यह कहानी कलकत्ता से प्रकाशित साप्ताहिक ‘रविवार’ (9 दिसंबर 1979)में छप चुकी है। कहानी यानी आत्मदाह से ठीक पहले तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के नाम प्रभाकर शर्मा की मार्मिक चिट्ठी में वर्णित कहानी> याद रहे कि शर्मा ने उस पत्र की प्रति ‘सरकारी संत’ विनोबा भावे को भी भेजी थी। पर विनोबा ने उस पत्र की किसी से चर्चा तक नहीं की। महात्मा गांधी के आह्वान पर प्रभाकर शर्मा ग्राम सेवा क्षेत्र में कूदे थे।
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आपातकाल की जन विरोधी क्रूरता और सत्ताधारियों के नग्न नाच से संतप्तं होकर प्रभाकर शर्मा ने 14 अक्तूबर 1976 को महाराष्ट्र के वर्धा के निकट सुरगांव में अपने शरीर पर तेल छिड़क कर आत्म दाह कर लिया था।
याद रहे कि इमर्जेंसी में विनोबा की पत्रिका ‘‘मैत्री’’ को भी महाराष्ट्र पुलिस ने जब्त कर लिया था।विनोबा उसके संपादक थे। जबकि अभूतपूर्व दमनकारी आपातकाल के समर्थन में विनोबा ने आपातकाल को सार्वजनिक रूप से ‘‘अनुशासन पर्व’’ बता दिया था। याद रहे कि केंद्र सरकार ने आपातकाल में आम लोगों के जीने तक का अधिकार छीन लिया था। देश के विभिन्न जेलों में कैद हजारों छोटे-बड़े प्रतिपक्षी नेताओं व पत्रकारों को अदालत जाने की अनुमति नहीं थी। केंद्र सरकार के इस कदम को भयभीत सुप्रीम कोर्ट का भी पूरा समर्थन मिल गया था।
आपातकाल (1975-77)की क्रूरता के खिलाफ प्रभाकर शर्मा ने आत्म दाह करने से ठीक पहले प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखा-
‘‘इंदिरा जी,मैं आपके पापी राज्य में (जिन्दा)नहीं रहना चाहता।’’
प्रभाकर शर्मा ने १४ अक्तूबर १९७६ को वर्धा के निकट सुरगाव में वानाशाही के विरोध में अपने शरीर पर तेल छिड़क कर आत्मदाह किया था । आत्मदाह के पूर्व प्रभाकर ने इंदिरा गांधी को जो पत्र लिखा था, उसे हम यथावत प्रकाशित कर रहे हैं।
श्रीमती गांधी
“पिछले वर्ष ईश्वर और मानवता को भूली हुई केंद्रीय सरकार ने मूढ़ पशुबल के सहारे अखबारों का लेखन-स्वातंत्र्य छीन कर जो कुछ सत, उदात्त और महान पुकारा जाता है, उन सब पर निर्मम प्रहार किया था। इस वर्ष पू० विनोबा जी के गोहत्या-प्रति- बंध के लिए आमरण अनशन के समाचार पर प्रतिबंध लगा कर तथा उनके ‘मैत्री’ का अंक जब्त करके उसने भारत की अहिंसक और आध्यात्मिक संस्कृति पर एक और निर्लज्ज प्रहार किया ।
मुगलों के जमाने में ऐसे अत्याचार पर लोगों को कदाचित आश्चर्य नहीं होता, परंतु यह उस तथाकथित कांग्रेसी सरकार ने किया है जिसे गांधी जी के नेतृत्व में अहिंसा की शिक्षा मिली थी । यदि मेरे घर में मीठी-मीठी बातें कर कुछ व्यक्ति घुस आयें और बाद में पिस्तौल दिखा कर मुझे बांध दं, मेरी संपत्ति छीन लें और घर की स्त्रियाँ पर बलात्कार करें तो इस कुकृत्य की भर्त्सना मैं किन शब्दों में करूं’ ? ‘गरीबी हटाओ’ का नारा लगा कर पैसा, चालाकी और भ्रष्टाचार के द्वारा आप प्रधानमंत्री बनी हैं। यह देख कर कि पैरों तले जमीन खिसक रही है, अपन हाथों में सत्ता बनाये रखने के लिए आपने पुलिस और सेना के बल पर, जिनका खर्च जनता से ही वसूल किया जाता है, राक्षसी कानून लगा कर भारत को एक अंधेरी गुफा का रूप दे दिया है।
इस केंद्रीय सरकार को मैं पक्के गुंडों का संगठन मानता हूं। इस गुंडा संगठन ने मानवता, शील, चारित्र्य, न्याय, लज्जा, ईमानदारी और भारतीय संस्कृति को पूर्ण तिलांजलि दे दी है। इस गुंडा संगठन के मनमाने अत्याचारों का संवाद अखबारों में भी नहीं जा सकता। ‘जयप्रकाश जिंदाबाद’ कहने या उनके स्वागत के लिए सड़क पर खड़े रहने का अर्थ हूँ गिरफ्तारी । जालसाजी, भूष्टाचार और काले धन के ल पर प्रधानमंत्री बनी हुई श्रीमती इंदिरा गांधी की इच्छा के विरुद्ध निर्णय देने का
इंदिरा जी,
मैं आपके पापी राज्य में नहीं रहना चाहता प्रभाकर शमां
अर्थ है, न्यायाधीशों का पदच्युतिकरण । सारांश यह है कि आज उनकी (इंदिरा गांधी की) मर्जी है धर्मशास्त्र, सदक है नीति- शास्त्र, इच्छा है संस्कृति, गर्वोन्माद है कानून और हुकार है न्याय । अपने जघन्य कृत्यों के कारण लोकमत का सामना करने का साइस आप खो चुकी हैं, अन्यथा यह हिंसा और गोपनीयता का सहारा क्यों ? लेखन स्वातंत्र्य के अपहरण के कारण न तो शुद्ध लोकमत प्रकट हो सकता है और न कोई सामूहिक अहिंसक आंदोलन हो सकता है। मैं इसे राष्ट्र की अंतरात्मा की हत्या कहूंगा। आप अपनी राजनीतिक चालों से मात्र पशुबल का सहारा ले कर भारत की वर्तमान प्रजा को दब्बू और चरित्रहीन बना रही हैं। और नयी पीढ़ी तो खत्म ही है।
अपनी निरंकुश और स्वच्छंद सत्ता द्वारा भारत को अपनी राक्षसी सत्ताकांक्षा का विश्वरूप दर्शन कराने के लिए यदि आप भारत की सारी जनता को ही एटम बम से ख़त्म कर दें तो कम-से-कम अकेला में तो आपको धन्यवाद देता । संपूर्ण भारत को अपने पैरों तले रौंदनेवाली नरपिशाचिनी की सत्ता के अंतर्गत जीवित रहने की अपेक्षा मेँ हजार बार मल-मूत्र में रंगनेवाले कीड़े का जन्म लेना ज्यादा पसंद करूंगा ।
वर्तमान अवस्था से संतुष्ट हो कर अगर भारत की जनता चुप पड़ी रहती हैं तो भारत वह भारत नहीं रहेगा जहां हजारों संतों और महापुरुषों ने अद्वैत की उपासना द्वारा बुहुमात्मैक्य की अनुभूति प्राप्त कर आध्यात्मिक और अहिंसक संस्कृति के बीज बोये थे। प्रत्युत वह उन लोगों का देश कहलायेगा जिन्होंने शाश्वत सुख और शांति प्रदान करनेवाली अपनी कल्याणमयी माता की संपूर्ण अवज्ञा करके पैसे और भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए अपने शरीर और आत्मा को बेच कर पश्चिम से बन-ठन कर आयी हुई रोगग्रस्त वेश्या को पूजना शुरू कर दिया है।
जब एक ओर सत्ताधीश और उनकी नौकरशाही अपने पद और नौकरियों को रखने के लिए प्रजा का अनेक प्रकार से दमन कर रही है और उन्होंने अपनी अंतरात्मा को इतना कुचल दिया है कि उनका मन- व्यत्व ही समाप्त हो गया है तो दूसरी और शहरी वर्ग ने अपने भोग-विलास, फैशन और ऐश-आराम को सुरक्षित रखने के लिए सरकार के अपमानजनक कानूनों और जुल्मों के आगे घुटने टेक दिये हैं । सत्ता और संपत्ति की पूजा के लिए मनुष्य जाति के नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का यह पतन देख कर मेरा हृदय विदीर्ण हो जाता है तथा मेरी दशा उस व्यक्ति के समान हो जाती हॅ जिसके सामने हजारों बच्चों की हत्या और लाख स्त्रियों पर बलात्कार हो रहा हो । अज्ञान और दारिद्र्य के महासागर में गांव लगानेवाले इन करोड़ों भारतीयों क रहते इन सत्ताधीशों और शहरवासियों को नींद कैसे आती है और अन्न कैसे पचता है ? मुझे तो यह आश्चर्य लगता है।
इस पत्र में मैंने कठोर शब्दों का प्रयोग किया है, किंतु आपके मनकारी यां की तुलना में मेरे शब्द बहुत ही सौम्य मान जाने चाहिए। ईश्वर की दृष्टि में सभी समान हैं। ईश्वर इन मदांध सत्ताधारियों को कभी माफ नहीं करेगा। भावी पीढ़ी आक के मदमस्त अफसरों, मंत्रियों, राष्ट्रपति और पिठ्ठु न्यायाधीशों को सबसे बड़ा अपराधी मानेगी।