डॉ. इकबाल के प्रसिद्ध शेर ” हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा” की पंक्तियां राजस्थान के रचनाकार वेद व्यास जी पर सटीक बैठती हैं जिनका आभामंडल देश व्यापी है। “कुछ तो बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी ” पर कह सकता हूं यूं ही नहीं बन जाता कोई वेद व्यास। साहित्य और पत्रकारिता जगत के एक ऐसे सशक्त हस्ताक्षर जो जीवन के 81 बसंत देखने पर भी अपने साहित्यकर्म और साहित्यधर्म को पूरी शिद्दत से निभा रहे हैं।
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है इनका का 24वां प्रकाशन ’अविस्मरणीय’ 2023 में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में कुल 34 स्मृतियां हैं जिनमें चार यादों को कॉमरेड ज्योति बसु, शहीद भगतसिंह, कार्ल मार्क्स एवं स्वामी विवेकानन्द के अलावा शेष सभी 30 स्मृतियां वेद व्यास के उन समकालीन रचनाकारों पर केन्द्रित हैं, जो आज हमारे बीच नहीं हैं। ’अविस्मरणीय’ इनके साहित्य एवं पत्रकारिता के बीच की यात्रा का बोध कराता है जिसका आलेख तीन खण्डों साहित्य, समाज और समय पर केन्द्रित है। वेद व्यास लिखते हैं कि विचारों के सागर में एक बूंद का जीवन ही मेरा परिचय है और आगत कल का सपना है। ये ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने अपनी प्रगतिशील सोच के साथ जनहित को अपनी हर सांस में जिया हैं।
अपना समस्त जीवन, समाज में व्याप्त विभिन्न विकृतियों, विद्रूपताओं, अन्याय और अनीति के खिलाफ सतत् संघर्षशील रहे। कलम के धनी, प्रगतिशील लेखक, चिंतक और विचारक, साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष वेद व्यास लेखन की स्वतंत्रता के पैरोकार हैं।
मेरा सौभाग्य रहा की अलमस्त, हंसमुख, सरल , सहज और किसी भी अभिमान और दंभ से परे वेद व्यास जी का मुझे अपने उदयपुर पदस्थापना के दौरान स्नेहिल सानिध्य प्राप्त हुआ । वे वहां तीसरी बार राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष थे। जब भी समय होता स्नेहवश कभी भी सूचना केंद्र आ जाते और अत्यंत सहज भाव से बेतखल्लुफ चर्चा करते थे। उनका आशीर्वाद मेरे लिए किसी प्रसाद से कम नहीं था। एक विशाल राज्य स्तरीय साहित्यकार सम्मेलन जिसमें मेरी भी महत्वपूर्ण भूमिका रही उन्होंने आयोजित किया आज तक मेरी स्मृतियों में ताजा है।
अब आप वेद व्यास से राजस्थानी में समाचार सुनिए …
इनकी साहित्यिक यात्रा का प्रारंभ पत्रकारिता के साथ हुआ जब जयपुर से प्रकाशित दैनिक राष्ट्रदूत समाचार पत्र में पत्रकारिता का प्रथम प्रशिक्षण हुआ और 60 रुपया मासिक वेतन मिलता था। इस दौरान इन्हें दिनेश खरे, शिवपूजन त्रिपाठी, कैलाश मिश्र, सौभाग्य मल जैन, डॉ. जयसिंह एस राठौड़ तथा वीर सक्सेना आदि का सानिध्य प्राप्त हुआ। इनको निरंजननाथ आचार्य, भैरोसिंह शेखावत, ज्वालाप्रसाद शर्मा, प्रो. केदार शर्मा आदि की वह गोष्ठियां भी आज तक याद हैं जिनमें हजारीलाल शर्मा एक अक्खड़ और फक्कड़ मित्र की तरह गुंजायमान रहते थे। राष्ट्रदूत में छह माह रह कर राजस्थान ललित कला अकादमी और वानर (बाल मासिक पत्रिका) में कार्यरत रहते हुए सन् 1964 में आकाशवाणी जयपुर में चले आए।
आकाशवाणी में ये 30 जून, 2002 सेवानिवृत्ति तक पदासीन रहे। आकाशवाणी जयपुर से राजस्थानी भाषा में प्रथम समाचार वाचक रहे। आकाशवाणी से गूंजता स्वर ” अब आप वेद व्यास से राजस्थानी में समाचार सुनिए ” आज तक श्रोतों के कानों में गूंजता हैं। मैं भी इनके समाचार बड़े चाव से सुनता था। पत्रकार इनके समाचार सुन कर अपने पत्र के लिए समाचार लिखते थे।
आकाशवाणी में कार्यरत रहते हुए ही इन्होंने 1983 में नई दिल्ली में आयोजित तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन में भागीदारी की। वर्ष 1999 में लन्दन में हुए छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन में एवं 2003 में सूरीनाम में आयोजित सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में राजस्थान सरकार द्वारा प्रतिनिधित्व किया। आज तक ये शिक्षा, साहित्य, कला, संस्कृति और पत्रकारिता के क्षेत्र में लगातार लेखन करते हैं। दैनिक नवज्योति का साप्ताहिक स्तम्भ ’ध्यानाकर्षण’ और बाद में ’उल्लेखनीय’ स्तम्भ इनके साहित्य, समाज और समय के 50 साल के गवाह रहे हैं।
