26 फरवरी बलिदान दिवस (पुण्यतिथि) पर उन्हें कोटि कोटि नमन।
करांची में हुए मुस्लिम लीग के अधिवेशन में ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के चौदहवें समुल्लास को इस्लाम के विरुद्ध बताते हुए जब्त करने का प्रस्ताव पास किया गया। सिंध के मंत्रिमंडल ने जब ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के चौदहवें समुल्लास को हटा देने की घोषणा की, तो देश भर में ऋषि दयानंद के शिष्यों के बीच क्षोभ की लहर दौड़ गयी। २० फरवरी १९४४ को दिल्ली में एक विशाल आर्य सम्मलेन ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पर प्रतिबन्ध लगाने के प्रयास की कड़ी भर्त्सना की। वायसराय को हजारों तार भेजकर इस अन्यायपूर्ण कदम का विरोध किया गया।
हिन्दू महासभा के नेता भाई परमानंद जी ने कहा– “सिंध के मुस्लिम मंत्रिमंडल ने “सत्यार्थ प्रकाश” पर प्रतिबन्ध लगाकर सारी हिन्दू जाति को ही चुनौती दी है। यदि यह मान लिया जाये की चौदहवें समुल्लास को इस्लाम धर्म के खंडन के नाते प्रतिबंधित कर दिया जाये तो कुरआन का प्रत्येक शब्द ही हिन्दुओं के विरुद्ध पड़ता है। समस्त कुरान को भी क्यों न जब्त किया जाये?” वीर सावरकर जी ने सार्वजनिक घोषणा की – “जबतक सिंध में सत्यार्थ प्रकाश पर पाबंदी लगी है, तब तक कांग्रेस शासित प्रदेशों में कुरान पर प्रतिबन्ध लगाने की प्रबल मांग की जानी चाहिए।”
सावरकर जी ने भारत के वायसराय और सिंध के गवर्नर को तार देकर कहा– “सिंध सरकार द्वारा “सत्यार्थ प्रकाश” पर प्रतिबन्ध लगाने से सांप्रदायिक वैमनस्य उत्पन्न होगा। यदि सत्यार्थ प्रकाश से प्रतिबन्ध नहीं हटाया गया तो हिन्दू कुरान पर प्रतिबंध लगाने के लिए आन्दोलन प्रारम्भ कर देंगे। अतः मैं केन्द्रीय सरकार से अनुरोध करता हूँ कि सत्यार्थ प्रकाश पर लगे प्रतिबन्ध को अविलंब रद्द करे।” इतना ही नहीं २७ नवम्बर १९४४ को सावरकर जी ने स्वयं वायसराय से भेंट की और “सत्यार्थ प्रकाश’ से प्रतिबन्ध हटाने की मांग की।
Veer Savarkar writes
Every Gospel or Religious book that aims to support the truth or body of opinion which it thinks absolutely fundamental and true has in some part or other controverted and proved false or unreliable the beliefs of other sects and religions which run counter to it. If the Satyarth Prakash which is the Holy book of the Arya Samajists and highly revered by the Hindus in general is proscribed because it tries to controvert even emphatically some views and beliefs contained in the holy Quran to satisfy the Muslims, then in that case large part of the Quran, the holy book of Muslims, itself will have to be proscribed.
[Ref- Sarvdeshik Monthly Magazine , May 1944]
वीर सावरकर अध्यक्ष अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का सत्यार्थ प्रकाश विषय पर वायसराय को तार ९ नवम्बर को श्री सावरकर जी ने वायसराय को तार भेज कर लिखा की सिंध सरकार द्वारा सत्यार्थ प्रकाश पर लगाये गये प्रतिबन्ध के फलस्वरूप सांप्रदायिक कटुता निरंतर बनी रहने की आशंका रहेगी अत: केंद्रीय सरकार को यह पाबन्दी तत्काल रद्द कर देनी चाहिए। सिंध के गवर्नर को तार भेज कर उन्होंने अल्प संख्यकों के हितों की रक्षार्थ तुरंत हस्तक्षेप के लिए लिखा। २८ नवम्बर को वायसराय से भेंट में भी सावरकर जी ने इसी बात पर जोर दिया।
सन्दर्भ- सार्वदेशिक मासिक पत्रिका दिसम्बर अंक १९४४
स्वातन्त्र्य वीर सावरकर ने अण्डमान के क्रूर कारागृह के वाचनालय में “सत्यार्थ-प्रकाश” को मंगवाकर सभी बन्दी राजनैतिक कैदियों को इसे पढ़ने का आह्वान किया था। उनका मानना था- “स्वामी दयानन्द जी का यह ग्रन्थ हिन्दू संस्कृति के उच्चतम तत्व मन पर अंकित करता है। वह हिन्दू धर्म का राष्ट्रीय स्वरूप व्यक्त करता है और अदम्य व उत्साही मन का प्रचारक है।”
इस ग्रन्थ पर अपनी आस्था व्यक्त करते हुए वीर सावरकर कहते हैं- “सत्यार्थ प्रकाश की विद्यमानता में कोई विधर्मी अपने मजहब की शेखी नहीं बघार सकता।” इस ग्रन्थ की वैचारिक क्रान्ति ने समस्त मत-पन्थों को जर्जरित कर दिया है। आज कुरान, पुराण व बाईबल आदि पन्थाई ग्रन्थों की व्याख्याएं बदल रही हैं, ताकि इन मजहबों पर लगे कलंकों को धोया जा सके। यह सत्यार्थ प्रकाश की महान विजय का ही प्रभाव है। इसने हमें अदम्य साहस, नया उत्साह और सुदृढ़ संकल्प बल दिया। ऐसी संकटमयी घड़ी में दयानन्द नहीं आते तो पता नहीं भारत का भविष्य क्या होता?