बहुरंगी संस्कृति का मेल लिये विलक्षण शिल्प-स्थापत्य एवं संस्कृति के लिये विख्यात है बांसवाड़ा। यहां की नैसार्गिक सुषमा देखते ही बनती है। ऐतिहासिक एवं पुरासंपदा, अनूठी आदिवासी संस्कृति की विशिष्ट परंपराएं, आस्था धाम, मनोहारी झरने बांसवाड़ा को खास बनाते हैं। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर देश भर में विख्यात है।
बांसवाड़ा में केरल की तरह बेक वाटर पर्यटन राज्य के पर्यटन की संभावनाएं हैं। माही परियोजना को तत्कालीन प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी द्वारा लोकार्पण करते समय तत्कालीन मुख्यमंत्री ने बांसवाड़ा को सौ टापुओं का शहर नाम दिया था। वरिष्ठ जनसंपर्क कर्मी और लेखक गोपेंद्र भट्ट का कहना है कि माही के बेक वाटर में स्थित सौ टापुओं को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की मांग लम्बे समय तक की जा रही है। बांसवाडा को राजस्थान का चेरापूंजी माना जाता है तथा दक्षिणी राजस्थान का यह जिला छठी से 11वीं शताब्दी की पुरातत्व संपदाओं से भरा हुआ है। माही का बेक वाटर मध्य प्रदेश की सीमा तक लंबे चौड़े क्षेत्रफल के फैला हुआ हैं।
बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिला से लगा हुआ सलूंबर उदयपुर का जयसमन्द झील में भी बेक वाटर टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाने की पूरी संभावना हैं। वर्तमान में वहां बाबा का मगरा पर एक रिसोर्ट और जयसमन्द झील में बोट राइडिंग आदि गतिविधियां चल भी रही है। जयसमन्द झील एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील में से एक है। बैक वाटर पर्यटन को बढ़ावा देने पर राजस्थान में पर्यटन के नए द्वार खुल सकते हैं।
त्रिपुरा सुंदरी मंदिर
हिन्दू धर्म में 51 शक्तिपीठों में त्रिपुरा सुंदरी एक प्रमुख शक्तिपीठ है। प्रमुख धार्मिक स्थल त्रिपुरा सुंदरी मंदिर राजस्थान में बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर तलवाड़ा ग्राम के निकट स्थित है। कहा जाता है कि मां की पीठ का अस्तित्व यहां तीसरी सदी पूर्व का है। गुजरात, मालवा एवं मारवाड़ के शासक त्रिपुरा सुंदरी के उपासक थे। गुजरात के सोलंकी शासक सिद्धराज जयसिह की यह ईष्ट देवी थी। कहा जाता है कि मालव नरेश परमार ने तो मां के चरणों अपना शीश काट कर अर्पित कर दिया था। उसी समय राजा सिद्धराज की प्रार्थना पर मां ने पुत्रवत जगदेव को पुनर्जीवित कर दिया था।
मंदिर के गर्भगृह में देवी की मूर्ति विविध आयुध से युक्त 18 भुजाओं वाली श्यामवर्णी भव्य तेज युक्त आर्कषक लगती है। मूर्ति के प्रभामण्डल में नौ-दस छोटी-छोटी मूर्तियां हैं, जिन्हें दस महाविद्या अथवा नवदुर्गा कहा जाता है। मूर्ति के नीचे भाग में संगमरमर के काले और चमकीले पत्थर श्री यंत्र उत्कीर्ण है, जिसका अपना विशेष तांत्रिक महत्व है। मंदिर के पृष्ठ भाग में त्रिदेव, दक्षिण में काली तथा उत्तर में अष्ठभुजा सरस्वती मंदिर था, जिसके आज अवशेष ही बाकी रह गये हैं। यहां देवी के चमत्कारों की कई गाथाएं प्रचलित है।
यह मंदिर शताब्दियों तक विशिष्ठ शक्तिसाधकों का प्रसिद्ध उपासना केन्द्र रहा। शक्तिपीठ पर दूर-दूर से लोग शीष नवाने आते हैं। नवरात्रा पर्व पर मंदिर में नौ दिन तक विशेष समारोह उत्साहपूर्वक मनाये जाते हैं। नित-नूतन श्रृंगार की मनोहारी झांकी देखते ही बनती है। इन दिनों चैबिसों घण्टें भजन, कीर्तन, साधना, तप, जप, अनुष्ठान व जागरण में भक्तगण डूबे रहते हैं। नवरात्रा के प्रथम दिन शुभमूहर्त में मंदिर में घट स्थापना की जाती है और इसके समीप की अखण्ड ज्योति जलाई जाती है। मंदिर में 365 दिन आरती की जाती है।
