एस जयशंकर व समीर सरन
भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक मुद्दों पर बहस करने का भारत का सबसे अग्रणी सम्मेलन यानी रायसीना डायलॉग अपने दसवें वर्ष में प्रवेश कर गया है। रायसीना डायलॉग अब दुनिया भर के बड़े नेताओं और अहम शख्सियतों के सालाना कैलेंडर का एक अहम हिस्सा बन गया है। हर वो महत्वपूर्ण व्यक्ति इसमें शामिल होना चाहता है, जिनका मकसद दुनिया में बदलाव लाना है। जो चाहते हैं कि वैश्विक व्यवस्था में जो यथास्थिति है, उसे तोड़ा जाए। जो अपने खुद के विश्वास और रुख का बचाव करना जानते हैं और जो एक नई व्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं। भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक मुद्दों पर बहस करने का भारत का सबसे अग्रणी सम्मेलन यानी रायसीना डायलॉग अपने दसवें वर्ष में प्रवेश कर गया है।
एक ऐसे वक्त में जब दुनिया विचारधाराओं, एजेंडे और हैशटैग के इको चैंबर में उलझी हुई है, तब रायसीना डायलॉग इन सबसे आगे बढ़ते हुए अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर ऐसी वैश्विक, समावेशी और विस्तृत बहस करवा रहा है और देश और काल की सीमाओं से भी परे जाती हैं। ये दिल्ली में स्थित भारत का एक ऐसा वैश्विक सार्वजनिक मंच है, जहां आकर बहस करना पूरी दुनिया के लोगों को पसंद है। रायसीना डायलॉग का मकसद बहस की उस परंपरा को संरक्षण और बढ़ावा देना है, जहां आपसी मतभेदों के बावजूद लोग एक-दूसरे से बातचीत करते हैं और उनके नज़रिए को समझने की कोशिश करते हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी ये मानना है कि किसी भी सार्वजनिक मंच या संस्था का इस्तेमाल मानवता की भलाई के लिए होना चाहिए। रायसीना डायलॉग एक ऐसा ही मंच है, जिसका काम अपने तरीके से दुनिया की सेवा करना है।
रायसीना डायलॉग वैचारिक विमर्श को आगे बढ़ाने, आपसी सहयोग और साझा जिम्मेदारी की भावना बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहा है। ये एक ऐसी जगह है, जहां विचार, नज़रिए, विश्वास और राजनीतिक विचारों की विविधता का सम्मान किया जाता है। रायसीना डायलॉग सदियों पुराने उस भारतीय दृष्टिकोण पर भरोसा करता है, जिसमें ये कहा गया है कि हर इंसान के भीतर अच्छा करने की शक्ति होती है। हम इस बात पर भरोसा करते हैं कि हर किसी का पक्ष सुना जाना चाहिए। उसके सुझावों पर विचार किया जाना चाहिए।
हम ये मानते हैं कि बहुलता, विविधता और सबको साथ लेकर चलने की सोच ही हमें मज़बूत बनाती है। इसी राह पर चलते हुए व्यक्तियों और समाज का भी विकास होता है। ये भारत की भी अपनी कहानी है। भारत भी जानता है कि विविधता के सम्मान में ही एकता की शक्ति होती है। रायसीना डायलॉग नेताओं, राजनयिकों, स्कॉलर्स, नीति निर्माताओं, पत्रकारों और अकादमिक क्षेत्र से जुड़े लोगों को, छात्रों, नौजवानों, वरिष्ठ चिंतकों, बिजनेस और सिविल सोसायटी से जुड़े लोगों को एक ऐसा मंच मुहैया कराता है, जहां वो खुलकर बहस करते हैं। असहमतियों के बावजूद चर्चा और विचार-विमर्श करके बेहतर भविष्य के लिए एक साझा रास्ता खोजें।
एक ऐसे वक्त में जब दुनिया विचारधाराओं, एजेंडे और हैशटैग के इको चैंबर में उलझी हुई है, तब रायसीना डायलॉग इन सबसे आगे बढ़ते हुए अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर ऐसी वैश्विक, समावेशी और विस्तृत बहस करवा रहा है और देश और काल की सीमाओं से भी परे जाती हैं।
आज हम रायसीना के एक दशक पूरा होने का जश्न मना रहे हैं तो ये मौका इस बात को भी याद करने का है कि इस एक दशक के दौरान रायसीना डायलॉग ने संवाद के ज़रिए वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए क्षेत्रीय साझेदारी और अन्तर्रमहाद्वीपीय सहयोग बनाने में मदद की। हर साल तीन दिन हम अलग-अलग ध्रुवों में बंटी दुनिया को एक साथ लाते हैं। इस लेख में हम रायसीना डायलॉग की इस एक दशक की यात्रा की खास शक्तियों और विशेषताओं को रिकॉर्ड कर रहे हैं। उसका दस्तावेज बना रहे हैं। इसे बनाने का सबसे बेहतर तरीका ये है कि हम इस बात को समझें कि रायसीना डायलॉग में शामिल होने के लिए दुनियाभर से आने वाले प्रतिष्ठित लोग इसके बारे में क्या सोचते हैं? आगे दिए गए विचार उन लोगों के हैं, जो रायसीना डायलॉग में शामिल हुए। इसका अनुभव लिया। इस मंच पर अपने विचार साझा किए और इस बात की सराहना की कि इसकी वजह से कितने बदलाव आए।
रायसीना डायलॉग कैसे स्थापित हुआ?
