंग्रेजी राज से आज तक, मुंबई से कोलकोता अभी भी 500 किमी. ज्यादा का चक्कर

भारतीय रेलवे में कई किस्से महज किंवदंतियों में ही दम तोड़ देते हैं। सही रूपरेखा के साथ उन्हें व्यावहारिक बनाकर हकीकत का रूप दिया जा सकता है। भारत के मानचित्र पर गौर करते हुए हावड़ा से मुंबई जाने वाली रेलगाड़ी के मार्ग की कल्पना कीजिए। हावड़ा से मुंबई जाने के लिए पहले आपको इलाहाबाद आना पड़ सकता है, फिर मुंबई की राह मिलेगी। यह 2,127 किलोमीटर लंबी हावड़ा-इलाहाबाद-मुंबई रेल लाइन है, जो 1970 से परिचालन में है। मुंबई जाने वाला कोई भी मुसाफिर आखिर इसे क्यों पसंद करेगा?
यह तर्क और भौगोलिक पैमाने पर खरा नहीं उतरता। इसका जवाब अतीत में छिपा है कि इन लाइनों का निर्माण अलग-अलग कंपनियों द्वारा किया गया। द ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे (जीआईपीआर) का कार्यक्षेत्र मुख्यत: उस इलाके तक केंद्रित था, जो आज महाराष्ट्र गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच सिमटा हुआ है।
इसने मुंबई को नागपुर और मुंबई को जबलपुर से जोड़ा। इस बीच ईस्ट इंडियन रेलवे (ईआईआर) ने इलाहाबाद के रास्ते हावड़ा-दिल्ली लाइन को विकसित किया। जब 1867 में ईआईआर की इलाहाबाद-जबलपुर लाइन बनी और 1870 में जीआईपीआर ने मुंबई-जबलपुर लाइन को बना दिया तभी जाकर 1870 में हावड़ा-इलाहाबाद-मुंबई लाइन शुरू हो पाई।
‘अराउंड द वल्र्ड इन एटी डेज’ का प्रकाशन 1873 में हुआ था। क्या आपको याद है कि क्या हुआ था? फिलीज फॉग मुंबई समय से पहले ही पहुंच गया और उसने ‘बंबई से कलकत्ता’ का टिकट खरीदा। हालांकि लंदन में अखबारों ने चाहे जो कहा हो, उसके उलट परिचालक ने कहा, ‘रेलवे का काम पूरा नहीं हुआ है….यात्री जानते हैं कि उन्हें खोलबी से इलाहाबाद तक पहुंचने के लिए खुद परिवहन के साधन की व्यवस्था करनी होगी।’ इसी तरह फॉग ने अपने लिए हाथी की व्यवस्था की। मुझे हमेशा हैरानी हुई कि खोलबी कहां स्थित था, संभवत: सतना के आसपास कहीं रहा होगा। ‘अराउंड द वल्र्ड इन एटी डेज’ के लेखक जूल्स वर्न पर कुछ शोधार्थी शायद इससे पर्दा उठाएंगे।
निश्चित रूप से हावड़ा-इलाहाबाद-मुंबई लाइन बहुत ज्यादा लंबी थी। हर किसी को यह मालूम था और इसके चलते ही हमें हावड़ा-नागपुर-मुंबई मार्ग बनाना पड़ा। यह करीब 1,968 किलोमीटर दूरी है। नक्शे पर यह एकदम सीधी रेखा नजर आती है, कम से कम नागपुर-मुंबई के बीच ऐसा कहा जा सकता है। आखिरकार किसी तरह 1900 में जाकर यह पूरा हो गया, जिसके लिए बंगाल नागपुर रेलवे (बीएनआर) को कुछ हद तक श्रेय जाता है। हैरानी की बात है कि 1871 में इसके लिए बीएनआर का इंतजार करना पड़ा, जबकि उससे पहले पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के इलाके रेल नेटवर्क से जुड़ गए थे।
हावड़ा-मुंबई मार्ग को छोटा करना भी बीएनआर की स्थापना के पीछे एक मकसद था। मगर मानचित्र पर एक फिर गौर कीजिए। हावड़ा-नागपुर-मुंबई मार्ग उतना छोटा नहीं है, जितना पहली नजर में लगता है। हावड़ा-मुंबई के बीच छोटा मार्ग जबलपुर से होकर ही निकलना चाहिए। मुंबई-जबलपुर लिंक को लेकर कोई समस्या नहीं। मगर छत्तीसगढ़ और झारखंड के रास्ते जबलपुर-हावड़ा लिंक मौजूद नहीं है। अगर ऐसी कोई लाइन हो तो हावड़ा और मुंबई के बीच दूरी कम हो जाएगी। कुछ लोगों का कहना है कि 400 किलोमीटर दूरी कम हो जाएगी तो कुछ 500 किलोमीटर बताते हैं। मेरे ख्याल से यह लाइन की रूपरेखा पर निर्भर करता है। अजीब बात यह है कि अंग्रेजों ने पहले ही 1925 में बरवाडीह-चिरमिरी लिंक के बारे में सोचा। यह करीब 90 साल पहले की बात है। छत्तीसगढ़ और झारखंड प्राकृतिक संसाधन संपन्न हैं और 90 साल पहले भी रहे होंगे। अंग्रेज कोयला खदानों का दोहन करने के लिए वह रेलमार्ग चाहते थे।