बांसवाड़ा से निकट लगभग साठ किलोमीटर दूर स्थित अर्थूणा गांव में शिल्प एवं स्थापत्य की भूली-बिसरी स्मृतियां विश्व की प्राचीनतम पर्वतमाला अरावली की गोद में कलात्मक मन्दिरों के भग्नावशेष, देवी देवताओं, अप्सराओं, तथा गन्धर्व नर-नारियों की मनमोहक भाव भंगिमाओं वाली प्रतिमायें अतीत के कला-वैभव का जीता-जागता प्रमाण हैं। यहाँ स्थित कलात्मक दीप स्तंभ इतिहास और समय की विशाल छाती पर मजबूती से खड़ा, मनुष्य हृदय के उल्लास का विजय स्तंभ प्रतीत होता है। किसी समय यहां अमरावती नगरी विद्यमान थी। प्राचीन नगर और मंदिरों अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं।
महाभारत कालीन युग की याद दिलाने वाला जिले का ’घोटियाआम्बा’ स्थल अत्यन्त रमणीय है जो बागीदोरा पंचायत समिति क्षेत्र में आता है। यह स्थल बांसवाड़ा से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। पांडवों ने वनवास का कुछ समय घोटियाआम्बा के लापानी स्थल पर गुजारा था। यहीं पर पांडवों ने भगवान श्री कृष्ण की सहायता से 88 हजार ऋषियों को रस युक्त भोजन कराया था।
निज मंदिर में शिवलिंग, पार्वती तथा उमा महेश्वर की मूर्तियां है। मंदिर के बाहरी ताकों में भैरव, ताण्डवलीन शिव और चामुण्डा की मूर्तियां हैं। यह शिव पंचायतन मंदिर था। मंदिर के एक ताक में 31 जनवरी 1080 की एक बड़ी प्रशस्ति उत्कीर्ण है। काव्य प्रशस्ति में परमार राजाओं की वंश परंपरा तथा उनके कार्यों का उल्लेख है। इस मंदिर के सामने एक पहाड़ी पर भग्न प्रायः चार शिव मंदिर हैं जिनके पास गणेश, शिव, ब्रह्या, विष्णु, नवग्रह, ताण्डवलीन शिव, चामुण्डा, भैरव आदि खण्डित मूर्तियां पड़ी हैं।
इस पहाड़ी से दक्षिण में कुछ दूरी पर गंगेला तालाब में होकर पश्चिम में जाने पर एक सुंदर खुदाई युक्त दो मंजिला द्वारा आता है जो उधर के मंदिर समूह का मुख्य द्वार था। यह मंदिर समूह हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ एक हनुमान का, एक वराह का, एक विष्णु का और तीन शिवजी के मंदिर हैं। विष्ण मंदिर में बंसी बजाते हुए कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा 18 भुजाओं वाली विष्णु की त्रिमूर्ति, पार्वती और पूतना आदि की मूर्तियां रखी हैं। निकट ही पाषाण का बना हुआ एक कुण्ड बना हुआ है।
बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर, उदयपुर मार्ग पर गनोड़ा से चार किलोमीटर अंदर की ओर स्थित प्राचीन रणछोड़ राय तीर्थ, राजस्थान, गुजरात व मध्यप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र के श्रद्धालुओं का आराधना स्थल है। माही नदी के किनारे परकोटे से घिरा यह तीर्थ क्षेत्र कृष्ण लीलाओं का धाम कहा जाता है। इस पूर्वभिमुख मुख्य मंदिर के गर्भगृह में ऊंचे अधिष्ठान पर भगवान रणछोड़राय की डेढ़ फुट ऊंची मनोहारी कृष्णवर्णी प्रतिमा है। बाएं हाथों में शंख व चक्र तथा दाएं हाथों में गदा व पद्म धारण किए हुए चिताकर्षक प्रतिमा चार सेविकाओं के साथ स्थित है। इस मूर्ति के बांईं ओर भगवती लक्ष्मी व दाईं ओर बलभद्र (टीकमजी) की लगभग एक-एक फुट की श्यामवर्णी प्रतिमाएं मंदिर के सभा मंडप में ऊंचे स्तम्भ पर पक्षीराज गरूड़ की विनय मुद्रा में श्यामवर्णी प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के परिक्रमा भाग में खम्भों एवं पाश्र्व दीवारों पर छोटी-छोटी कलात्मक मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। यह प्राचीन मंदिर संवत् 1128 में निर्मित माना जाता है।