अलग-अलग खांचों में बंटी दुनिया में संवाद और बातचीत की अहमियत को सब स्वीकार करते हैं। इसे प्रमुखता इसलिए मिली क्योंकि वैश्विकरण के दौरान जो वादे किए गए थे, वो पूरे नहीं हुए। लोगों को लगता था कि ये एक ऐसी दुनिया है, जहां उनके रीति-रिवाज और संस्कृतियों का सम्मान किया जाएगा। अलग-अलग विचारों की तारीफ की जाएगी। लोगों के विभिन्न हितों को स्वीकार किया जाएगा, लेकिन ये सारे सपने टूट गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कुछ लोग, देश और संगठन वैश्विकरण की प्रक्रिया को नियंत्रित करने में सक्षम थे और उन्होंने दूसरों के हितों की कीमत पर ऐसा किया। वैश्विक हकीकतों को इस तरह तोड़ा और मरोड़ा गया कि वो कुछ लोगों के संकीर्ण हितों और ज़रूरतों को पूरा कर सकें। ये सपना एक ऐसी नई दुनिया का था, जो विविधताओं से भरी भी हो और समावेशी भी हो लेकिन इसकी बजाए ज़बरदस्ती से सहमति बनाने की कोशिशें हुईं। इसका नतीजा ये हुआ कि दूसरी तरफ से भी पलटवार हुआ। बौद्धिक तौर पर भी और राजनीतिक तौर पर भी। इसका परिणाम हम आज देख रहे हैं। दुनिया अब पहले से भी ज़्यादा गुटों में बंट गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने सोचा कि अब समय आ गया है कि वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाया जाए। बौद्धिक विचार-विमर्श के क्षेत्र में भी निवेश किया जाए। यही वजह है कि रायसीना डायलॉग में पैनल की मेज़बानी राजनीति, उद्योग जगत, मीडिया और सिविल सोसायटी के लोगों के द्वारा की जाती है।
इस समस्या का एक और पहलू है। सारी आधुनिक तकनीक़ी अब उन्हीं देशों में केंद्रित हो गई हैं, जो दुनिया को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। ये तकनीक़ी क्षमताएं अब इन देशों के हितों को पूरा करने में साझेदार बन गई हैं। समय बीतने के साथ-साथ इस तकनीक़ी प्रभुत्व का पूरा फायदा उठाया जा रहा है। ऐसे में इस बात पर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि वैश्विक स्तर पर होने वाली चर्चाओं पर भी इसका असर पड़ रहा है। वैश्विक व्यवस्था की जो श्रेणियां इतिहास के पन्नों में पीछे छूट गईं थी, वो फिर सामने आ गई हैं। इसके साथ ही बहस और उसके ज़रिए संदेश का नया रूप भी उभर रहा है।
इसका लोग के दिमाग पर गहरा असर पड़ा है। जीवन स्तर में सुधार और संसाधनों की लगातर आपूर्ति की चिंताओं ने भी समाज को अपने अंदर देखने पर मज़बूर किया है। घरेलू हितों को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के ऊपर प्राथमिकता दी जा रही है। सामूहिक हितों पर व्यक्तिगत हित भारी पड़ रहे हैं लेकिन जो देश और बहुपक्षीय संस्थाएं खुद को वैश्विक व्यवस्था का संरक्षक मानते हैं, वो अब भी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। इसकी वजह से उन पर कोई भरोसा नहीं कर पा रहा है। तथ्य तो ये है कि दुनिया के स्वयंभू ठेकेदार अब ज़मीनी हक़ीकतों से दूर हो गए हैं। वो अब अपने सभी हिस्सेदारों को एक मंच पर लाने की विश्वसनीयता भी खो चुके हैं।
इसलिए ये ज़रूरी था कि कोई नई संस्था सामने आए और सबको एक साथ लाने में योगदान दे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने सोचा कि अब समय आ गया है कि वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाया जाए। बौद्धिक विचार-विमर्श के क्षेत्र में भी निवेश किया जाए। यही वजह है कि रायसीना डायलॉग में पैनल की मेज़बानी राजनीति, उद्योग जगत, मीडिया और सिविल सोसायटी के लोगों के द्वारा की जाती है। कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष और विदेश मंत्री उभरते हुए इंजीनियरों और बिजनेस की पढ़ाई कर रहे छात्रों के साथ बैठते हैं। रायसीना डायलॉग ऐसा सम्मेलन है, जहां पूर्व और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के देश, क्षेत्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी देश एक मंच साझा करते हैं। यहां विवाद के ऊपर धैर्य को, बड़े-बड़े दावों के ऊपर बेहतर समझ को, व्यक्तिगत राय के ऊपर संतुलित दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी जाती है। रायसीना डायलॉग वास्तव में वैश्विक सोच वाला भारतीय मंच है।
