श्रीपुरी धाम के श्रीमंदिर से लगभग 23किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है ब्रह्मगिरि का सुविख्यात भगवान अलारनाथ का मंदिर जहां पर भगवान अलारनाथ जी की काली प्रस्तर की प्रतिमा चतुर्भुज नारायण के रुप में है जो चित्ताकर्षक है । गौरतलब है कि गत 22 जून को देवस्नान पूर्णिमा के दिन अत्यधिक स्नान करने के चलते भगवान बीमार हो गये और उनको चतुर्धा देवविग्रह सहित उनके अपने-अपने अलग-अलग बीमारकक्ष में एकांतवास कराकर उनका आयुर्वेदसम्मत उपचार आरंभ हो गया।श्रीमंदिर का मुख्य कपाट भक्तों के दर्शन के लिए बंद कर दिया गया। तब ते लेकर अगले 14 दिनों तक पुरी धाम आनेवाले समस्त जगन्नाथ भक्त भगवान जगन्नाथ के दर्शन भगवान अलारनाथ के रुप में ही करेंगे
।ब्रह्मगिरि के भगवान अलारनाथ मंदिर का आध्यात्मिक परिवेश अति मोहक है।ऐसा माना जाता है कि सत्युग में स्वयं ब्रह्माजी आकर वहां पर प्रतिदिन तपस्या किया करते थे। वैष्णव मतानुसार ओडिशा के ब्रह्मगिरि के विख्यात भगवान अलारनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं ब्रह्माजी ने ही किया था।यह भी जानकारी मिलती है कि 09वीं सदी में राजा चतुर्थभानुदेव ने इस मंदिर का निर्माण किया था जो स्वयं दक्षिण भारत के एक लोकप्रिय वैष्णव भक्त थे।सच तो यह है कि इस मंदिर का पूर्णरुपेण विकास 14वीं सदी में हुआ।यह मंदिर मुख्य रुप से श्रीकृष्ण भक्तों का मंदिर है।ब्रह्मगिरि के अधिसंख्यक स्थानीय लोग वैष्णव हैं जो साल के 365 दिन अलारनाथ मंदिर जाकर भगवान अलारनाथ की नित्य पूजा-अर्चना करते हैं।
दक्षिण भारत में आज भी विष्णुभक्त चतुर्भुज नारायण के रुप में ही भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ब्रह्मगिरि के भगवान अलारनाथ मंदिर की देवमूर्ति काले पत्थर की बनी है जो साढे पांच फीट की अति सुंदर देवमूर्ति है।इस मंदिर का महत्त्व प्रतिवर्ष भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के क्रम में उस समय बढ जाता है जब प्रतिवर्ष देवस्नानपूर्णिमा के दिन चतुर्धा देवविग्रहःभगवान जगन्नाथ,बलभद्र जी,सुभद्रा जी तथा सुदर्शन जी अत्यधिक स्नान करने के कारण बीमार हो जाते हैं और उन्हें अगले 15दिनों के लिए इलाज के लिए उनके बीमार कक्ष में एकांतवास करा दिया जाता है। बीमार कक्ष में उनका लगातार 15 दिनों तक उनका आर्युर्वेदसम्मत उपचार होता है।
श्रीमंदिर का मुख्य कपाट अगले 15दिनों के लिए जगन्नाथ भक्तों के दर्शन के लिए बन्द कर दिया जाता है। कहते हैं कि 1510 ई. में अनन्य श्रीकृष्ण भक्त महाप्रभु चैतन्यदेवजी स्वयं वहां जाकर भगवान अलारनाथ के दर्शन किये थे। प्रकृति के सुरम्य परिवेश में अवस्थित ब्रह्मगिरि पर्वत तथा भगवान अलारनाथ का मंदिर आज कई दशकों से सैलानियों का स्वर्ग बना हुआ है। मंदिर में भगवान अलारनाथ को प्रतिदिन खीर का भोग निवेदित किया जाता है जो एक तरह से भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद की तरह ही काफी स्वादिष्ट होता है।
कहते हैं कि जिसप्रकार श्रीमंदिर पुरी धाम के महाप्रसाद की जैसी आध्यात्मिक,सामाजिक और धार्मिक मान्यता है,ठीक उसी प्रकार भगवान अलारनाथ के खीर भोग ग्रहण की भी वैसी ही मान्यता है। गौरतलब है कि 2015 के नवकलेवर से ही से लगातार भगवान अलारनाथ मंदिर ब्रह्मगिरि की साफ-सफाई आदि का जिम्मा ओडिशा सरकार ने अपने हाथों में ले रखा है जिसके बदौलत पुरी जगन्नाथ मंदिर की तरह ही सुंदर परिवेश ब्रह्मगिरि भगवान अलारनाथ मंदिर का बन चुका है।इस वर्ष 2024 में ओड़िशा के नये मुख्यमंत्री मोहन माझी के नेतृत्ववाली प्रदेश सरकार ने वहां पर काफी सुव्यवस्था करा दी है जिससे कि ओडिशा के बडे-बुजुर्ग जगन्नाथ भक्त भी इस वर्ष ब्रह्मगिरि जाकर भगवान अलारनाथ के दर्शन अच्छे से कर सकें क्योंकि ओड़िशा के अधिकांश बड़े-बुजुर्ग अलारनाथ जाकर ही कम से कम एक दिन अलारनाथ भगवान के दर्शनकर संतुष्ट होते हैं।
भगवान अलारनाथ मंदिर प्रशासन की ओर से प्राप्त जानकारी के अनुसार मंदिर की ओर से प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी वहां की पुष्करिणी में भगवान जगन्नाथ की विजय प्रतिमा मदनमोहन आदि की 21दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा भी अनुष्ठित हुई थी। श्रीमंदिर प्रशासन पुरी के निर्देशानुसार इस दौरान पुरी आनेवाले समस्त जगन्नाथ भक्तों से यह विनम्र अपील की जा रही है कि वे अगले 14 दिनों तक समस्त जगन्नाथभक्त ब्रह्मगिरि जाकर वहां स्थित अगवान अलारनाथ के दर्शन भगवान जगन्नाथ के रुप में करें। इस वर्ष महाप्रभु की विश्वप्रतिद्ध रथयात्रा आगामी 07जुलाई को है जो अपने आपमें एक पतितपावनी यात्रा होगी जिसमें रथारुढ़ भगवान जगन्नाथ के दर्शनकर समस्त जगन्नाथ भक्त अपने-अपने मानव जीवन को धन्य करेंगे।
(लेखक ओडिशा की साहित्यिक, सांस्कृतिक व धार्मिक गतिविधियों पर निरंतर लेखन करते रहते हैं और राष्ट्रपति से पुरस्कृत भी हो चुके हैं)