बांसवाड़ा से लगभग 13 किलोमीटर दूर पश्चिम में तलवाड़ा गांव में लक्ष्मीनारायण और गोकर्णेश्वर महादेव के मंदिर दर्शनीय हैं। कस्बे के बाहर सूर्य मंदिर है। इस मंदिर के पास ही लक्ष्मीनारायण मंदिर है जिसका नीचे का हिस्सा प्राचीन तथा ऊपर का नया है। मूर्ति मुख्य गर्भ गृह से निकालकर सभा मण्डप में रख दी गई है। एक ताक में ब्रह्मा की मूर्ति रखी हुई है। इस मंदिर के पास गदाधर का जीर्ण मंदिर है जिसकी छत में आबू के विमल शाह के मंदिर जैसी बारीक कारीगरी की गई है। यहाँ तालाब की पाल के पास एक पहाड़ पर देवी का प्राचीन मंदिर है। तालाब की पाल पर ब्राह्मणों तथा ठाकुरों की छतरियां बनी हैं। एक पुराना सुंदर कुण्ड भी है, उसके सामने सोमेश्वर महादेव का मंदिर है। इसके सभा मण्डप में दो विष्णु की और एक वामन की मूर्ति है। निकट ही स्थित दूसरे शिवालय में शिव की खण्डित त्रिमूर्ति तथा पार्वती की मूर्ति है। मंदिर के पास नवग्रह की पौने दो फुट ऊंची मूर्तियां दो टुकड़ों में बनी पड़ी हैं। एक अन्य शिला पर भी नवग्रहों की मूर्तियां अंकित हैं। कुंड के निकट के लघु देवालय में शेषनाग की खण्डित मूर्ति है।
बांसवाड़ा से लगभग 20 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में स्थित नौगामा नामक गांव का प्राचीन नाम नूतनपुर है। यहाँ ईस्वी 1514 में महारावल उदयसिंह के समय का बना हुआ शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर दर्शनीय है। यह जैनियों का प्रमुख तीर्थ हैं।
कालिंजरा गांव बांसवाड़ा से लगभग 25 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में हारन नदी के दाहिने किनारे पर बसा है। यहाँ एक अति प्राचीन विष्णु मंदिर था। कृष्णाचार्य नामक तालाब की पाल पर एक प्राचीन शिव मंदिर है जिसका जीणोंद्धार बांसवाड़ा के नागर मणिशंकर ने करवाया था। यहाँ एक बड़ा शिखरबन्द पूर्वभिमुख जैन मंदिर है। उसके दोनों पाश्र्वों में तथा पीछे एक-एक शिखर बन्द मंदिर बना है और चारों तरफ देव कुलिकाएं हैं। यह मंदिर दिगम्बर जैनियों का है तथा ऋषभदेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें छोटी-बड़ी कई मूर्तियां हैं। एक मंदिर में पाश्र्वनाथ की खड़ी मूर्ति है।
बांसवाड़ा से 16 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में छींछ नामका एक प्राचीन गांव है। यहाँ विक्रम की बारहवी शती का ब्रह्माजी का मंदिर है जिसका विशाल सभा मण्डप, कलात्मक स्तम्भ तथा 6 फुट ऊंची ब्रह्माजी की प्राचीन और सुन्दर मूर्ति रखी हुई है। इस मंदिर में लक्ष्मीनारायण, शेषशायी विष्णु, ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर की मूर्तियां लगी हैं। मंदिर के बाहर संगमरमर के छः टुकड़ों पर नवग्रहों की मूर्तियां उत्कीर्ण थीं जिनका ऊपरी भाग तोड़ दिया गया है। मंदिर से सटा हुआ एक तालाब है जिस पर ब्रह्मा घाट बना है। गांव के निकट आंबलिया तालाब की पाल पर छींछ देवी का प्रचीन मंदिर है।
जलियावाला बाग के नाम से प्रसिद्ध मानगढ़ धाम वागड़ में स्वाधीनता संग्राम के अग्रदूत, महान समाज सुधारक क्रान्तिचेता व्यक्तित्व गोविन्द गुरू की साधनास्थली के रूप में विख्यात है। सामाजिक कुरीतियों, दमन, शोषण से पीड़ित समाज की मुक्ति के लिए इनके द्वारा 1903 ई. में ’संप सभा’ नामक संगठन की गतिविधियों के केन्द्र के रूप में मानगढ़ ने प्रसिद्धि प्राप्त की। इनके नेतृत्व में 1913 ई. में हजारों आदिवासी भक्त समाज सुधार गतिविधियों की चर्चा में व्यस्त थे तभी अंग्रेजी फौज के कर्नल शटन के आदेश पर रियासती एवं अंग्रजी फौज ने मिल कर मानगढ़ पहाड़ी को घेर कर फायरिंग का आदेश दे दिया। देखते ही देखते 1500 से ज्यादा आदिवासी भक्त शहीद हो गये। पांव में गोली लगने पर गुरू गोविन्द भी घायल हो गये और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जन समूह को एकत्रित करने एवं आगजनी करने का आरोप लगा कर उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया। शहीदों की याद में यहाँ शहीद स्मारक बना है तथा वर्ष में एक बार मेले का आयोजन होता है। जिसमें आदिवासी भक्त बड़ी संख्या में भाग लेते है। यहाँ गोविन्द गुरू के नाम पर एक पैनोरमा बना कर पर्यटक केन्द्र के रूप में मानगढ़ धाम को विकसित किया गया है।
