प्यासा। गुरूदत्त साहब की बनाई एक मास्टरपीस फिल्म। अबरार अल्वी जी का दिल को छू लेने वाला लेखन। 22 फरवरी 1957 को प्यासा रिलीज़ हुई थी। आज इस फिल्म को रिलीज़ हुए 67 साल पूरे हो गए। इस फिल्म का गीत,”जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला। हमने तो जब कलियां मांगी काटों का हार मिला।” कितना दर्द और कितना मतलब समेटे हुए है खुद में।
साहिर लुधियानवी साहब ने ज़ज़्बातों के समंदर में जाने कितने गोते लगाए होंगे जब उन्होंने ये गीत लिखा होगा। इसी फिल्म का दूसरा गीत,”जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं” भी साहिर साहब की मास्टरी का एक नायाब नमूना है। वैसे इसी फिल्म में है वो ऐवरग्रीन चंपी सॉन्ग जिसे बॉलीवुड के कॉमेडी लैजेंड जॉनी वॉकर जी पर फिल्माया गया है।
जी हां वही,”आजा प्यारे पास हमारे काहे घबराए।” ये गीत इस फिल्म का हिस्सा कैसे बना, इसके पीछे की कहानी बड़ी ही ज़बरदस्त है। ये कहानी एक दूसरे लेख में कहूंगा। कोशिश रहेगी कि आज शाम तक ही कह दूं। वर्ना फिर किसी दिन। और वो कहानी आपको बहुत पसंद आएगी। गीत-संगीत की बात रहो रही है तो एस.डी.बर्मन जी का ज़िक्र ना करने की हिमाकत मैं भला कैसे कर सकता हूं।
बर्मन दा को कोटि-कोटि नमन मैं करना चाहूंगा यहां पर। प्यासा को कल्ट क्लासिक बनाने में उनके संगीत का बहुत बड़ा योगदान है। चलिए आज आपको इस शानदार फिल्म से जुड़ी कुछ बड़ी ही रोचक कहानियां बताता हूं। आपको ये कहानी पसंद ना आएं तो आप तुरंत किस्सा टीवी को अनफॉलो कर दीजिएगा। चाहे तो ब्लॉक कर दीजिएगा। लेकिन वादा कीजिए कि अगर पसंद आई तो इस पोस्ट को लाइक शेयर ज़रूर करेंगे।
प्यासा की ओरिजिनल कहानी कशमकश नाम से लिखी गई थी। और जानते हैं वो कहानी किसने लिखी थी? गुरूदत्त साहब ने खुद। जी हां, गुरूदत्त जी ने 22 साल की उम्र में प्यासा की कहानी लिखी थी। और जब इस कहानी पर फिल्म बनाने की बारी आई तो गुरूदत्त जी ने इसका नाम प्यास रखा। लेकिन कुछ दिनों बाद उन्हें लगा कि इस फिल्म का नाम प्यास नहीं, प्यासा रखना चाहिए। क्योंकि प्यासा नाम इसकी कहानी को सही से डिस्क्राइब करेगा।
और लीजिए, अबरार अल्वी जी ने उस छोटी सी कहानी को पूरी फिल्म में बदल दिया। वैसे, गुरूदत्त साहब इसमें एक्टिंग नहीं करना चाहते थे। वो तो सिर्फ डायरेक्शन का ज़िम्मा संभालना चाहते थे। गुरूदत्त चाहते थे कि इस फिल्म में ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार से एक्टिंग कराई जाए। पहले तो दिलीप राज़ी हो गए थे। लेकिन ऐन मुहुर्त शॉट वाले दिन उन्होंने सेट पर आने से इन्कार कर दिया। शायद ब्रह्मांड ने तय कर लिया था कि इस फिल्म में गुरूदत्त को ही अभिनय करना है। दिलीप कुमार जब नहीं आए तो गुरूदत्त ने फैसला किया कि वो ही इस फिल्म में एक्टिंग भी करेंगे।
प्यासा की लीडिंग लेडीज़ हैं वहीदा रहमान और माला सिन्हा। लेकिन जब इस फिल्म की कास्टिंग पर काम चल रहा था तो गुरूदत्त साहब के दिमाग में एक ही ख्याल था कि इस फिल्म में नर्गिस जी और मधुबाला जी को लिया जाएगा। मगर जब उनसे बात नहीं बनी तो माला सिन्हा और वहीदा रहमान जी से बात की गई। ये दोनों मान भी गई। लेकिन कुछ दिनों तक ये खींचतान भी चलती रहेगी कि कौन सी एक्ट्रेस कौन सा किरदार निभाएगी।
