अमेरिकी फोटोग्राफर और विक्लांगों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट नोलन रेयान ट्रोव ने अपने कार्य और हाल ही की अपनी हैदराबाद यात्रा के अनुभव साझा किए।
नोलन रेयान ट्रोव ने अपने परिवार और दोस्तों की तस्वीरें खींच कर फोटोग्राफी में अपने हाथ आजमाना शुरू किया था। 2016 में उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट आने के बाद वे चलने में असमर्थ हो गए। इसके बाद ट्रोव अपने कैमरे के माध्यम से विक्लांगता के बारे में विमर्श को नए सिरे से गढ़ने में जुट गए।
ट्रोव एक पुरस्कार विजेता फोटोग्राफर और विक्लांगों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट हैं जिनका कार्य कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट में प्रकाशित हुआ है। उनके पास कैलिफ़ोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी, लॉंग बीच से रचनात्ममक लेखन में बैचलर डिग्री और न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी से एक्सपेरीमेंटल ह्यूमेनिटीज़ और सोशल इंगेज़मेंट में मास्टर्स डिग्री है। ट्रोव ने दिसंबर 2023 में हैदराबाद का दौरा किया जहां उन्होंने अपने कार्य का प्रदर्शन करने के अलावा मुख्य भाषण दिया। इसके अलावा उन्होंने वहां भारतीय फोटो महोत्सव 2023 और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू युनिवर्सिटी में मास्टरक्लास भी ली। उनकी यात्रा को अमेरिकी विदेश विभाग ने प्रायोजित किया था और इसमें विक्लांगता के मद्दे पर अमेरिकन कॉर्नर रीजनल वर्चुअल इंगेज़मेंट में उनकी भागीदारी भी शामिल थी।
प्रस्तुत है स्पैन के साथ उनके साक्षात्कार के मुख्य अंश:
आपको विक्लांग लोगों से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए किस बात ने प्रेरित किया? और आपने फोटोग्राफी को अपने रचनात्मक माध्यम के रूप में क्यों चुना?
मेरे लिए प्रेरणा मेरी खुद की विक्लांगता थी। मेरा जीवन, मेरे दोस्त और मेरा समुदाय सभी पर विक्लांगता से जुड़े अधिकारों का प्रभाव पड़ता है। जिन लोगों से मैं प्रेम करता हूं, उनमें से बहुत-से लोग विक्लांग हैं। यहां ऐसा कुछ भी नहीं है कि मैं किसी दूसरे विकल्प की सोचूं। कैमरा मेरे लिए एक जरिया बन गया, यह दिखाने का कि क्या हो रहा है जीवन कैसा है और क्या चल रहा है। इस तरह की दृश्य दुनिया और समाज में छवियों का लोगों पर गहरा असर पड़ता है। मैं मानता हूं कि फोटोग्राफी अभिव्यक्ति के सबसे सुलभ और लोकतांत्रिक रूपों में से एक है।
हम विक्लांगता के इर्दगिर्द के विमर्श को कैसे बेहतर बना सकते हैं और इससे समुदाय को कैसे मदद मिलेगी?
मुझे लगता है कि विक्लांग लोगों के जीवन की वास्तविक तस्वीर को दिखा कर उसे बेहतर किया जा सकता है। विक्लांगता की कहानी आमतौर पर या तो प्रेरक या फिर दुखदायी होती है। मैं शायद ही देखता हूं कि विक्लांग लोगों को सिर्फ आम इंसान के रूप में चित्रित किया जा रहा हो। अक्सर ऐसा लगता है कि जैसे विक्लांगता ही उनकी पूरी कहानी है या कहानी का मुख्य फोकस है। इसलिए उनकी मानवता पर अधिक ध्यान देना ज्यादा महत्वपूर्ण होगा। विक्लांग समुदाय के बारे में कहानियों को साझा करने वाले अधिक विक्लांगों का होना भी मददगार होगा। विक्लांगता को भोग रहे व्यक्ति द्वारा विक्लांगता के बारे आंतरिक परिप्रेक्ष्य से समझाई गई कहानियों और उनके प्रतिनिधित्व के तरीकों में एक अलग तरह की बारीकी नजर आती है।
क्या आप हमें हैदराबाद में अपनी गतिविधियों और अनुभवों के बारे में कुछ बता सकते हैं?
