भारत के इतिहास में कुछ ऐसी घटनाएँ घटीं हैं जिनका विवरण आज भी रोंगटे खड़ी कर देता है । दिल्ली में नादिरशाह द्वारा किया गया नरसंहार ऐसी घटना है जिसका उदाहरण दुनियाँ के इतिहास में कहीं नहीं। केवल एक दिन में तीस हजार स्त्री पुरुष और बच्चे मार डाले गये थे । लूट और बलात्कार की तो कोई सीमा नहीं। इन हमलावर सैनिकों की क्रूरता से दिल्ली का कोई घर सुरक्षित न बचा था।
नादिर शाह के ये अत्याचार अकेली दिल्ली में नहीं हुये थे । पंजाब से दिल्ली तक लाशों के ढेर लगाये गये थे । रास्ते के हर गाँव और घर में लूट हुई थी । यह लूट दोनों प्रकार की थी धन की भी थी और स्त्री बच्चों की भी । लेकिन दिल्ली में तो उसने सारी हदें तोड़ दी थीं। बादशाह को बंधक बनाकर नीचे बिठाया । शाही जनानखाने की सभी स्त्रियों को बेइज्जत किया और ढोल बजाकर दिल्ली में कत्लेआम का आदेश दिया था । सशस्त्र सैनिक और घुड़सवार दिल्ली की बस्तियों में टूट पड़े। उस दौर में एक तो विजित सेना वैसे ही पराजित राज्य पर भारी मनमानी किया करती थी । उस पर यदि किसी क्रूर और बेरहम सेनापति ने कत्लेआम का आदेश दिया तो सहज समझा जा सकता है कि जनता के साथ क्या घटा होगा। इस कत्लेआम का विवरण इतिहास की प्रत्येक पुस्तक में है । हाँ संख्या और अवधि में थोड़ा अंतर है । कहीं पूरे चौबीस घंटे तक कत्लेआम होने का लिखा है तो कहीं एक दिन । एक विवरण में दोपहर से शाम तक छै घंटे माना है । इसी तरह मृतकों की संख्या कहीं बीस हजार है तो कहीं एक लाख पर अधिकांश इतिहासकार तीस हजार लगभग मानते हैं। स्त्री बच्चों का अपहरण करके ले जाने और गुलामों के बाजार में बेचने का आकड़ा सबने लगभग दस हजार माना है ।
नादिर शाह मूलतः खुरासान का रहने वाला था । यह क्षेत्र उत्तर पूर्वी ईरान में पड़ता है । उसका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। पिता किसान थे । पिता की मृत्यु नादिर के बाल्यकाल में ही हो गई थी। कहा जाता है कि उसकी माँ को उज्बेकों ने गुलाम बना लिया था। किसी तरह नादिर भाग निकला और अफ्शार कबीले में शामिल हो गया था । इस कबीले का मुख्य धंधा युद्ध और लूट था । वे भाड़े पर युद्ध करते थे । इसके लिये वेतन नहीं मिलता था । लूट के माल में भागीदारी होती थी । नादिर ने इस कबीले में रहकर अपना एक समूह बना लिया था और आसपास के कबीलों में लूट मचाने लगा । धीरे धीरे उसका दल एक सैनिक समूह में बदल गया ।
उन दिनों ईरान की सत्ता चारों ओर के हमलों से घिरी थी । एक ओर उज्बेकों से तो दूसरी ओर अफगानों से, रूसियों के भी हमले यदाकदा हुये । नादिर का दल इतना प्रभावशाली हो गया था कि ईरान के शाह ने सहायता मांगी। नादिर बेहद क्रूर किन्तु दूरदर्शी था । उसके दल ने हमलावरों से मुकाबला किया और विजय मिली । शाह ने प्रसंशा की । नादिर ने मौके का लाभ उठाया और अपना दल बढ़ा लिया । यह नादिर की दूरदर्शिता थी कि ईरान की सीमाएँ न केवल सुरक्षित हुई अपितु बिस्तार भी हुआ । वह भले शासक न बना पर ईरानी सत्ता के सूत्र और शक्तियाँ उसके हाथ आ गईं । उसे “शाह” की उपाधि और सम्मान मिला । ईरान को सुरक्षित करके नादिरशाह भारत विजय और लूट अभियान पर निकला।