नीति समाधान का ‘भारतीय’ तरीका
इस साल जब दुनियाभर के प्रतिष्ठित लोग रायसीना डायलॉग-2024 के मंच पर जुटे तो भारत के वसुधैव कुटुंबकम (पूरा विश्व एक परिवार है) की सोच की अहमियत और बढ़ गई। आज जब दुनिया कई गुटों में बंट चुकी है तो ऐसे में एकता और मानवता को बढ़ावा देने के लिए वसुधैव कुटुंबकम वाली सोच की ज़्यादा ज़रूरत है। ऐसे में भारत की ये कहानी दुनिया के कई देशों में गूंजती है, क्योंकि उनकी समस्याओं और उनके समाधान का व्यवहारिक रास्ता यही है। भारत निरंतर विकास की जिन चुनौतियों से जूझ रहा है और जिस तरीके से उनका समाधान कर रहा है, वो कई देशों के सामने एक उदाहरण पेश कर रहा है, जिसे वो भी स्वीकार कर सकते हैं। ऐसे में भारत का भी ये दायित्व है कि वो अपनी अब तक की यात्रा, उसके अनुभव, संघर्ष और उनसे सीखे सबक को दुनिया के साथ साझा करने में बड़ा दिल दिखाए।
दुनिया इस वक्त अनिश्चितता के जिस दौर से गुज़र रही है, उसका सामना करते हुए भारत को अपने अनुभवों से सीखना होगा और उसी आधार पर समस्याओं को समाधान खोजना होगा। दुनिया के जो हालात हैं, उसमें कभी कोई हमें एक तरफ खींचेगा, कोई दूसरी तरफ खीचेंगा। ऐसे में हो सकता है भारत को कई बार ऐसे फैसले करने पड़ते हैं, जो हमारे राष्ट्रीय हितों के हिसाब से बेहतरीन ना हो।
G-20 देशों की अध्यक्षता कर भारत ने दुनिया के सामने राष्ट्रवाद और अन्तर्राष्ट्रीयवाद की विश्वसनीय मिसाल पेश की है। भारत इस बात पर भरोसा करता है जो बड़ा देश अपने लोगों की ज़रूरतों को प्रभावी तरीके से पूरा करता है, वो पूरी मानवता की सेवा करता है। इसका एक नमूना तब देखने को मिला जब पूरी दुनिया को दवाइयों की ज़रूरत पड़ी और भारत ने सबसे पहले प्रतिक्रिया दी। ये डिजिटल डिलीवरी का एक उदाहरण था। भारत प्रतिभा के स्रोत, नई खोज करने वाले, बड़े पैमाने पर निर्माण और आपूर्ति करने वाले देश के तौर पर सामने आया। घरेलू मोर्चे पर हुए विकास का असर अन्तर्राष्ट्रीय योगदान में भी दिखा। वैश्विक आर्थिक क्रम में 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने को जो लक्ष्य भारत ने तय किया है, उससे ना सिर्फ़ दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश यानी भारत के लोगों की तकदीर बदलेगी बल्कि इसके साथ ही वो दुनिया के आर्थिक विकास में ‘ग्रोथ इंजन’ का भी काम करेगा। आज उसकी बहुत ज़रूरत है क्योंकि निष्पक्ष वैश्विकरण के इस दौर में हर देश अपने लिए सामरिक तौर पर स्वायत्तता चाहता है। भारत ने अपनी विरासत को संभालकर रखते हुए जिस बेहतरीन तरीके से स्थानीय और वैश्विक मुद्दों में तालमेल बिठाया है, वो दुनिया के लिए एक मिसाल है।
रायसीना डायलॉग इस बात पर विश्वास करता है कि हमारी विकास यात्रा सभी के लिए खुली होनी चाहिए। ये शासन और नीतियों में पारदर्शिता की वकालत करता है। हर कामयाबी और नाकामी, हर अनुभव और खोज की दुनिया में कहीं ना कहीं और किसी ना किसी के लिए उपयोगी होती है। रायसीना डायलॉग ऐसे ही विचारों का एक मंच है, जो भारत की विविधता को दिखाता है।यही वजह है कि ये सालाना सम्मेलन अब अलग-अलग विचारों, दृष्टिकोणों और मुद्दों पर बात करने का मंच बन गया है।
भारत होने का महत्व?