अथाह जल राशि एवं पिक्चरव्यू दृश्य के कारण माही डेम आधुनिक विकास का तीर्थ बन गया है। यहाँ का खूबसूरत दृश्य अत्यंत मन भावन लगता है। इसका प्रताप है कि आज वागड़ क्षेत्र सरसब्ज बन गया है। बरसात के दिनों जब गेट खोले जाते हैं उस समय जल निवासी का दृश्य देखते ही बनता है। सिंचाई सुविधा एवं जल विधुत उत्पादन में योगदान करने वाले यह डेम एक आकर्षक पर्यटन स्थल भी बन गया है।
शांति और सकून के लिए बांसवाड़ा शहर के समीप यह एक रमणिक उद्यान है। रतलाम रोड़ पर कागदी नदी के किनारे स्थित इस स्थान का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है। पानी के किनारे हरा-भरा उद्यान सभी के लिए मनोरंजन एवं आकर्षण का केन्द्र है। आकर्षक प्रवेश द्वार के साथ बना अशोक स्तंभ दूर से आकर्षित करता है। तरणताल एवं बच्चों के झूले भी हैं। परिसर की टेकरी पर शिवालय भक्तों की श्रद्धा का केन्द्र है। मानसून के समय यहाँ की सुंदरता में चार-चाँद लग जाते हैं। शहर के उत्तर में डायलाब एवं दक्षिण में राज तालाब भी दर्शनीय हैं। शहर के पूर्वी छोर पर बने तालाब को बाई तालाब के नाम जाना जाता है। इससे कुछ दूरी पर पूर्व शासकों की छतरियां बनी हैं। शहर एवं आस पास अनेक प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था का केन्द्र हैं।
बांसवाड़ा-आंबापुरा मार्ग पर 25 किमी. दूर सिंगपुरा गांव में पहाड़ियों के बीच बहता झरना हरितमा युक्त पहाड़ियों से 360 मीटर ऊॅचाई से गिरता है। बांसवाड़ा से रतलाम रोड़ पर 35 किमी. दूर जुआ फाल के प्राकृतिक नजारे देखते ही बनते हैं। शहरवासी एवं पर्यटक मानसून में, रविवार एवं अन्य दिनों में इनका लुफ्त लेने बड़ी संख्या में पहुँचते है। बांसवाड़ा से 5 किमी पर कडेलिया झरना, 33 किमी. पर झोल्ला झरना एवं 45 किमी. पर गराडिया झरना भी आकर्षण के केन्द्र हैं।
होली मुख्य पर्व है जिस पर आदिवासी गैर नृत्य की अंचल में धूम रहती है। होली के ग्यारहवें दिन भील उत्सव अद्भुत रूप से आकर्षक होता है। मार्च में गोटिया आंबा मेला अंचल का बड़ा मेला है। जिले में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर अन्देश्वर पार्श्वनाथ अतिशय जैन तीर्थ में अन्देश्वर पार्श्वनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है जिसमें 25 हजार लोग भाग लेते हैं। मानगढ धाम, घूडी, रणछोड, कला जी,अंदेश्वर, विट्ठलरेव एवं रथोत्सव मेले जिले के प्रमुख सांस्कृतिक एवं धार्मिक आयोजन हैं।
तलवाडा में तराशी गई काले पत्थर की मूर्तियां एवं कठपुतलियां यहां के प्रमुख हस्तशिल्प हैं।
आवास – भोजन
कुशलबाग पैलेस, सूर्या,अमरदीप पैलेस, रिलेक्स, प्लाजा, नायक
पैलेस,मयंक,मेघदूत,संकल्प रेजीडेंसी,साई इंटरनेशनल, राज पैलेस आदि प्रमुख होटल हैं।इनमें सभी प्रकार का भोजन उपलब्ध हैं। राजस्थानी भोजन खूब पसंद किया जाता है।
कैसे पहुंचे
समीपस्थ हवाईअड्डा 165 किमी दूर उदयपुर में स्थित है। समीपस्थ रेलवे स्टेशन 70 किमी दूर मध्यप्रदेश के रतलाम में है जो देश के बड़े शहरों से रेल द्वारा जुड़ा है। बस सेवाओं से रतलाम, गुजरात के दोहोद और उदयपुर से अच्छी तरह जुड़ा है।
(लेखक लगभग हर विषय पर अधिकार के साथ लिखते रहते हैं।)