11 दिसंबर 1931 को जब मध्यप्रदेश के गाँव कुचवाड़ा (जिला रायसेन) में ओशो का जन्म हुआ तो कहते हैं कि पहले तीन दिन न वे रोए, न दूध पिया। उनकी नानी ने एक ज्योतिषी से ओशो की कुंडली बनवाई, जो अपने आप में काफी अद्भुत थी। कुंडली पढ़ने के बाद ज्योतिषी ने कहा- ‘यदि यह बच्चा सात वर्ष जिंदा रह जाता है, उसके बाद ही मैं इसकी पूर्ण कुंडली बनाऊँगा- क्योंकि इसके लिए सात वर्ष से अधिक जीवित रहना असंभव ही लगता है। ज्योतिष ने साथ ही यह भी कहा था कि 7 वर्ष की उम्र में बच गया तो 21 में मरना तय है, लेकिन यदि 21 में भी बच गया तो यह विश्व विख्यात होगा।’ उनके पिता का नाम देवेंद्र जैन और माता जी का नाम लक्ष्मी था। उनका वास्तविक नाम रजनीश चन्द्र मोहन था । जिस दिन उनका जन्म हुआ पूरे गाँव मेंपानी भरा था और उनके नाना की झोपड़ी भी पूरी पानी में डूबी हुई थी। जिस खटिया पर उनका जन्म हुआ उसके चारों पाये भी पानी में डुबे हुए थे, लेकिन इसे चमत्कार कहें या संयोग कि ओशो के जन्म लेते ही पानी उतरना शुरु हो गया और पूरा गाँव जो इस सैलाब से दहशत में था, इसे इस नवजन्मे बालक का चमत्कार मानने लगा।
सात वर्ष की उम्र में ओशो के नाना की मृत्यु हो गई तब ओशो अपने नाना से इस कदर जुड़े थे कि उनकी मृत्यु उन्हें अपनी मृत्यु लग रही थी वे सुन्न और चुप हो गए थे लगभग मृतप्राय। लेकिन वे बच गए और सात वर्ष की उम्र में उन्हें मृत्यु का गहरा अनुभव हुआ। 14 वर्ष की उम्र में उनके शरीर पर एक जहरिला सर्प बहुत देर तक लिपटा रहा। फिर 21 वर्ष की उम्र में उनके शरीर और मन में जबरदस्त परिवर्तन होने लगे उन्हें लगा कि वे अब मरने वाले हैं तो एक वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गए, जहाँ उन्हें संबोधि घटित हो गई।
गांव में प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे जबलपुर आगए। 1951 में जब 20 साल के ओशो ने अपने प्रवचनों से लोगों को आकर्षित करना शुरु कर दिया था। 1957 में उन्होंने दर्शन शास्त्र से एम. ए. किया और रायपुर के एक संस्कृत कॉलेज में पढ़ाने लगे। अगले साल वे जबलपुर विश्वविद्यालय में व्याख्याता हो गए। उसके बाद तीन साल में ही वे आचार्य रजनीश हो गये। 1962 में जीवन जागृति केन्द्र के नाम से संस्था बनाई। 1966 में उन्होंने प्राध्यापकी छोड़कर अपनी संस्था पर ध्यान केन्द्रित किया और 1970 में मुंबई आ गये। महेश भट्ट, विनोद खन्ना, विजय आनंद जैसी फिल्मी हस्तियां उनके सम्पर्क में आये और यहां वो भगवान कहे जाने लगे। उनके शिष्यों ने पुणे में सात एकड़ जमीन खरीद कर वहां आश्रम विकसित किया। 1974 में ओशो यहां आ गए।
ओशो के अमेरिकी शिष्यों ने 1990 में अमेरिका के ओरेगन राज्य में रजनीशपुरम् के नाम से शहर बसाने के लिए 64 हजार एकड़ खरीदी। जून,1981 में ओशो यहां पहुंच गये और 5 हजार भक्तों ने इस रेगिस्तान को हरा-भरा कम्युन बना दिया। उनके बढ़ते प्रभाव से कट्टरपंथी ईसाई धर्मगुरू और नेता घबरा गये। सरकार पर दबाब बनाया और उन पर अप्रवास नियमों का उल्लघंन के अलावा 35 आरोप लगाये गये। ओशो से अमेरिकी सरकार ऐसी भयभीत हुई कि पोप के निर्देश पर तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया था। गिरफ्तारी के समय अमेरिका सरकार ने उन्हें थेलियम नामक धीमा जहर दिया गया था। एक आरोप यह भी था कि गाड़ियों के इतने बड़े बेड़े में इतनी सारी रोल्स रायस कारें कहां से आई। ओशो के पास उस समय 99 रोल्स रॉयस कारें थी।
