4 जून को आए लोकसभा चुनाव परिणामों में भाजपा सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने और एन डी ए को स्पष्ट जनादेश मिलने के बावजूद आल्हादित नहीं है। कार्यकर्ता और समर्थक वर्ग मायूस है। नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। चुनाव परिणाम आने के बाद भारतीय जनता पार्टी कार्यालय में मोदी के संबोधन करते समय उनकी पीड़ा को साफ समझा जा सकता था। लेकिन लोकतंत्र में जो भी जनादेश हो वही अंतिम सत्य है। आगे का रास्ता उसी जनादेश में से निकालना होता है।
इसी दिन इंडी गठबंधन के नेताओं की तस्वीरें भी आईं। उनको सत्ता से दूर रहने का जनादेश मिला। इंडी गठबंधन में शामिल एक भी दल सौ सीटें भी प्राप्त नहीं कर सका। आश्चर्य की बात तो यह है कि इतने दलों के एक साथ आ जाने के बावजूद ये गठबंधन संख्या बल में अकेली भाजपा से पीछे ही रहा। फिर भी चेहरे ऐसे चमक रहे थे जैसे जनता ने उन्हें सत्ता सौंप दी हो। उनको सिर्फ इस बात की खुशी थी, कि उन्होंने मोदी के चार सौ पार के नारे को पूरा नहीं होने दिया। समझ नहीं आया कि उन्होंने चुनाव सत्ता में आने के लिए लड़ा था या मोदी के चार सौ पार के नारे को विफल करने के लिए ? *हां, यह जरूर हो सकता है कि इंडी गठबंधन में शामिल ये राजनीतिक दल अपने अस्तित्व को बचाने के लिए चुनाव लड़ रहे हों और जनता ने उनको एक बार और जीवनदान दे दिया। इस पर तो खुशी बनती है, उनको इस जीवनदान को मिलने का उत्सव जरूर मनाना ही चाहिए।*
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि भाजपा से चूक कहां हुई? भाजपा समर्थक ही नहीं भाजपा विरोधी भी इस पहेली को हल करने में अलग अलग तर्क दे रहे हैं। सोशल मीडिया तो इन तर्कों से भरा पड़ा है। राजनीतिक समीक्षक भी अपनी समझ के हिसाब से इन परिणामों का विवेचन कर रहे हैं। यह कहना कि जनता ने महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे को हाथों हाथ लिया, यह उतना ही बेमानी है, जितना कांग्रेस यह कहे कि जनता ने उसे सरकार चलाने का आदेश दिया है। हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि कांग्रेस का जातीय सांमजस्य भाजपा से बेहतर था, उसका लाभ उसे मिला।
दरअसल, *अबकी बार 400 पार का नारा भाजपा विरोधियों के लिए वरदान बन कर सामने आया। भाजपा विरोधी दल मुस्लिमों और दलितों को यह समझाने में सफल रहे कि भाजपा को यदि 400 से ज्यादा सीटें मिल गईं तो वह समान नागरिक सहिंता और नागरिकता संशोधन अधिनियम को कठोरता से लागू करेंगें। इसी के साथ दलितों को उन्होंने चेताया कि भाजपा आरक्षण को समाप्त करेगी।* ये दोनों ऐसे विषय थे जिनको मुस्लिमों और दलितों ने हाथों हाथ लिया। उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि वहां मुस्लिमों ने भाजपा के विरोध में रणनीतिक रूप से उसी को एकजुट वोट दिया जो भाजपा को हरा सकता है। इसी प्रकार दलितों ने उत्तरप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की राह पकड़ी। जिसके कारण भाजपा को पश्चिम बंगाल और उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणाम वैसे नहीं आए, जिसकी आशा भाजपा को थी और इसी कारण भाजपा अपने बल पर बहुमत नहीं ला पाई।
तो यह कहा जा सकता है कि *मुस्लिमों ने भाजपा का सबका साथ और सबका विकास नारे को किनारे कर दिया और इस्लाम पहले की नीति को अंगीकार किया।* वरना कोई कारण नहीं गुजरात में रहने वाले गुजराती बोलने वाले क्रिकेटर युसुफ पठान पश्चिम बंगाल के बहरामपुर में जाकर एकमात्र कांग्रेसी नेता अधीररंजन चौधरी को हरा दें। चौधरी के विरोध में उस व्यक्ति को जिता दें, जो उनकी कही बात तक को नहीं समझ सकता !
ऐसा नहीं है कि विपक्ष ने ही 400 पार के नारे से भाजपा को नुकसान पहुंचाया। इस नारे से भाजपा कार्यकर्ताओं में आए अति आत्मविश्वास और बूथ पर मतदान के प्रति उदासीनता ने भाजपा को विपक्ष से ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। इसके अलावा चुनाव से ठीक पहले जिस प्रकार से गैर भाजपाई नेताओं को भाजपा में शामिल कर उनको आगे बढ़ाया गया उससे भी भाजपा का मूल कार्यकर्ता उदासीन हो गया। एक छोटा सा लेकिन अत्यन्त महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि मतदाता पर्ची के वितरण का काम कार्यकर्ता की बजाय चुनाव आयोग के प्रतिनिधि बी एल ओ द्वारा किया गया, इसका सबसे बड़ा और भारी नुकसान यह हुआ कि भाजपा कार्यकर्ता का मतदाता से सीधा संवाद नहीं हुआ। केवल प्रचार, रैली, भाषण और माहौल के जरिये ही यह मान लिया गया कि आएंगे तो मोदी ही। जबकि स्वयं मोदी भाजपा में बूथ जीता तो चुनाव जीता की रणनीति को कठोरता से लागू करने और करवाने वाले संगठनकर्ता रहे हैं। तो मोदी के मंत्र को नकारने के कारण भी भाजपा स्वयं के बूते बहुमत के आंकडें़ से दूर रही।
2024 के चुनाव परिणाम के कई सारे आयाम हैं, जब विपक्ष अपने जीवनदान पर आनंदोत्सव मना रहा है, भाजपा के सामने चुनौती है कि वह परिणाम का आत्ममंथन करे और जरूरी उपाय करे, क्योंकि भारत काल के ऐसे दौर में है, जहां से आगे ले जाने के लिए भाजपा के अलावा किसी और दल पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं है।
(लेखक सेंटर फॉर मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट से जुड़े हैं, जयपुर में रहते हैं)