पिछले एक दशक में हमने जो बदलाव देखे, उनमें सिर्फ़ मात्रात्मक विस्तार नहीं हुआ है। ये बदलाव हमारे सोचने के तरीके, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के मामले में भी देखने को मिल रहा है। हम अपनी विरासत और संस्कृति से प्रेरणा ले रहे हैं और अब अपनी पहचान को लेकर जागरूकता भी बढ़ रही है। हम अपने सपनों को आकार देने और अपने लक्ष्य हासिल करने को लेकर ज़्यादा गंभीरता दिखा रहे हैं। हम कहां जाना चाहते हैं, क्या चाहते हैं। ये जानने के लिए पहले ये समझना ज़रूरी है कि हम क्या थे और कहां थे। परंपरा और तकनीक़ी के बीच प्रभावी तालमेल बिठाकर आधुनिक विकास की चाबी है। आज हमारे अंदर ये निर्धारित करने की क्षमता है कि विकास का कौन सा स्तर छूना चाहते हैं और वहां पहुंचने के लिए कौन सा रास्ता चुनेंगे। इन सब चीजों को जोड़कर ही हम इंडिया को खुद पर भरोसा करने वाला भारत बना सकते हैं। ऐसा भारत जो आत्मनिर्भर भी हो और मज़बूत भी।
दुनिया इस वक्त अनिश्चितता के जिस दौर से गुज़र रही है, उसका सामना करते हुए भारत को अपने अनुभवों से सीखना होगा और उसी आधार पर समस्याओं को समाधान खोजना होगा। दुनिया के जो हालात हैं, उसमें कभी कोई हमें एक तरफ खींचेगा, कोई दूसरी तरफ खीचेंगा। ऐसे में हो सकता है भारत को कई बार ऐसे फैसले करने पड़ते हैं, जो हमारे राष्ट्रीय हितों के हिसाब से बेहतरीन ना हो। इसे वैश्विक नियमों या स्वाभाविक विकल्प के तौर पर पेश किया जा सकता है। यहीं पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद आई हुई स्वतंत्र सोच बड़ा अंतर पैदा कर सकती है। जब इंडो-पैसेफिक क्षेत्र की बात आती है तो हम ऐसा सामरिक और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाते हैं, जो भारत के लिए फायदेमंद होता है। अब हम ऐसी नीतियां बनाते हैं, जो विश्व कल्याण के साथ-साथ हमारे राष्ट्रीय हितों को भी बढ़ावा देती हैं।
अब हम अतीत की नीतियों से हटकर काम कर रहे हैं और इसे लेकर निराश होने की ज़रूरत नहीं है। ऐसे ही जब यूक्रेन युद्ध की बात आई तो हम दुनिया के ज़्यादातर देशों के साथ इस बात पर चिंता जताते हैं इस आर्थिक परिणाम गंभीर होंगे। हालांकि इसे लेकर कुछ देश जिस तरह का नैरेटिव बनाते हैं, उसका विरोध करके हम ये भी सुनिश्चित करते हैं कि हमारे लोगों पर इसका कम असर पड़े। अब भारत होने का अर्थ ये है कि ज़रूरत पड़ने पर हम धारा के विपरीत बहने की हिम्मत दिखाएं, जब आवश्यकता हो तब योगदान दें और हर वक्त आत्मविश्वास से भरपूर रहें।
ग्लोबल साउथ के देश अब अपने हक की बात करने लगे हैं। फिर चाहे वो आत्मबोध का मसला हो या फिर आत्मविश्वास का। रायसीना डायलॉग में इन देशों की वास्तविक सच्चाइयों को दिखाता है क्योंकि हम सिर्फ़ विशेषाधिकार वालों की बात नहीं करते। इस लिहाज से देखें तो रायसीना बहस का ना सिर्फ़ सक्रिय बल्कि समसामयिक मंच भी है।
रायसीना डायलॉग ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां इस तरह की बहस होती हैं। ये विचार-विमर्श का एक ऐसा जीवंत मंच है, जहां दुनिया हमें समझती है और हम दुनिया से संवाद करते हैं। रायसीना डायलॉग एक ऐसी जगह है जहां दुनिया भारत को आत्मसात करती है और हम ये तय करते हैं कि दुनिया कैसी होनी चाहिए।
हर तरह के विचारों को बहस में जगह देना रायसीना डायलॉग की खासियत है। यहां हम दुनियाभर से उन लोगों को भी बुलाते हैं, जिन्हें चर्चा के पारम्परिक और पहले से स्थापित मंचों पर जगह नहीं मिलती। यहां हम अलग तरह के संवाद को इजाज़त देते हैं क्योंकि विचार अपने आप में अलग होते हैं। हम ऐसे युवाओं को मौका देते हैं, जिनके विचारों में विविधता होती है। वो ऐसी जगहों से आते हैं, जिनकी या तो उपेक्षा की जाती है या जिन्हें बड़ी संस्थाओं में बोलने का मौका नहीं दिया जाता। ये युवा देश और दुनिया के वास्तविक प्रतिनिधि होते हैं। यही वजह है कि रायसीना डायलॉग एक ऐसा मंच बन गया है, जहां नए टैलेंट, नए विचारों, नए दृष्टिकोण का मौका मिलता है। ये ऐसा मंच बन गया है, जहां वो अपनी प्रतिभा दिखाकर बहस के दूसरे पारंपरिक प्लेटफॉर्म तक आसानी से अपनी पहुंच बना सकते हैं।
