जिंदगी ने न अपनी मुकमल कोशिशें की,
बीते हुए वक्त में खोया रहा
आने वाले कल की न उम्मीदें की,,
वो आज भी तकता है मेरे घर की छत से
उस नन्हे से धूप के टुकड़े ने न कभी दलीलें दी,,
दर्द हो और वह खुल के मुस्कुराए
बेदर्द, दर्द ने कहा कभी इतनी इजाज़त दी,,
बहुत होता है गुमान अपने घर को अपना कहने में,
उसी घर की नींव को न कभी मैने आवाज़ दी ,,
रोक के रखा था मुहाने पर सच को मैनें
भला हो झूठ का , बात कभी खत्म होने न दी,,
रेणु सिंह राधे
4 डबक्यू 19 तलवंडी, कोटा ( राजस्थान )