आज कश्मीरी पंडितों/हिंदुओं का त्यौहार है ‘काव पुनिम’ जो कौवों के सम्मान में मनाया जाने वाला कश्मीर का अपना एक देशज/प्राचीन पर्व है।यह पर्व प्रति वर्ष माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है।इस दिन को कौवों के राजा काक भुशुण्डि के जन्म-दिवस के रूप में कश्मीर में मनाने की परंपरा है।सम्भवतः वही काक भुशुण्डि जिसका उल्लेख वाल्मीकि और तुलसी ने अपनी रामायणों में किया है।लोक मान्यता के अनुसार काक भुशुण्डि का दक्षिण-कश्मीर के किसी पर्वतीय इलाके में स्थायी निवास माना जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार कौवे को इह और परलोक के बीच की कड़ी(दूत) के रूप में भी स्वीकार किया जाता है।इसी विश्वास के अनुसार कौवे को दिया जाने वाला भोजन दिवंगत पितरों तक पहुंचने का विश्वास कश्मीरी श्रद्धालु करते हैं।इस विश्वास के अनुसार ‘काव-पुनिम’ अर्थात माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कश्मीरी पंडितों के परिवार हमेशा सुबह-सुबह कौओं को पीले रंग के पके हुए चावल और व्यंजन परोसते हैं। छड़ी के एक छोर पर घास द्वारा निर्मित एक त्रिभुज रूपी पात्र बनाया जाता है जिसे ‘काव-पोतुल’ कहते हैं। छड़ी को खिड़की से बाहर निकालकर इसी पात्र में या फिर छत की फ़र्श पर पीले रंग के चावल, जिसे ‘तअहर’ हैं, रखे जाते हैं।सब्जी आदि भी रखी जाती है और कौओं का आवाहन कर कहा जाता है:
“काव बट्ट कावो, खेचरे कावो,
काव ताए काविन सा’ते हेथ,
गंगाबले श्राना कारिथ,
गुरचे मेचे ट्योका कारिथ,
वौज़ले पटे योन्या सुनीथ,
वोलबा साने लरे कने दर
वरे बत्ता खेने ।”
(आओ रे कौवे! रे खिचड़ी-प्रेमी कौवे!, दोनों जोड़े से आओ! गंगबल नदिया में स्नान कर, पवित्र माटी का तिलक लगाकर,लाल धागे का जनेऊ पहनकर आओ और हमारे नए घर के बरामदे पर पधारकर पके हुए खिचड़ी-भात का सेवन करो )