जुलाई, 1986 में ओशो पुणे आ गये। दिसम्बर 1988 में उन्होंने अनुरोध किया उन्हें केवल ओशो के नाम से पुकारें ना कि भगवान रजनीश के नाम से। 19 जनवरी,1990 को लम्बी बीमारी और चुप्पी के बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया।
ओशो ने अपने जीवनकाल में दुनिया के तमाम रहस्यदर्शियों, अध्यात्मिक गुरुओं, वैज्ञानिकों, संतों, महापुरुषों और चर्चित शख्सियतों की पुस्तकें, उनकी जीवनियाँ पढ़ी और उनके सृजन को अपनी एक नई दृष्टि देकर चिंतन की एक नई धारा प्रवाहित की। दुनिया का ऐसी कोई प्रमुख किताब या शख्सियत नहीं होगी जिसे ओशो ने नहीं पढ़ा होगा और उस पर चर्चा नहीं की होगी। ओशो ने हर एक पाखंड पर चोट की। सन्यास की अवधारणा को उन्होंने भारत की विश्व को अनुपम देन बताते हुए सम्यक सन्यास को पुनर्जीवित किया।
ओशो ने सैकड़ों पुस्तकें लिखीं, हजारों प्रवचन दिये। उनके प्रवचन पुस्तकों, आडियो कैसेट तथा विडियो कैसेट के रूप में उपलब्ध हैं। अपने क्रान्तिकारी विचारों से उन्होंने 45 देशों में लगभग 5 करोड़ अनुयायी और शिष्य बनाये। आज 350 ध्यान केन्द्र ओशो के विचारों को विश्व भर में फैला रहे हैं। भारत के बुद्धिजीवी और शिक्षित वर्ग के अलावा विदेशों में लोग ओशो के दिवाने हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, आदि देशों के अलावा जापान, इंडोनेशिया, नेपाल, श्रीलंका जैसे देशों में भी ओशो के अनुयायियों की बहुत बड़ी संख्या है।
ओशो के प्रवचनों की करीब 600 पुस्तकें हैं। संभोग से समाधि की ओर इनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद पुस्तक है। इनके नाम से कई आश्रम चल रहे है। उनकी महात्मा गांधी पर की गयी टिप्पणियों ने देश भर में हलचल मचा दी थी। ओशो ने जीवन में कभी कोई किताब नहीं लिखी। मगर दुनिया भर में हुए संतों और अध्यात्मिक गुरुओ की श्रृंखला में वे एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिनका बोला गया एक-एक शब्द प्रिंट, ऑडिओ और वीडिओ में उपलब्ध है। आज ओशो एक ऐसी शख्सियत हैं जिनको दुनिया भर में सबसे अधिक पढ़ा जाता हैं। उनकी किताबों का सबसे ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। ओशों की पुस्तकों के लिए दुनिया की 54 भाषाओं में 2567 प्रकाशन करार हुए हैं। ओशो साहित्य की सालाना बिक्री तीस लाख प्रतियों तक होती है। ओशो की पुस्तकों का पहला मुद्रण 25 हजार तक होना मामूली बात है। ओशो की पुस्तक ‘जीवन की अभिनव अंतदृष्टि’ सारी दुनिया में बेस्ट सेलर साबित हुयी है। वियतनाम और इंडोनेशिया में इसकी दस लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। पूरे देश में आज पूना (जहाँ ओशो का आश्रम है) एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ से सबसे अधिक कोरियर और डाक जाती है।
ओशोः एक नक्षत्र जो पृथ्वी पर उतरा
एक निवेदन
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