यह दिसम्बर 1738 के दिन थे । तब भारत की सत्ता मुगल बादशाह मुहम्मद शाह आलम के हाथ में थी। नादिर शाह ने कान्धार से प्रवेश किया । यहाँ उसे किसी बड़े प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा। सत्ता के आंतरिक संघर्ष में मुगल सत्ता बहुत कमजोर हो गई थी । फिर वह काबुल के रास्ते पंजाब में घुसा । मुगल सेना लगातार पीछे हटती गई । यहाँ नादिरशाह की सेना और बढ़ गई थी । लूट के लालच में अफगान सैनिकों की अनेक टुकड़ियाँ पाला बदलकर नादिर के साथ हो गई। कुछ कबीले भी जुड़ गये । पंजाब में लूटमार और हत्याएँ करता हुआ आगे बढ़ा। दिल्ली को बचाने के लिये मुगल सेना ने करनाल में मोर्चा बंदी कर रखी थी। करनाल से दिल्ली लगभग 114 किलोमीटर दूर है । यहाँ आते आते नादिरशाह की सेना कयी गुना हो गई थी । वह मानों आँधी की भाँति दिल्ली की ओर बढ़ रहा था । वह 24 फरवरी 1739 का दिन था । मुगल सेना मुकाबला न कर सकी और केवल तीन घंटे में मुगल सेना ने घुटने टेक दिये ।मुगल बादशाह ने समर्पण कर दिया । मुगल सेना से हथियार डाल दिये । बादशाह के साथ बंदियों से जैसा व्यवहार हुआ ।
नादिरशाह विजेता होकर दिल्ली आया । उसने 20 मार्च 1739 को दिल्ली में प्रवेश किया । सीधा सिंहासन पर बैठा। उसने जनानखाने और मालखाने पर कब्जा करने का आदेश दिया । सेना ने पूरे नगर में लूट और महिलाओं का अपहरण शुरु किया । नादिरशाह जहाँ भी हमला करता था वहाँ से धन के साथ बच्चों और महिलाओं को लूट कर लाता था जिन्हें गुलामों के बाजार में बेचा जाता था। इसी लूट के दौरान 21 मार्च को चाँदनी चौक में एक घटना घटी । लोगों ने प्रतिकार किया जिसमें नादिरशाह के कुछ सैनिक मारे गये । इसके साथ यह अफवाह फैली कि किले में एक महिला ने नादिरशाह का कत्ल कर दिया । यह समाचार नादिर के पास पहुंचा तो वह आग बबूला हो गया उसने बादशाह को अपने कदमों में झुकाया और कत्लेआम का आदेश दिया । वह 22 मार्च 1739 का दिन था । नादिरशाह की सशस्त्र सेना दिल्ली के निहत्थे और रक्षाहीन नागरिकों पर टूट पड़ी।
जिस सैनिक के हाथ में बंदूक थी उसने बंदूक चलाई । जिसके हाथ में तलवार थी उसने तलवार चलाई। यदि किसी ने सुरक्षा की दृष्टि से दरबाजे बंद किये तो दरबाजे तोड़ दिये गये । बेगुनाह नागरिकों की लाशे बिछा दीं गईं । दिल्ली के चांदनी चौक, दरीबा कलां , फ़तेहपुरी, फ़ैज़ बाज़ार, हौज़ काज़ी, जौहरी बाज़ार और लाहौरी, अजमेरी और काबुली गेट जैसे घनी आबादी वाले इलाके लाशों के ढेर लग गये । उस एक दिन में दिल्ली के लगभग तीस हजार स्त्री, पुरुषों और बच्चों की हत्या कर दी गई थी। लगभग दस हजार स्त्री-बच्चों का अपहरण करके ले जाया गया । जिन्हे बाद में गुलामों के बाजार में बेचने भेज दिया गया । नादिर के सैनिकों ने जैसा अत्याचार दिल्ली में किया वैसा ही अत्याचार किले के भीतर जनानखाने में हुआ । शाही परिवार की महिलाओं ने भारी अपमान झेला । छोटी बच्चियाँ भी सुरक्षित न रह सकीं । कान्धार से लेकर दिल्ली तक अपनी इस पूरी यात्रा में नादिरशाह ने अपार धन लूटा । कोहिनूर हीरा सुप्रसिद्ध मयूर सिंहासन (तख्ते ताऊस) भी अपने साथ फारस ले गया था ।