मेरे कार्यक्रम अधिकतर ऐसे विद्यार्थियों और दर्शकों के लिए थे जिनका फोटोग्राफी, मीडिया या फ़िल्मों से कुछ न कुछ संबंध था। मैं वहां फोटोग्राफी पर एक मास्टरक्लास पढ़ाने गया था और मैंने वहां फोटोग्राफी के माध्यम से कहानी कहने के पहलुओं और फोटो निबंध बनाने के विचार पर ध्यान केंद्रित किया। इस कक्षा का फोकस मानवाधिकारों पर केंद्रित था। लेकिन मैं इस विषय पर दूसरे फोटोग्राफरों की तुलना में अधिक वैचारिक दृष्टिकोण अपनाता हूं। मै तस्वीर या कहानी के पीछे के कारणों पर अधिक ध्यान केद्रित करता हूं। मुझे उम्मीद है कि विद्यार्थी और दर्शक कक्षा से इस बारे में और अधिक गंभीरता से सोचते हुए निकले होंगे कि वे अपने कैमरे का फोकस केवल कुछ चीजों पर ही केंद्रित रखते हैं, दूसरी और चीजों पर क्यों नहीं। दौरे का अनुभव व्यस्त लेकिन संतुष्टिदायक था। कुछ बेहतरीन चर्चाएं और बैठकें हुईं। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि भले ही मैंने शहर में बहुत कुछ नहीं देखा, फिर भी मुझे शहर में बहुत-से लोगों से मिलने का मौका मिला।
कृपया हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित अपने फोटोग्राफी प्रोजेक्टों के बारे में बताएं?
मेरे बहुत सारे फोटो निबंध शुरुआती दौर में ही न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित हुए थे। लेकिन वह चीज़ जो सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र बनी, वह था मेरा ऑप-एड ‘‘रिवीलेशंस इन ए व्हीलचेयर।’’ यह न्यू यॉर्क सिटी में उन लोगों की तस्वीरें खींचने के बारे में था जो उस वक्त मुझे घूर रहे थे जब मैं अपनी व्हीलचेयर का इस्तेमाल कर रहा था। यह सबवे प्रणाली तक पहुंच न हो पाने के बारे में भी था। मैं लोगों को यह अहसास दिलाना चाहता था कि ऐसे समाज में व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाले को कैसा महसूस होता है जो व्हीलचेयर के लिए नहीं बना है। मैं लोगों को यह भी दिखाना चाहता था कि एक विक्लांग व्यक्ति होने के कारण घूरकर देखे जाने पर कैसा लगता है।
क्या आपके पास भारत से जुड़ी कोई आगामी परियोजनाएं हैं?
मेरी मुलाकात कुछ ऐसे समाज कार्यकर्ताओं से हुई जो वास्तव में हैदराबाद में, समुदाय को ध्यान में रखते हुए पार्टिसिपेटरी मीडिया वर्कशॉप्स करने में रुचि रखते हैं। इसका मतलब यह भी होगा कि सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के रूप में लोगों के हाथों में कैमरे देना और उन्हें अपनी कहानियों की बानगी करना सिखाना होगा। इस तरह की कार्याशालाएं चलाना और हैदराबाद में स्वतंत्र रूप से लोगों को इस तरह से प्रशिक्षित करना कि वे अपने समुदाय में खुद लोगों को प्रशिक्षण दे सकें, यह परिवर्तनकारी कदम होगा। जिन लोगों से मैं मिला, वे इस विचार को लेकर खासे उत्सुक लग रहे थे।
साभार- https://spanmag.com/hi