बरवाडीह झारखंड और चिरमिरी छत्तीसगढ़ में है। इन दोनों स्टेशनों की दूरी 182 किलोमीटर है। गौर करने वाली बात है कि बरवाडीह और चिरमिरी रेलवे स्टेशन ब्रॉड गेज लाइनों से जुड़े हैं लेकिन आपस में ब्रॉड गेज लाइन से नहीं जुड़े हैं। हालांकि कुछ सामग्री अप्रामाणिक है और उसका स्वरूप रेलवे किंवदंती का है। चूंकि इतिहास में इसका प्रमुख रेलवे नेटवर्क के माफिक वर्णन नहीं किया गया है, लिहाजा आपको असल में यह पता नहीं चलता कि क्या सच है और क्या झूठ।
रेलवे किंवदंतियों के अनुसार बरवाडीह-चिरमिरी के लिए अंग्रेजों ने ने सर्वेक्षण किया, जमीन अधिग्रहीत की और यहां तक कि 1930 में निर्माण भी शुरू कर दिया। फिर द्वितीय विश्व युद्घ शुरू हो गया और इसके साथ ही निर्माण के काम पर विराम लग गया। उसके बाद लंबे समय तक कुछ नहीं हुआ, हालांकि इस लाइन को वर्ष 1999 में आधिकारिक मंजूरी मिल गई। कम से कम कम एक पूर्व रेल मंत्री ने ऐसा कहा। वर्ष 2007-08 में बरवाडीह-चिरमिरी के मुद्दे ने फिर जोर पकड़ा और उसे बजट भाषण में जगह भी मिली।
हालांकि बजट भाषण में यह नहीं कहा गया कि इस लाइन को बनाया जाएगा बल्कि उसके सर्वेक्षण की बात कही गई। इस लिंक के लिए तमाम सर्वेक्षण और पुन: सर्वेक्षण प्रस्तावित किए गए कि सनी देओल भी उकताकर ‘सर्वे पे सर्वे’ कहने लगेंगे। बहरहाल ईमानदारी से कहें तो प्रत्येक सर्वेक्षण का अपना महत्त्व होता है। जैसे कि तकनीकी सर्वेक्षण का मकसद अलग होता है और ट्रैफिक सर्वेक्षण का अलग, जिससे उस पर प्रतिफल का अंदाजा मिलता है।
मगर वर्ष 2011-12 में ममता बनर्जी के रेलवे बजट भाषण में कुछ खास था। उन्होंने कहा, ‘पिछले दो बजटों में मैंने नई लाइनों, गेज रूपांतरण/दोहरीकरण को लेकर 251 संशोधित सर्वेक्षणों/नए सर्वेक्षणों का ऐलान किया। इनमें से 190 सर्वेक्षण पूरे हो गए हैं या इस वित्त वर्ष के अंत तक पूरे हो जाएंगे। इन लाइनों को भी 12वीं पंचवर्षीय योजना में शामिल किया जाएगा।’ जहां 12वीं पंचवर्षीय योजना वर्ष 2017 में समाप्त हो रही है, वहीं विशेष प्रतिबद्घता जताने के बावजूद इस मामले में बहुत प्रगति नहीं हुई। अब यह कुछ अधिक विशिष्टï हो गया है क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार और रेल मंत्रालय के बीच एक विशेष उद्देश्य निकाय (एसपीवी) बनने जा रहा है। मगर यह बरवाडीह-अंबिकापुर के बीच है।
चिरमिरी और अंबिकापुर के बीच तकरीबन 80 किलोमीटर की दूरी है। मुझे संदेह है कि रूपरेखा में कुछ बदलाव हुआ है, जिसके चलते यह बरवाडीह-चिरमिरी के बजाय बरवाडीह-अंबिकापुर लाइन बन गई है। निस्संदेह छत्तीसगढ़ के रायपुर और ओडिशा के झारसुगुडा में भी अन्य लाइन बनाई जाएगी, जिससे मुंबई-हावड़ा के बीच की दूरी और कम हो जाएगी।
सभी जानते हैं कि 19वीं शताब्दी में रेल लाइनों का विकास उन इलाकों में नहीं हुआ, जहां आंतरिक आर्थिक विकास की और ज्यादा संभावनाएं थीं बल्कि उन इलाकों में ज्यादा हुआ, जहां निर्यात के लिए उनके दोहन की गुंजाइश थी। वर्ष 1947 के बाद हमने कुछ ही नई लाइनें जोड़ी हैं। जमीन से जुड़े मसलों को छोड़ दिया जाए तो मेरे ख्याल से बरवाडीह-अंबिकापुर लाइन वर्ष 2018 में पूरी हो जाएगी।

साभार- http://hindi.business-standard.com/ से

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार