Sunday, November 24, 2024
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साहित्यकार रामस्वरूप मूंदड़ा: सृजन गंगा से बहती इंद्रधनुषी काव्य धारा

जब अंधियारे में अनजाने चेहरे,
मेरे पथ पर क्षण भर का साथ निभाते है ।
धुल जाते है अवसाध युगों के पल भर में,
परिवेश नये पहने सपने ललचाते है ।
ये थके चरण, ले नई लगन,
मंजिल को बढ़ते जाते है ।
सुन पाते हैं दो शब्द मधुर जब जीवन में,
है मोल बहुत, सौ कटु शब्द गल जाते हैं ।
यों दर्द जुड़ा है साथ सभी के अंतर में,
कुछ रोते हैं, कुछ फिर भी जब मुस्काते हैं ।
ये खिले सुमन, बह रही पवन,
जीवन का गीत सुनाते हैं ।
अक्सर आशा का बीज वहीं पर जमता हैं,
जब दो टूटे विश्वास यहां पर मिलते हैं ।
पीड़ा की गोदी सूनी नहीं हुआ करती,
उल्लास उसी के हाथों में ही पलते हैं ।
ये झुका गगन, ये उठे नयन,
दूरी को भरते जाते हैं ।
इस भावपूर्ण और अर्थपूर्ण गीत के रचयिता
रामस्वरूप मूंदड़ा  देश के साहित्यकारों में राजस्थान के बूंदी शहर में निवास करने वाले  एक ऐसे साहित्यकार हैं जो किसी विधा की सीमा में बंध कर नहीं रहे और सभी विधाओं गीत, ग़ज़ल, हाइकु, मुक्तक कविताएं, दोहे, आलेख और समीक्षा को अपने लेखन का आधार बनाया हैं। आपका राष्ट्रभाषा हिंदी के साथ-साथ राजस्थानी हाड़ोती भाषा पर भी समान अधिकार है और अपने साहित्य सृजन और साहित्यिक कार्यों से  अपनी पहचान बनाई है। इनकी रचनाएं 1957 से ही देश के पत्र –पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। आपने देश के नामी कवियों के साथ देश में  आयोजित विभिन्न अखिल भारतीय सम्मेलनों में भाग ले कर राजस्थान का नाम रोशन किया है।
 हाइकु कविता :
अहमदाबाद से प्रकाशित विश्व हाइकु कोष में आपके हाइकु शामिल होना साहित्य जगत के लिए गर्व की बात है।  देश में गिनती के हाइकु लेखन साहित्यकारों में शामिल रामस्वरूप मूंदड़ा बताते हैं कि यह जापानी कविता का सबसे लघु रूप है।  इन्होंने 1970 में हाइकु कविता लिखना शुरू किया और अब तक 1200 से अधिक हाइकु लिख चुके हैं। इनके हाइकु में अध्यात्मिक चेतना, दार्शनिकता, राजनीतिक, पारिवारिक समस्याओं, विडंबनाओं, धात प्रतिघात, प्रकृति चित्रण, जीवन मूल्यों, दरिद्रता, पाश्चात्य संस्कृति आदि विषयों का समावेश साफ देखा जा सकता है। इनकी कुछ हाइकु कविताओं की बानगी देखिए
1- संगीत सुनें
सबसे अच्छी लगी
  माँ की लोरी !
2- सब मेरे हैं
यह पूरा संसार
 सारा ब्रह्माण्ड !
3- शाश्वत स्वर
कुछ स्थायी नहीं हैं
 दुःख न सुख !
दोहा :
आप की दोहा लेखन की शैली भी आपकी अपनी अनूठी कल्पनाशीलता को दर्शाते हैं।
1-
चिड़िया फुरफुर कर उड़ी, पत्ता हिलकर मौन ।
सब अपने मन की करें, किसकी सुनता कौन ॥
2. काली रातें बेबसी, खामोशी तन सर्द ।
मिला वही छलता गया, किससे कहते दर्द ॥
3- कंचन बरनी बेलडी, फूली दिन दो चार ।
रूप, रस और गंध का, समय रहा आधार ॥
4- स्वारथ के संबंध हैं, मतलब के सब यार ।
घर बाहर देखो कही, सार यही संसार ॥
 लघु कविता :
 हिंदी की लघु कविताएं लिखने में भी आपका कोई सानी नहीं है। आपने न जाने कितनी लघु कविताएं रची हैं और जब सुनाई तो खूब दाद पाई है। एक लघु कविता की बानगी देखिए……
दुनिया को जानने वालों की
भीड़ बढ गई है
साधन बढ़ गए हैं
हर व्यक्ति विशेषज्ञ की तरह
हवाई घोड़े पर सवार है
सोचने से पहले
बोलता जा रहा है ।
हम दूसरों को खोजने में लगे ही निरन्तर
अपना पता नहीं ।
यात्रा जारी रहनी चाहिए
बड़ी बात अज्ञात न रह जाए
वह है
आत्मा और परमात्मा
पहले खुद को जानों
फिर परमात्मा को
जो सबका मालिक है
उसको जानने के बाद क्या शेष रहेगा !
 ग़ज़ल :
आप गज़ल लेखन विधा में भी आप उतने ही पारंगत है जितने अन्य विधाओं में। इनकी गज़ल भी कितनी काव्यमय होती है उतनी ही अर्थपूर्ण भी। आपकी गज़ल का एक उम्दा नमूना देखिए……..
सामने आता रहा तो कभी छिपता रहा,
जो नजर में बस गया था उम्र भर दिखता रहा
प्यार पर जिसने लिखा है वो कभी मिटता नहीं
अगणित सदियां गई किस्सा मगर चलता रहा
जिंदगी में यही सच है और बाकी झूठ है,
राह चुन ली, चल पड़ा, मंजिल मिली, हंसता रहा
यह रही रिश्तों की
कीमत आज के इस दौर में,
एक तिनके की तरह रिश्ता उड़ा, उड़ता रहा
मैं नहीं हूँ यह तो सच है पर मुकम्मल कौन है
खामियां मुखड़े में कितनी, आईना गिनता रहा
अपने – अपने दर्द सबके, दर्द के मारे सभी,
दर्द अपना ही बड़ा, सबको यहां लगता रहा
हर समय संभव नहीं है हाथ में कागज – कलम
दिल के लंबे पेज पर अंगुली हिला लिखता रहा
 मुक्तक :
मुक्तक लेखन से भी इन्होंने साहित्य को समृद्ध बनाया। मुक्तक लेखन की भी इनकी अपनी शैली है। एक नमूना देखिए……..
1
रोज पौधे में दिया जल, यह भी सृजन हो गया ;
वृद्ध को दे दिया सहारा,
यही  अर्चन  हो गया ;
आपने जिस दिन किसीकी वेदना को पढ़ लिया
आप ये सच मानिये, ईश्वर का दर्शन हो गया !
2-
चीरना है ये अंधेरा, हाथ में दीपक उठाओं ;
टिक न पायेगी मुसीबत, तुम जरा – सा मुस्कराओं ;
पीर का पर्वत
पिघलकर एक झरनें – सा बहेगा
हाथ थामों, साथ चल दो, जिंदगी का गीत गाओं !
 प्रकाशन :
रचनाकार्णकी अब तक तीन पुस्तकें हाइकु काव्य संग्रह  ” ध्वनि ” , काव्य संग्रह
” कविताओं के इन्द्रधनुष “,  ग़ज़ल संग्रह
” वक्त हाथ में कलम लिए है ”  प्रकाशित हो चुकी हैं। इनका एक गीत संग्रह और एक मुक्तक संग्रह दो पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं।
देश भर के सभी प्रांतों से प्रकाशित 70 साझा काव्य संकलनों में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। इन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन और सह संपादन भी किया हैं। आप पुस्तक समीक्षा में भी दक्ष हैं और 42 से अधिक पुस्तकों की समीक्षा कर 11 पुस्तकों की भूमिका भी लिख चुके हैं। देश और विदेश की पैट्रिक में आपकी हाइकु और अन्य रचनाएं प्रकाशित और आकाशवाणी केंद्र से रचनाओं का प्रसारण होता है।
सम्मान :
आपको सामाजिक एवं साहित्यिक उपलब्धियों के लिए कई संस्थाओं के द्वारा देश की तीन दर्जन से अधिक उपाधि एवं सम्मान से आपको सम्मानित किया गया है। जिनमें “समाज गौरव” भारतीय राष्ट्रीय सैन समाज एवं पिछड़ा वर्ग महासंघ, दिल्ली, “आचार्य” जैमिनी अकादमी, पानीपत हरियाणा, “कवि कोकिल” आचार्य श्री चन्द्र कविता महाविद्यालय एवं शोध संस्थान हैदराबाद, “डा अम्बेडकर फैलोशिप” डॉ सोहन पाल सुमनाक्षर राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली, ” युग पुरुष” कादम्बिरी साहित्य परिषद् चिरमिरी, सरगुजा, (मध्य प्रदेश), “काव्य किरीट सम्मान” 1998 भाव सृष्टि समाकलन समिति, रामपुरा जालौन, उत्तर प्रदेश प्रमुख सम्मान और पुरस्कार सहित देश की अन्य संस्थाओं द्वारा भी अलंकरणों से सम्मानित किया गया। आपको वर्ष 2024 में
आर्यावर्त साहित्य समिति कोटा द्वारा ” आर्यवर्त साहित्य रत्न 2024″ सम्मान और साहित्यकार व शिक्षा विद दिवंगत शिवप्रसाद शर्मा की जन्म शताब्दी समारोह में ” शिवप्रसाद शर्मा स्मृति काव्य रत्न सम्मान,2024 ” से सम्मानित किया गया।
परिचय :
इंद्रधनुषी काव्य धारा के रचनाकार रामस्वरूप मूंदडा का जन्म बूंदी शहर में 26 नवम्बर 1940 को पिता स्व. हरिशंकर एवं माता जी स्व. पुष्पा देवी के आंगन में हुआ। आपने बी. कॉम. की शिक्षा प्राप्त की और आपको आचार्य की मानद उपाधि पानीपत हरियाणा से प्राप्त हुई है। आप पुलिस विभाग में ओ. एस. के पद से कोटा से सेवानिवृत्त हुए है।
आप द अमेरिकन बायोग्राफीकल इन्स्टीटयूट् कैरोलिना (यूएस ए) के रिसर्च बोर्ड आफ एडवाइजरी के सन् 2000 से सदस्य हैं। साहित्यिक अभिरूचि के साथ – साथ आप अनेक सामाजिक एवं साहित्यिक संगठनों से जुड़े हैं। आप 1960 से बूंदी में गठित हिन्दी साहित्य समिति, बूंदी के आदिनांक अध्यक्ष हैं।
वर्तमान में 83 वर्ष की आयु में साहित्य सृजन में पूर्ण सक्रिय हैं। चलते – चलते…
दुर्घटना को
समय बीत गया है
लाश तो कभी की उठाली गई
बहा हुआ रक्त सूख गया है
कभी नहीं देखे चित्र के आकार में
और मैं उसी पुराने चित्र की
स्थितियां जी रहा हूं
जो कभी था ।
परम्परागत स्थान पर
राख बन चुका होगा अब
शहर का विस्मृत चेहरा ।
गेरुई शाम पाकर
शहर का बचपन
पार्को में कूद रहा होगा,
रेस्त्राओं के कहकहों में
ताका . झांकी करती जवानी
खो रही होगी
और बुढ़ापा नींद की प्रतिक्षा में
खटिया पर खांस रहा होगा
भीड़ तो छंट गई है
किन्तु मैं
अभी तक परछाइयों में घिरा हूँ
और मैं हूँ
जो अभी तक खड़ा हूँ चौराहे पर
उसी दुर्घटना – ग्रस्त अवस्था में ।
संपर्क :
पथ6, द -489,
रजत कॉलोनी,
बूँदी-323001 (राजस्थान )
मो . 9414926428/ 8209859025
—————-
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
( लेखक राजस्थान के कोटा में रहते हैं और  विगत 45 वर्षों से साहित्य, संस्कृति, पर्यटन और विविध विषयों पर निरंतर लिख रहे हैं )

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