रायसीना डायलॉग में सिर्फ़ संवाद नहीं होता। यहां इससे भी ज़्यादा चीजें होती हैं। सम्मलेन के तीन दिनों के दौरान चर्चाएं तो होती ही हैं, साथ ही उससे पहले और बाद में भी विचार-विमर्श होता है। ये ऐसा मंच है, जहां नए विचार आते हैं। अगर कोई समाधान सामने आता है तो उसका मूल्यांकन और पुनर्मूल्याकंन होता है। यहां अलग-अलग विचारों का टकराव, उनमें प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता और फिर आखिर में सहयोग होता है। नई भावनाएं ज़ाहिर की जाती हैं, पुराने विचार को त्याग दिया जाता है। खुलकर और ईमानदारी से बहस होती है। बहस के दौरान गर्मागर्मी हो सकती है लेकिन नतीजा हमेशा सकारात्मक निकलता है। अपनी प्रतिष्ठा और प्रभाव की वजह से रायसीना डायलॉग में अब इस तरह की बहस सामान्य होती जा रही है।
अब जबकि रायसीना डायलॉग दसवें वर्ष में प्रवेश कर गया है तो हम ये कह सकते हैं कि इन वर्षों में हमने काफी लंबा सफर तय कर लिया है। शुरूआत में ये एक कमरे में सौ लोगों वाला सम्मेलन था लेकिन अब ये भारत में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सार्थक बहस का एक प्रतिष्ठित मंच बन चुका है। इसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है क्योंकि ये नए भारत में बहस का एक प्रमुख मंच है।
रायसीना डायलॉग के इतिहास के दस्तावेज़ की प्रस्तावना ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोताकिस ने लिखी है। ग्रीस और भारत लोकंतत्र के प्राचीन केंद्र रहे हैं और 21वीं सदी में ये दोनों देश दोबारा एक-दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
रायसीना डायलॉग की सफलता में भारत सरकार के समर्थन, नेतृत्व और प्रतिबद्धता का भी हाथ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रायसीना डायलॉग के दूसरे एडिशन यानी 2017 के बाद से हर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मौजूद रहे हैं। एक बार उन्होंने इस सम्मेलन के मंच से लोगों को संबोधित किया और एक बार वर्चुअल तरीके से अपनी बात रखी। प्रधानमंत्री 2017 से ही रायसीना डायलॉग में शामिल हो रहे हैं लेकिन उन्होंने सिर्फ़ दो बार ही इस सम्मेलन को संबोधित करके दुनिया को ये दिखाया कि कई बार बोलने से ज़्यादा अहम सुनना होता है। प्रधानमंत्री ने दर्शक के रूप में इस सम्मेलन में शामिल होकर, दूसरों के अनुभवों को सुनकर, उनके दृष्टिकोण को समझकर रायसीना डायलॉग का सम्मान बढ़ाया है।
प्रधानमंत्री ने दर्शक के रूप में इसमें शामिल होकर वक्ताओं और श्रोताओं के बीच की दूरी को कम किया है। रायसीना डायलॉग जितनी अहमियत वक्ताओं को देता है, उतनी ही श्रोताओं को भी देता है। ये हमें याद दिलाता है कि हर विचार पर सावधानी से चर्चा होनी चाहिए। वाद-विवाद और संवाद जीवन का एक अहम हिस्सा है। यहां मतभेदों को एकदम से खारिज़ नहीं किया जाता क्योंकि संवाद ही मेहनत करने और साथ आने का आधार है।
रायसीना डायलॉग के एक दशक पूरा होने के उपलक्ष्य में इस लेख के ज़रिए हम दुनियाभर की प्रतिष्ठित विद्धानों द्वारा लिखे गए निबंध और रायसीना डायलॉग में राष्ट्राध्यक्षों की तरफ से दिए गए भाषणों को एक जगह संकलित कर रहे हैं।
रायसीना डायलॉग के इतिहास के दस्तावेज़ की प्रस्तावना ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोताकिस ने लिखी है। ग्रीस और भारत लोकंतत्र के प्राचीन केंद्र रहे हैं और 21वीं सदी में ये दोनों देश दोबारा एक-दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे हैं। किरियोकस मित्सोताकिस दोनों देशों के बीच खुली चर्चा की वकालत करते हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर पैदा हुई विभाजन की खाई को पाटा जा सके। इंडो-पैसेफिक और भूमध्य सागर क्षेत्र देशों में एकता बढ़े।
डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने अपने लेख में जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण, स्वास्थ्य और सैन्य संघर्षों से इस दुनिया पर आने वाले संकट पर बात की है। संकट की इस घड़ी में भारत और डेनमार्क के बीच हुई सामरिक हरित साझेदारी एक उदाहरण पेश करती है कि आपसी सहयोग से जलवायु के लक्ष्यों को कैसे हासिल किया जा सकता है। उनका मानना है कि साझा वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए हमें अपने सहयोग की प्रतिबद्धता को फिर से दोहराना होगा। स्लोवेनिया की उप प्रधानमंत्री तांजा फजोन ने 2023 में रायसीना डायलॉग में दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियां पर गंभीर और विविधतापूर्ण चर्चा के लिए इसकी तारीफ की थी। उन्होंने अन्तर्राष्ट्री सहयोग, बहुपक्षीय संस्थाओं और संयुक्त राष्ट्र में फौरन सुधारों की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। रायसीना डायलॉग में युवाओं और महिलाओं को शामिल किए जाने की सरहाना करते हुए तांजा फजोन ने भारत और स्लोवेनिया के बीच द्विपक्षीय सहयोग बढ़ने की उम्मीद जताई।
ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग ने दुनिया में बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों के बीच रायसीना डायलॉग जैसे मंच पर सामारिक नीतियों पर चर्चा की तारीफ की। उन्होंने भारत और ऑस्ट्रेलिया की साझेदारी, दोनों देशों के साझा इतिहास, व्यापक सामरिक साझेदारी का जिक्र किया। इसके साथ ही आर्थिक मुद्दों, जलवायु और शिक्षा के क्षेत्र में की जा रही पहलों पर बात की।
रायसीना डायलॉग के अब तक के इतिहास का समापन करते हुए कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन जे हार्पर ने कहा कि “विकसित होती नई वैश्विक व्यवस्था में भारत अपनी सही जगह हासिल कर रहा है”। स्टीफन हार्पर ने वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती भूमिका, इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में स्थिरता, स्थायी विकास के लक्ष्य (SDG) हासिल करने, लोकतंत्रिक व्यवस्था की मज़बूती और जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने में भारत के प्रभाव पर बात की।
सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान साउद ने अपने निबंध में भारत और अरब देशों के बीच गहरे सांस्कृति रिश्तों की बात की, जो अब मज़बूत सामरिक संबंधों में बदल चुके हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ रहा है। भारत अब सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर है। उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत और सऊदी अरब की साझेदारी से दोनों देशों का भविष्य समृद्ध होगा। केन्या के इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स (IEA) के सीईओ क्वामे ओवाइनो और इसी इंस्टीट्यूट में संविधान, कानून और आर्थिक प्रोग्राम की प्रमुख जैकलीन कागुमे ने अफ्रीकन यूनियन (AU) को जी-20 में शामिल किए जाने को एक बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा कि इस वक्त डिग्लोबलाइजेशन का जो ट्रेंड चल रहा है, उसका विरोध करने और वैश्विन संस्थाओं में सुधार करने में अफ्रीकन यूनियन अहम भूमिका निभा सकती है।
जापान बैंक के चेयरमैन तादसी माइदा ने भारत के आर्थिक विकास, जापान के साथ उसकी साझेदारी और इंडो-पैसेफिक क्षेत्र के महत्व पर बात की। उन्होंने वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत-जापान सहयोग पर ज़ोर दिया। ब्रिटेन के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ सर एंटनी रेडकिन ने 2020 के दशक में भारत और के ब्रिटेन के बीच बदलते संबंधों की बात की और इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में उनके देश के हितों की बात की। उन्होंने समुद्री, वायु और ज़मीनी सुरक्षा में साझेदारी बढ़ाने पर ज़ोर देते हुए दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत पर बल दिया