हिन्दी और राजस्थानी में रचनाकर्म करते हुए वेद व्यास ने लम्बी लकीर खींची है। ये राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के सन् 1983 से 1986 तक उपाध्यक्ष एवं सन् 1989 से 1992 तक अध्यक्ष और राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के ये तीन बार अध्यक्ष रहे हैं। तीसरी बार अकादमी के अध्यक्ष काल के दौरान मधुमती का ’बाल साहित्य विशेषांक’ बच्चों के भविष्य के प्रति इनकी चिन्ता और जागरूकता को भलीभांति दर्शाता है प्रकाशित किया गया। ये राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर की संविधान निर्मात्री समिति, केन्द्रीय साहित्य अकादमी के पुरस्कार चयन एवं निर्णायक समिति, राज्य सरकार के केन्द्रीय पुस्तक क्रय समिति, राज्य पुस्तकालय विकास समिति के सदस्य भी रहे हैं।
इनकी पहली पुस्तक सन् 1966 में जाने माने कवि हनवन्त सिंह देवड़ा और वेद व्यास दोनों के गीतों की पुस्तक ’धरती हेलो मारै ’ प्रकाशित हुई थी। ’धरती हेलो मारै ’ पुस्तक में हनवन्त सिंह देवड़ा के 9 गीत और वेद व्यास के 16 गीत है। राजस्थानी भाषा में ही वेद व्यास ने रावत सारस्वत के साथ मिलकर 1968 में ’आज रा कवि’ पुस्तक का सम्पादन किया। इस पुस्तक में सन् 1947 से सन् 1967 तक बीस वर्ष की प्रतिनिधि 51 कवियों की राजस्थानी कविताओं का संकलन है। उस समय इनकी दोनों पुस्तकें पाठकों और रचनाकारों में खूब लोकप्रिय हुई।
परिवार नियोजन के राष्ट्रीय महत्व वाले रूप को अभिव्यक्त का विषय बना लोकरूप को जनभाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास अपनी 1970 में राजस्थानी भाषा में प्रकाशित गीत-पुस्तक ’कोड़ीनगरी’ में किया। इनके परिवार नियोजन सम्बन्धी गीतों, कविताओं के संकलन ’कीड़ीनगरी’ एक समर्थ, अर्थ-गर्भित और फबता हुआ शीर्षक है जो अपने आप में विषय को स्पष्ट करता है।
महात्मा गांधी के 150 वें जन्मदिवस पर 42 कवियों द्वारा महात्मा गांधी के जीवन चरित्र पर रचित राजस्थानी भाषा की कविताओं का संकलन सन् 2000 में ’आजादी रा भागीरथ: गांधी’ प्रकाशित हुआ। इसका सम्पादन वेद व्यास व श्याम महर्षि ने किया। इस संग्रह में राजस्थानी भाषा के 87 रचनाकारों की कविताएं हैं। राजस्थानी भाषा में वेद व्यास की अन्य प्रकाशित रचनाएं गांधी प्रकाश (राजस्थानी गीत), बारखड़ी (राजस्थानी सम्पादन), सबद उजास (राजस्थानी सम्पादन) है।
अनेकता में एकता ही भारत की एकता का मूल आधार है। यही दृष्टि इनकी पुस्तक ’राष्ट्रीय धरोहर’ में परिलक्षित होती है जिसमें उस प्रगतिशील सोच और विचार की अवधारणा भी है जो सामान्यजन के सनातन काल से चले आ रहे संघर्ष का परिणाम है। वेद व्यास के सम्पादन में राजस्थान के तीर्थों की परिक्रमा के बिखरे रंगों को ’राजस्थान के लोकतीर्थ’ पुस्तक में प्रस्तुत किया है। बच्चे ही हमारे भावी कर्णधार हैं। इन्होंने बच्चों के लिए आशावाद, राष्ट्रप्रेम और धार्मिक सहिष्णुता का सन्देश देते हुए बालगीतों की रचना की है। सहज सरल बोधगम्य बाल रचनाओं का खजाना है वेद व्यास के बाल गीतों का संग्रह ’एक देश मेरे सपनों का’। बालगीतों की इनकी पूर्व में प्रकाशित पुस्तकें ’भारत वर्ष हमारा है’ और ’एक बनेंगे नेक बनेंगे’ प्रकाशित हुई हैं।
अब नहीं तो कब बोलोगे’ निबन्ध संग्रह में वेद व्यास के 27 निबन्ध हैं। निबन्धों में व्यक्त विचार और तर्क दिशाबोधक और प्रेरक हैं। इनके साथ – साथ परमवीर गाथा (जीवन चरित्र), परछाइयां (कहानी संपादन) , लेखक और आज की दुनिया (संपादन) , समय-समय पर (निबंध) , हलफनामा (निबंध) ,राष्ट्रीय धरोहर (निबंध) , तुम समय को लांघ जाओ (गीत) ,शेष रहेंगे शब्द (निबंध), अब नहीं तो कब बोलोगे (निबंध), अंधेरे में रोशनी की तलाश (निबंध) एवं आजादी रा भागीरथ गांधी (राजस्थानी कविता संपादन) प्रमुख प्रकाशित कृतियां हैं। आप 2011 से जन यात्रा (पाक्षिक), जयपुर के संस्थापक हैं।
आत्मकथ्य में लिखते हैं आज भी मैं दलितों, महिलाओं, आदिवासियों ,अल्पसंख्यकों और लोकतांत्रिक व्यवस्था में मानव अधिकारों के लिए लड़ते हुए खपता रहता हूं। लेकिन यह जानते हुए की सत्ता और व्यवस्था का मूल चरित्र दमन और न्याय पर आधारित रहता है तो हर बार इतिहास और अनुभव के पन्नों पर यही गीत लिखता हूं……..
हस्ताक्षर करने हैं समय के गुलाबों पर,
चाहे ये मौसम का शीश महल टूट जाए,
विवशता दिखाने में उम्र नहीं बढ़ती है,
व्यक्तिगत सतहों पर धूप नहीं चढ़ती है,
मोम जड़ी दीवारें हाथ में अरधनी ले,
भटक रही भीड़ कहीं कील नहीं गढ़ती है,
बेनकाब करना है, सूरज के पुत्रों को,
चाहे इस धरती का छोर ही बदल जाए।
राजस्थान साहित्य अकादमी के विशिष्ट साहित्यकार सम्मान और राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के राजस्थानी भाषा सम्मान सहित मिले अनेक सम्मान रचनाकार की सृजन शैली को पुष्ट करते हैं। साहित्य अकादमी के सर्वोच्च सम्मान ’साहित्य मनीषी’ से सम्मानित वेद व्यास को सम्मान स्वरूप 2 लाख 51 हजार रुपए तथा सम्मान पत्र प्रदान किया गया। आपको बिहारी पुरस्कार (2000) मित्र परिषद, राजस्थान, अशोक गहलोत लोकमत मित्रता पुरस्कार , राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़ (बीकानेर) से साहित्यश्री और शब्दश्री सम्मान तथा राजस्थान रत्नाकर सम्मान (दिल्ली) प्रमुख सम्मानों के साथ अनेक पुरस्कार और सम्मान से आपको नवाजा गया।
शिक्षा, साहित्य, कला एवं संस्कृति तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में अनवरत लेखन एवं जनशिक्षण के लिए समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता वेद व्यास का जन्म 1 जुलाई, 1942 को अविभाजित भारत के सिंध प्रान्त में भीरपुरखास में पिता प्यारेलाल व्यास एवं माता अशी देवी के आंगन में हुआ था। इनका पुस्तैनी गाँव अलवर जिले की राजगढ़ तहसील का गढ़ी सवाई राम है। पूर्वज काम की तलाश में सिंध चले गए थे। भारत विभाजन के दौरान ये परिवार के साथ लूणी जंक्शन जोधपुर आ गये। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा लूणी जोधपुर में ही हुई। जब ये 20 साल के थे दसवीं तक पढ़े थे।
घर वालों के तानों से तंग आकर लूणी जंक्शन से दिल दिमाग में नौकरी के नाम से अखबार और आकाशवाणी का सपना संजोए जयपुर आ गये। इनका विवाह सुमन के साथ 20 नवम्बर, 1969 को जयपुर में सम्पन हुआ। सुमन शर्मा ने पांच विषयों हिन्दी, समाज शास्त्र, लोक प्रशासन, राजनीति विज्ञान एवं इतिहास में एम.ए. करने के साथ ही पत्रकारिता में भी अध्ययन किया है। इनके दो पुत्रियां रचना व प्रगति तथा एक पुत्र विचार व्यास है। जयपुर ही इनकी कर्म स्थली बन गई। आपने 1973 में राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना की और स्थापना काल से महामंत्री रहे हैं। इन्होंने 1992 में भाईचारा फाउण्डेशन के नाम से संस्था की स्थापना की, जो गरीब एवं अनाथ बच्चों के लिए सेवा कार्य कर रही है। ये वर्ष 2001 में
राजस्थान सरकार द्वारा केन्द्रीय पाठ्यक्रम (एन.सी.ई.आर.टी. एवं सी.बी.एस.ई.) समीक्षा समिति के संयोजक भी रहे। वर्तमान में आप निरंतर साहित्य साधना में लगे हैं।
सम्पर्क:
7/122, मालवीय नगर,
जयपुर-302017 ( राजस्थान )
मोबाइल : 09414054400
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डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा