Sunday, November 24, 2024
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Homeजियो तो ऐसे जियोयथार्थवाद की गंध से महकता डॉ. रिंकी रविकांत सृजन

यथार्थवाद की गंध से महकता डॉ. रिंकी रविकांत सृजन

मानवतावाद से पूरित और प्रभावित लेखन करने वाली डॉ.रिंकी रविकांत एक ऐसी रचनाकार हैं जिनकी कहानियाँ आधुनिक भारतीय समाज में व्याप्त विसंगतियों का जीवंत दस्तावेज हैं। यूंतो इन्हें आदर्श प्रिय है परन्तु यथार्थ लिखना अधिक पसंद है, उस सीमा तक ही जब तक यथार्थ नग्न यथार्थ या प्रकृतवाद का रूप न ले। इनकी भाषा सरल एवं सहज प्रवाह लिए है। इन्होंने हिंदी भाषा में गद्य और पद्य दोनों विधाओं को अपना कर कविता, कहानी, लेख, हास्य व्यंग रचनाओं का सृजन किया और पुस्तक समीक्षा विधा को भी अपनाया।

“भावों की अभिव्यक्ति” एक ऐसी अतुकांत काव्य रचना है जो इन्होंने अपने किसी अतिप्रिय के जीवन की सच्ची कहानी पर लिखी है। देखिए इसकी बानगी……….
सुनो!
वो जो तुम्हें चौराहे पर छोड़ गया था,
जिसके प्रतीक चिन्ह की तरह तुम आज भी खड़ी हो मूर्ति बन के।
तो सुनो!
मूर्ति बनने से कुछ नहीं होता।
मूर्ति को बस एक ही दिन पूजा जाता है,
बाकी दिन उसे बस घूरा जाता है।
इसलिए इस वाह्य आवरण को तजो।
अपनी भावनाओं को लेखनी से गढ़ों..
कि खबर पहुंचे उस चौराहे पर छोड़ने वाले आदमी तक।
वो रोए,सिसके जले।
हारे हुए जुवारी की तरह
हाथ मले।
अबकी जो आ भी गया वो तो कहना-
आई हूं अब कभी वापिस नहीं जाने के लिए।
चाहे तू कुछ भी कर ले
ए छोड़े हुए आदमी!
प्रेम विरह और फिर से मिलने की आस संजोए
भावों को कितने भावपूर्ण शब्दों में अभिव्यक्ति दी है रचनाकार ने देखते ही बनता है……….
खुदा का खौफ कर जालिम, रूला न मुझको तू रूला रहा है मुझको तू , कोई तुझको रुलायेंगी। मुद्धतो से है तेरे इंतजार में, न आया अब तक,
सता रहा है मुझको तू , कोई तुझको सतायेगी।
मानते है गमगीन है, तेरे बगैर बहुत हम,
गम न कर तू ,ये तेरे भी पास आयेगी।
जमाने ने आजमाया, अपनों ने आजमाया,
आजमा ले तू भी, कोई तुझको आजमायेंगी।
खिलखिला रहा तू,मस्त है अपनी दुनिया में,
कभी तो आयेगा वो पल, जब तुझे मेरी भी याद आयेगी।
अश्क छलक ही पड़ेगे तेरे आखों से, गमगीन हो जाओगे,
वो पल जब याद आयेगें, मेरी जब यादआयेगी।
कभी ना छोडूंगा तुमको, किया था ये वादा
मुझसे,
कहते थे हमेशा, अखिरी सांस में तू ही बस याद आयेगी।

गद्य लेखन में आपकी लिखी लघु कथाओं में से कुछ की बानगी देखिए। “रोहिंग्या” बाल मनोविज्ञान पर आधारित एक ऐसे तबके की कहानी है जिनके पास घर नाम की कोई चीज नहीं होती। रेल_पटरियों या सड़कों के किनारे ही जिनका बसेरा होते है। ऐसे दुर्दिन में जीवन जीने वालों की भी देश के प्रति प्रेम अनन्य है यही इस कथा का सार है। “चंदन विष व्यापत नहीं” स्त्री पुरुष के संबंधों को रूई और आग की उपमा से विभूषित किए जा रहे समाज के लिए एक ऐसे युवक की कहानी है जो बॉलीवुड की चौंधियां देने वाली रौशनी में भी खुद को अंधा होने से बचा लेता है और बेबस स्त्री की रक्षा कर उसे उसके घर तक छोड़ कर आता है।

