प्रसिध्द हिंदी कहानी लेखिका मालती जोशी का 90 वर्ष की आयु में दिल्ली में निधन हो गया। मालती जोशी पिछले कुछ समय से कैंसर से पीड़ित थीं। उनका निधन बुधवार को दिल्ली में उनके पुत्र सच्चिदानंद जोशी के आवास पर हुआ। सच्चिदानंद जोशी प्रसिद्ध साहित्यकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के सदस्य सचिव हैं। उनके अंतिम समय में उनके दोनों पुत्र ऋषिकेश और सच्चिदानंद जोशी तथा पुत्र वधू अर्चना और मालविका उनके साथ ही थी। उनका जन्म औरंगाबाद में 4 जून, सन् 1934 ईस्वी की महाराष्ट्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनको पिता श्री कृष्ण राव और माता श्रीमती सरला से अच्छे संस्कार मिले ।
इंदौर में रहने वाले दिघे परिवार में जन्मी मालती जोशी यहां करीब ढाई दशक तक इन्दौर में रहीं। इंदौर से ही उनकी साहित्यिक यात्रा भी शुरू हुई। शहर के मालव कन्या विद्यालय में स्कूली शिक्षा हुई और फिर आर्ट्स विषय लेकर उन्होंने होलकर कालेज में प्रवेश लिया। होलकर कॉलेज से बीए और हिंदी में एमए करते वक्त ही उन्होंने लेखन कर्म आरंभ कर दिया था।
उन्होंने हिंदी में एम.ए. की परीक्षा पास की । उनके पति श्री सोमनाथ जोशी भोपाल में इंजीनियर थे।
लेखन के शुरुआती दौर में मालती जोशी कविताएं लिखा करती थीं। उनकी कविताओं से प्रभावित होकर उन्हें मालवा की मीरा नाम से भी संबोधित किया जाता था। उन्हें इंदौर से खास लगाव था। इतना कि वे अक्सर कहा करती थीं कि इंदौर जाकर मुझे सुकून मिलता है, क्योंकि वहां मेरा बचपन बीता, लेखन की शुरुआत वहीं से हुई और रिश्तेदारों के साथ ही उनके सहपाठी भी वहीं हैं। यह शहर उनकी रग-रग में बसा था। खुद अपनी आत्म कथा में मालती जोशी ने उन दिनों को याद करते हुए लिखा है, ‘मुझमें तब कविता के अंकुर फूटने लगे थे. कॉलेज के जमाने में इतने गीत लिखे कि लोगों ने मुझे ‘मालव की मीरा’ की उपाधि दे डाली।’
मालती जोशी अपने आप में एक उपमा थी। उन्हें अपनी लिखी सैकड़ों कहानियाँ मुँहजबानी याद थी। मुंबई की चौपाल में वे जब भी आती ओर बगैर पढ़े कहानियाँ सुनाती तो ऐसा लगता था जैसे कोई फिल्म चल रही है। उनकी कहानियों के किरदार हमारे घर परिवार के सदस्य जैसे ही लगते हैं। उनकी कहानी में आने वाले कोई नकारात्मक किरदार भी सकार्त्मक किरदारों से ज्यादा अनुशासनप्रिय, मूल्यों को जीने वाले और भारतीय संस्कृति को संपन्न करने वाले होते थे। वो नकारात्मक किरदारों को भी ऐसे प्रस्तुत करती थी जैसे घर परिवार में पीढ़िय़ों के अंतराल और सोच के बीच पारिवारिक संस्कृति और मूल्यों के लिए परिवार का कोई सदस्य संघर्ष कर रहा है।
उनके पात्रों में अड़ोस पड़ोस की फुरसती महिलाएँ भी होती थी तो घर का काम करने वाली बाई भी। उनका हर किरदार पाठकों से सीधा तादात्म्य बना लेता है। पाठक को लगता है कि जो कहानी वह पढ़ रहा है उसके सब किरदार तो उसके घर, ऑफिस और गाँव की चौपाल में उसे रोज ही दिखाई देते हैं। उनकी कहानियों में संस्कृति की मिठास, सामाजिक समरसता का और पारिवारिक जीवन मूल्यों को बचाए रखने का संदेश छुपा होता है। उनका हर पात्र पाठक को बांध लेता है, कोई भी पात्र या कहानी का कोई भी हिस्सा पाठक के मन में किसी तरह का तनाव पैदा नहीं करता है।
पचास से अधिक हिन्दी और मराठी कथा संग्रहों की लेखिका मालती जोशी शिवानी के बाद हिन्दी की सबसे लोकप्रिय कथाकार मानी जाती हैं। मालती जोशी की अनूठी कहानी कहने की शैली साहित्यिक दुनिया में एक विशेष स्थान रखती है। उनके काम पूरे भारत के कई विश्वविद्यालयों में शोध का विषय रहे। उनके साहित्यिक योगदान ने पाठकों और विद्वानों पर समान रूप से अमिट छाप छोड़ी है।
कविसम्मेलनों में गीतों से उनकी पहली पहचान बनी। १९६९ में बच्चों के लिये लिखना प्रारंभ किया और खूब लोकप्रियता प्राप्त की। १९७१ में ‘धर्मयुग’ में पहली कहानी प्रकाशित हुयी और मालती जोशी भारतीय परिवारों की चहेती लेखिका बन गयीं।
उनकी अब तक अनगिनत कहानियां, बाल कथायें व उपन्यास प्रकाशित कर चुकी हैं। इनमें से अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय व विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है। कई कहानियों का रंगमंचन रेडियो व दूर दर्शन पर नाट्य रूपान्तर भी प्रस्तुत किया जा चुका है। कुछ पर जया बच्चन द्वारा दूरदर्शन धारावाहिक सात फेरे का निर्माण किया गया है तथा कुछ कहानियां गुलज़ार के दूरदर्शन धारावाहिक किरदार में तथा भावना धारावाहिक में शामिल की जा चुकी हैं। इन्हें हिन्दी व मराठी की विभिन्न व साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत किया जा चुका है। ममराठी, उर्दू, बांग्ला, तमिल, तेलुगू, पंजाबी, मलयालम, कन्नड भाषा के साथ अँग्रेजी, रूसी तथा जापानी भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। गुलजार ने उसकी कहानियों पर ‘किरदार’ नाम से तथा जया बच्चन ने ‘सात फेरे’ नाम से धारावाहिक बनाए हैं। उन्होंने अपनी कहानियाँ आकाशवाणी से भी प्रसारित की हैं। इसके अतिरिक्त मराठी में उनकी ग्यारह से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
२०१८ में उन्हें साहित्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदानों के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
उन्होंने देश की स्वतंत्रता के बाद की अग्रणी कहानीकार के रूप में पहचान बनाई। । मालती जोशी ने केवल कविताएं या कहानियां ही नहीं बल्कि उपन्यास और आत्म संस्मरण भी लिखे हैं। उपन्यासों में पटाक्षेप, सहचारिणी, शोभा यात्रा, राग विराग आदि प्रमुख हैं। वहीं उन्होंने एक गीत संग्रह भी लिखा, जिसका नाम है, मेरा छोटा सा अपनापन। उन्होंने ‘इस प्यार को क्या नाम दूं? नाम से एक संस्मरणात्मक आत्मकथ्य भी लिखा। उनकी एक और खूबी रही कि उन्होंने कभी भी अपनी कहानियों का पाठ कागज देखकर नहीं किया, क्योंकि उन्हें अपनी सारी कहानियां, कविताएं जबानी याद रहतीं थीं।
मालती जी सुप्रसिद्ध लेखिका होने के साथ-साथ एक सफल गृहिणी भी थी। इनके साहित्य में जवान होती बेटी की पिता महंगाई दहेज समस्या आदि का प्रायः उल्लेख दिखाई देता है। उन्होंने स्वयं लिखा है, ‘‘मैं किशोर वयस् से गीत लिखा करती थी पर बाद में लगा अपनी भावनाओं को सही अभिव्यक्ति देने के लिए कविता का कैनवास बहुत छोटा है। कविता की धारा सूख गई और कहानी का जन्म हुआ है। इनकी पहली कहानी सन् 1971 ईस्वी में ‘धर्म युग’ में प्रकाशित हुई।
उनका कहना था कि जीवन की छोटी-छोटी अनुभूतियों को, स्मरणीय क्षणों को मैं अपनी कहानियों में पिरोती रही हूं। ये अनुभूतियां कभी मेरी अपनी होती हैं कभी मेरे अपनों की। और इन मेरे अपनों की संख्या और परिधि बहुत विस्तृत है। वैसे भी लेखक के लिए आप पर भाव तो रहता ही नहीं है। अपने आसपास बिखरे जगत का सुख-दु:ख उसी का सुख-दु:ख हो जाता है। और शायद इसीलिये मेरी अधिकांश कहानियां “मैं” के साथ शुरू होती हैं।
‘प्रमुख कृतियाँ
कहानी संग्रह- पाषाण युग, मध्यांतर, समर्पण का सुख, मन न हुए दस बीस, मालती जोशी की कहानियाँ, एक घर हो सपनों का, विश्वास गाथा, आखीरी शर्त, मोरी रंग दी चुनरिया, अंतिम संक्षेप, एक सार्थक दिन, शापित शैशव, महकते रिश्ते, पिया पीर न जानी, बाबुल का घर, औरत एक रात है, मिलियन डालर नोट।
बालकथा संग्रह- दादी की घड़ी, जीने की राह, परीक्षा और पुरस्कार, स्नेह के स्वर, सच्चा सिंगार
उपन्यास- पटाक्षेप, सहचारिणी, शोभा यात्रा, राग विराग
व्यंग्य- हार्ले स्ट्रीट
गीत संग्रह- मेरा छोटा सा अपनापन
अन्य संकलन- मालती जोशी की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ, आनंदी, परख, ये तेरा घर ये मेरा घर, दर्द का रिश्ता, दस प्रतिनिधि कहानियाँ, अपने आँगन के छींटे, रहिमन धागा प्रेम का।