माला सिन्हा नहीं चाहती थी कि वो मिसेज घोष का कैरेक्टर प्ले करें। ना ही वहीदा रहमान उस कैरेक्टर को निभाना चाहती थी। मगर गुरूदत्त जी के मान-मनौव्वल करने के बाद फाइनली माला सिन्हा जी मीना सिंह घोष का किरदार निभाने के लिए राज़ी हो ही गई। और वही हुआ भी जिसका माला सिन्हा को डर था। चूंकि मीना सिंह घोष का कैरेक्टर निगेटिव शेड वाला था। तो मीना कुमारी जी को काफी नफरत भरे पत्र उस दौरान मिले थे।
प्यासा में गुरूदत्त जी के कैरेक्टर विजय का जिग्री दोस्त होता है श्याम। ये कैरेक्टर उनके असिस्टेंट डायरेक्टर रहे श्याम कपूर जी ने निभाया था। हालांकि पहले गुरूदत्त चाहते थे कि ये कैरेक्टर उनके जिग्री दोस्त जौनी वॉकर निभाएं। मगर किन्हीं कारणों से जॉनी वॉकर इस रोल में नहीं आ सके। तब गुरूदत्त ने जॉनी वॉकर जी को मालिश वाले अब्दुल सत्तार के रोल में लिया। और जैसा कि मैं ऊपर बता ही चुका हूं कि प्यासा फिल्म से उनके जुड़ने की कहानी बड़ी ज़बरदस्त और दिलचस्प है, तो वो सारा किस्सा मैं आपको किसी और पोस्ट में बताऊंगा। कोशिश करूंगा कि आज ही। वर्ना जल्द से जल्द।
खैर, अगली कहानी पर आते हैं। चूंकि वहीदा रहमान जी का कैरेक्टर एक तवायफ है तो गुरूदत्त चाहते थे कि उनके सीन्स किसी रियल लाइफ रेड लाइट एरिया में शूट किए जाएं। उन्होने कोशिश भी की थी कलकत्ता के एक रेड लाइट एरिया में जाकर शूटिंग करने की। लेकिन वहां कुछ दलाल, जिन्हें अंग्रेजी में पिम्प कहा जाता है, उन्होंने शूटिंग नहीं होने दी। उन्होंने तो गुरूदत्त जी की टीम पर हमला भी कर दिया था। तब मजबूरी में गुरूदत्त जी को मुंबई में सेट लगाकर प्यासा की गुलाबो यानि वहीदा रहमान जी के दृश्य सूट करने पड़े।
गुरूदत्त जी ने जब प्यासा की शूटिंग कंप्लीट करके, इसकी फुटेज को एडिट करके कुछ डिस्ट्रीब्यूटर्स को दिखाई तो डिस्ट्रीब्यूटर्स ने उन्हें सलाह दी कि इसमें आपको कोई रोमांटिक सा गीत भी रखना चाहिए। क्योंकि बहुत जल्दी ही ये फिल्म काफी डार्क और निराशा में डूबी कहानी लग रही है। गुरूदत्त जी को भी ये बात एकदम सही लगी। और कुछ ही देर में साहिर साहब से कोई गीत लिखने को कहा गया। जो कि उन्होंने लिखा भी।
बर्मन दा ने भी फटाफट गाना संगीतबद्ध किया। और उस गाने के बोल थे,”हम आपकी आंखों में इस दिल को बसा दें तो। हम आपकी पलकों पे इस दिल को सजा दें तो।” ये गीत गीता दत्त जी व रफी साहब ने गाया था। आपने भी सुना ही होगा। कितना प्यारा गीत है भाई साहब। ये थे उस ज़माने के लोग। कितने ज़बरदस्त फ़नकार। हर एक अपने फ़न का माहिर।
प्यासा किस दर्जे की फिल्म है इसका एक अंदाज़ा आप ऐसे भी लगा सकते हैं कि साल 2005 में प्रतिष्ठित टाइम मैगज़ीन ने इस फिल्म को दुनिया की सौ सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक माना था। आमिर खान इस फिल्म को अपनी पसंदीदा टॉप 10 फिल्मों में से एक बताते हैं। और क्या-क्या बताऊं। बहुत कुछ है इस फिल्म के बारे में लिखने-कहने को। लेकिन सबकुछ एक ही पोस्ट में कहां लिख सकूंगा। इसलिए फिलहाल यहां विराम लेता हूं।
अगले साल इसी दिन प्यासा फिल्म की मेकिंग से जुड़ी अन्य कहानियां भी मैं आप साथियों संग ज़रूर साझा करूंगा। और हां, वो जॉनी वॉकर साहब की कहानी तो मैं पहले ही आपको बताउंगा। पर्सनली वो कहानी मुझे बहुत पसंद आई थी। तो अब आप बस इतनी मेहरबानी कीजिए। कमेंट सेक्शन में बता दीजिए कि आपको प्यासा फिल्म की ये कहानियां कैसी लगी। और लाइक शेयर भी कर दीजिए।
साभार- https://www.facebook.com/share/p/hiwy31Y1qo6nn2rh/?mibextid=xfxF2i से