Thursday, May 9, 2024
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17 रुपए से शुरु की दुकान…

जयपुर से 30 किमी दूर बेगरू गांव के रहने वाले राधा गोविंद ने तो कई मुश्कलें झेली, हालात ऐसे भी बने कि उन्होंने अपनी जिंदगी को खत्म करने तक का फैसला कर लिया था, लेकिन बार-बार फेल होने के बावजूद उन्होंने कोशिश जारी रखी और आज करोड़ों का कारोबार खड़ा करने में सफल रहे।

जयपुर की ब्लॉक प्रिटिंग के दम पर उन्होंने मुबंई जैसे शहर में अपने कई आउटलेट्स खोल लिए। पुश्तैनी काम को नया रंग दे दिया। जो परिवार कभी दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहा था आज करोड़ों का कारोबार संभाल रहा है। आज कहानी ‘ओहो ! जयपुर’ के फाउंडर राधा गोविंद के संघर्ष से सफलता तक की…

राधा गोविंद का परिवार 500 साल से ज्यादा पुरानी अपनी पुश्तैनी ब्लॉक प्रिंटिंग का कारोबार करता रहा है। उनके दादा-परदादा सब इस कारोबार से जुड़े थे। कारोबार को परिवार आगे बढ़ा रहा था, लेकिन समय के साथ चीजें बदलने लगी।

काम बंद होने लगा, कारोबार पूरी तरह से ठप हो गया। काम बंद हुआ तो परिवार भी मुश्किल में आ गया। खाने-पीने तक की दिक्कत होने लगी। उस वक्त राधा-गोविंद केवल 7-8 साल के थे। कर्जदार घर पर अपना उधार मांगने आने लगे। मां को दूसरों से आटा-चावल मांगना पड़ रहा था। राधा गोविंद चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे।

घर की हालत खराब होती जा रही था। फीस नहीं भर पाने की वजह से उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। उन्हें इस बात का इतना दुख हुआ कि वो घर छोड़कर भागने का प्लान बनाने लगे, लेकिन कोई रास्ता ना दिखा तो वापस घर लौट आए।

घर लौटे तो देखा मां बेसुध पड़ी है। उन्होंने ठान लिया कि वो हालात से भागने के बजाए उसका सामना करेंगे। उन्होंने अपने गुल्लक से 17 रुपये किसी तरह से जोड़े और घर के चबूतरे पर ही एक छोटी सी दुकान खोलकर चॉकलेट-बिस्कुट बेचने लगे।

राधा गोविंद समझ चुके थे घर किस्मत बदलनी है तो घर से बाहर निकलना पड़ेगा। उन्होंने मुंबई का रुख किया। दो जोड़ी कपड़ा और एक चप्पल लेकर मुंबई पहुंच गए। वहां न कोई जान पहचान का था, न कोई काम।

दो-तीन रातें स्टेशन पर गुजारी। जब भी कोई सूट-बूट वाला दिख जाता, उससे काम की भीख मांगते थे। मुंबई से उनकी किस्मत बदल दी। राधा गोविंद ने रात-दिन एक कर पैसे कमाए और 45 हजार रुपये लेकर वापस अपने गांव गए।

बाद में उन्होंने मुंबई की एक चॉल में दो सिलाई मशीन से कपड़ा बनाने की शुरुआत की थी। साल 2014-15 में उन्होंने गांव के कारीगरों से कपड़े बनवाना शुरू किया। उन कपड़ों को वो मुंबई लेजाकर बेचते थे। हाथों की कढ़ाई से बने कपड़े मुंबई में खूब बिकने लगे। आज वह मुंबई जैसे महानगर में ‘ओहो! जयपुर’ के 4 आउटलेट्स चला रहे हैं। उनका सालाना टर्नओवर 8 करोड़ से अधिक का है। इसके साथ ही उन्होंने 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दिया। आज वह ऐसे लोगों कोकाम देते हैं, जिन्हें अन्य लोग काम देने से कतराते हैं। इनमें बुजुर्ग, विधवा सब शामिल हैं।

आज उनका सालाना बिजनेस 8 करोड़ से अधिक का हो चुका है। ऑफलाइन आउटलेट्स के अलावा ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया के जरिए ‘ओहो ! जयपुर’ के कपड़ों की भारी डिमांड है।

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