PATH थिंक टैंक की डायरेक्टर और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में लेक्चरर नित्या मोहन खेमका ने खास इस तरह की रणनीति बनाने की ज़रूरत बताई, जिससे लीडरशिप की भूमिका में महिला की प्रतिनिधित्व भी बढ़े। उन्होंने आर्थिक क्षेत्र में वरिष्ठ पदों में पहुंचने के लिए महिलाओं के सामने आने वाली संस्थागत बाधाओं, पूर्वाग्रहों और चुनौतियों का भी जिक्र किया। उन्होंने ये कहते हुए अपनी बात ख़त्म की थी कि विकास परियोजना को फाइनेंस करने वाले बैंकों में महिलाओं को लीडरशिप के रोल में लाने से लैंगिक समानता तो बढ़ेगी ही, साथ ही ये बैंक ज़्यादा कुशल और प्रभावी तौर पर काम कर सकेंगे। रियो डि जेनेरिया सिटी हॉल की इंटरनेशनल रिलेशन मैनेजर कैमिली डोस सांतोस ने जी-20 सम्मेलन में लैंगिक असमानता पर चर्चा की अहमियत बताई। उन्होंने खास तौर पर उन महिलाओं के मुद्दों पर ज़ोर दिया जो घरेलू और देखभाल करने के काम में शामिल हैं, लेकिन इसके बदले उन्हें पैसे नहीं मिलते। कैमिली डोस सांतोस ने कहा कि आम तौर पर कमज़ोर वर्ग से आने वाली महिलाएं ही इन अवैतनिक कामों का सारा बोझ उठाती हैं। उन्होंने कहा अब वक्त आ गया है कि देखभाल के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के विकास के लिए भी व्यापक नीतियां बनाईं जाएं।
इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में अमेरिकी नौसेना के कमांडर एडमिरल जॉन एक्विलनो ने बहुपक्षीय वार्ता को आकार देने, खासकर भारत और अमेरिका के रिश्तों में अहम भूमिका निभाने के लिए रायसीना डायलॉग की सराहाना की। उन्होंने कहा कि रायसीना डायलॉग ने आपसी सहयोग बढ़ाने, QUAD संगठन को दोबारा खड़ा करने और दोनों देशों के बीच रक्षा समझौते बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस सम्मेलन में नियमित तौर पर आने वाले ऑस्ट्रेलिया की डिफेंस फोर्स के प्रमुख जनरल अंगुस कैंपबेल और ऑस्ट्रेलिया के रक्षा विभाग के सचिव ग्रेग मोरियार्टी ने रक्षा क्षेत्र में सहयोग और साझेदारी बढ़ाने पर ज़ोर दिया। इसके साथ ही उन्होंने इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया के दृष्टिकोण को पूरा करने में भारत की अहम भूमिका का भी जिक्र किया। जापान की सेल्फ डिफेंस फोर्स के पूर्व चीफ ऑफ ज्वाइंट स्टाफ जनरल यामाज़ाकी कोजी ने नए विचारों और सार्थक बहस को बेहतरीन मंच मुहैया कराने के लिए रायसीना डायलॉग की तारीफ की। इसके साथ ही उन्होंने इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में भारत-जापान रक्षा सहयोग पर ज़ोर दिया
थिंक टैक कार्निज यूरोप के निदेशक और रिसर्च एनालिस्ट रोसा बाल्फोर और ज़कारिया अल शेमली ने अपने लेख में इस बात का जिक्र किया किया यूरोपीयन यूनियन (EU) के देशों के नीति दोहरे मानदंड वाली है। उन्होंने कहा कि यूरोपीयन यूनियन खुद के बारे में जो सोचता है, उसमें और ईयू को लेकर ग्लोबल साउथ के देशों के दृष्टिकोण में काफी अंतर है। ऐसे में यूरोपीयन यूनियन को अपनी नीतियों में बदलाव करना चाहिए, जिससे वो ग्लोबल साउथ के साथ बेहतर रिश्ते बना सके। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की डिप्टी डायरेक्टर अनिर्बन सरमा ने कहा कि भारत के जी-20 की अध्यक्षता करने के बाद से डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) को लेकर दुनिया के बीच इसकी जागरूकता बढ़ी है। उन्होंने कहा कि आर्थिक क्षेत्र में समावेशी विकास और तकनीकी आधारित विकास में DPI की क्षमता को सब पहचानने लगे हैं। अनिर्बन सरमा के मुताबिक भारत के डीपीआई मॉडल की वजह से सार्वजनिक सेवाएं मुहैया कराने के क्षेत्र में क्रांति आ गई है। ग्लोबल साउथ के देशों में भी सार्वजनिक सेवा क्षेत्र के लिए भी ये एक बेहतरीन मॉडल हो सकता है।
जर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल एंड एरिया स्टडीज की प्रमुख और प्रोफेसर अमृता नार्लिकर ने वैश्विकरण को संरक्षित करने पर तो ज़ोर दिया लेकिन साथ ही ये भी कहा कि इसकी नीतियों, दिशा और स्तर को लेकर मूलभूत तौर पर दोबारा से विचार करने की ज़रूरत है। उन्होंने वैश्विकरण और फायदों और कमियों का भी जिक्र किया। उन्होंने वैश्विकरण की सुरक्षा, स्थिरता और इसकी जिम्मेदारी लेने के मौजूदा मॉडल की आलोचना करते हुए कहा कि एक सुरक्षित, स्थिर और समावेशी वैश्विकरण के लिए ये ज़रूरी है कि हम इसके ‘भारतीय मॉडल’ को अपनाएं।