आज के यथार्थवादी दौर में एक आदर्शवादी पात्र की कल्पना सुकून का अनुभव कराती है। पुरुष के चरित्र पर लांक्षन लगाने और स्त्री के सतीत्व का गुणगान करने वालो के नजरिए को बदलने का एक प्रयास है यह कहानी। यथार्थवाद आपकी कहानियों का प्राण है।
इनके सृजन ख़ज़ाने से चार कृतियों का प्रकाशन ही चुका है। “हिंदी साहित्य एवं विविध विमर्श” के साथ – साथ दो संपादित कृतियां “बड़े साब एक समीक्षात्मक अध्ययन” और “बुंदेलखंड का सेनापति महल” हैं। इनकी एक ओर कृति “डॉ.नरेंद्र नाथ चतुर्वेदी के कथा साहित्य में यथार्थ प्रकाशन प्रक्रिया में है।

जीवन के अनुभूत सत्यों का यथार्थ चित्रण है ‘अद्भुत यथार्थ’ (पुस्तक समीक्षा) , इंटरनेट, सोशल मीडिया और बच्चे, हिंदी दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों ?, वर्तमान समय और पुस्तकों की प्रासंगिकता, मेरी जब याद आएगी (कविता), अनुभूत तथ्यों का यथार्थ चित्रण है बड़े साब और अन्य कहानियाँ (पुस्तक समीक्षा), रोहिंग्या (कहानी) ,घरेलू स्त्री का मानसिक उत्पीड़न, बदले की आग और मानवीयता के द्वंद्व में झूलता बैरी (पुस्तक समीक्षा), चाँदपुर की चँदा (पुस्तक समीक्षा) और चंदन विष व्यापत नहीं (कहानी) विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।

वर्तमान समय में कबीर की प्रासंगिकता, निराला की साहित्य-साधना का फल, दृष्टिकोण एवं हिंदी कथा-साहित्य में यथार्थवाद तथा स्वतंत्रता संग्राम में स्त्री सेनानियों की भूमिका जैसे 12 विषयों पर शोध पत्र लिखे हैं। इनमें से कुछ प्रकाशित और कुछ प्रकाशन के लिए स्वीकृत हैं। इन्होंने 20 से अधिक राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में अपने शोध पत्रों का प्रतुतिकरण भी किया है।

परिचय
वास्तविक और यथार्थवाद की हामी रचनाकार डॉ. रिंकी रविकांत ने लेखन स्कूली दौर से ही शुरू कर दिया था परन्तु रचनाएँ डायरी में ही कैद हो कर रह जाती थीं। पीएचडी में एक शोधार्थी के रूप में पंजीकरण होते ही रचनाएँ प्रकाशित होने लगी। आपको देश भर की संस्थाओं से अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त होना लेखन की उत्कृष्टता का द्योतक है। वर्तमान में आप पूर्वांचल क्षेत्र की कहानियों पर लेखन कर रही हैं। चलते – चलते……
जंगल था दूर-दूर तक…
अब जा के कोई गाँव आया है।
सर पर धूप ही धूप थी…
अब जा के थोड़ा छाँव आया है।
होठों पर थी प्यास
और थे पांवों में छाले,
किसको थी इतनी फिकर
कि हम पर नजर डाले।
भला ऐसे रस्ते चलते
ठहर कैसे जाये कहीं?
आदमी ही आदमी का
रहा जब अब नहीं?
अपने जख्म जो किसी को दिखाते
तो लोग हम पर ही हँसते और मुस्कुराते।
जब जख्मों से इतना ही डर था?
तो आये क्यों यहाँ?
रहना था वहीँ..
जहाँ तुम्हारा गाँव
जहाँ तुम्हारा घर था।

संपर्क :
99, संगम विहार (होटल मेनाल रेजीडेंसी के पीछे) बूंदी रोड़ , नया खेड़ा,
कोटा -324008 (राजस्थान)

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