स्वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री कार्ल ब्लिडट ने दुनिया में पैदा हुए भू-राजनीतिक संकटों पर बात की। उन्होंने वैश्विक व्यापारिक समझौते बढ़ाने पर ज़ोर दिया। इसके साथ ही उन्होंने ये भी जलवायु परिवर्तन और दुनिया के सामने जो स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हुईं हैं, उससे निपटने में नई तकनीकी के प्रभाव के बारे में विचार करना चाहिए। उन्होंने वैश्विक विचार-विमर्श में भारत की बढ़ते असर का जिक्र करते हुए कहा कि रायसीना डायलॉग ऐसी बहसों और अलग-अलग दृष्टिकोणों का पेश करने का एक शानदार मंच है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सदाबहार दोस्ती का जिक्र किया। रायसीना डायलॉग के नज़रिए का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ का अगुआ बनने के लिए भारत जिस तरह पश्चिमी देशों की सामारिक चिंताओं का ख्याल रखते हुए अपनी स्वतंत्र नीतियां बना रहा है, वो तारीफ के काबिल है। मैक्सिको के विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव मार्सेलो एबर्राड एशिया-पैसेफिक क्षेत्र, खासकर भारत की बढ़ती अहमियत का जिक्र किया। मैक्सिको के साथ भारत के राजनयिक रिश्तों को 70 साल से ज़्यादा हो चुके हैं। उन्होंने दुनिया के सामने आ रही चुनौतियों पर समावेशी संवाद को बढ़ावा देने और स्थायी समाधान तलाशने के लिए रायसीना डायलॉग की सराहना की।
मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट में सामरिक तकनीकी और साइबर सिक्योरिटी प्रोग्राम के डायरेक्टर मोहम्मद सोलीमान ने मध्य-पूर्व क्षेत्र की जटिल सुरक्षा स्थिति, इज़रायल और गाज़ा के बीच चल रहे संघर्ष और इसके समाधान के लिए अब्राहम समझौते के महत्व का जिक्र किया।
CIA के पूर्व निदेशक डेविड पेट्रोएस ने कहा कि वो रायसीना डायलॉग को भारत के प्रतिबिंब के तौर पर देखते हैं। उन्होंने कहा कि भारत जिस तरह QUAD और BRICS के सदस्य के रूप में दोनों संगठनों के बीच सफलता से संतुलन बनाकर चल रहा है, वो भारत की अनूठी भूमिका और अपनी एक स्वतंत्र पहचान को दिखाता है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे वैश्विक स्तर पर भारत का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे रायसीना डायलॉग भी संवाद और बहस का एक महत्वपूर्ण वैश्विक मंच बनता जा रहा है।
रायसीना डायलॉग के अब तक के इतिहास का समापन करते हुए कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन जे हार्पर ने कहा कि “विकसित होती नई वैश्विक व्यवस्था में भारत अपनी सही जगह हासिल कर रहा है”। स्टीफन हार्पर ने वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती भूमिका, इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में स्थिरता, स्थायी विकास के लक्ष्य (SDG) हासिल करने, लोकतंत्रिक व्यवस्था की मज़बूती और जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने में भारत के प्रभाव पर बात की। उन्होंने कहा कि नई विश्व व्यवस्था में भारत आत्मविश्वास से भरी जो महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, उसकी झलक रायसीना डायलॉग में भी दिखती है और इस बात के लिए इसकी तारीफ की जानी चाहिए।
रायसीना क्रॉनिकल्स इस सम्मेलन में आए विशिष्ट लोगों के योगदान का संकलन भर नहीं है। ये पिछले एक दशक के अन्तर्राष्ट्रीय मामलों का एक रिपोर्ट कार्ड भी है। रायसीना डायलॉग की एक दशक की यात्रा को लेकर जो दस्तावेज प्रकाशित किया गया है उसमें शामिल किए गए मूल लेख और यहां दिए गए भाषण सामूहिक तौर पर इन लोगों की अहम सोच को भी दिखाते हैं। पहली, भारत में होने वाला संवाद और बहस भी दुनियाभर में अहमियत रखी है क्योंकि इस मंच पर हम सार्थक चर्चा और विचार-विमर्श कराने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। दूसरी, रायसीना डायलॉग की एक दशक की यात्रा वैश्विक स्तर पर उभरते भारत का भी प्रतीक है। जैसे-जैसे दुनिया के साथ भारत के संबंध विकसित होंगे, वैसे-वैसे हम भी रायसीना डायलॉग में नए, अनूठे और बेहतर सुधार करेंगे। अब जबकि कई लोग ये कह चुके हैं कि यहां होने वाले संवाद दुनिया के सार्वजनिक हितों के लिए अच्छे हैं तो रायसीना डायलॉग के दूसरे दशक में प्रवेश के साथ-साथ हमें भी अपनी व्यापाक जिम्मेदारी का एहसास है। हम अब उसी हिसाब से खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करेंगे।
साभार – https://www।orfonline।org/hindi/ से