भारत के संसद भवन पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी हाल के दिनों में जम्मू-कश्मीर में एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गई है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के हालिया बयान ने इस मुद्दे को और भी ज्वलंत बना दिया है। उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि यदि जम्मू-कश्मीर सरकार से अफजल गुरु की फांसी पर सलाह ली जाती, तो वे इस पर असहमति जताते। उनका कहना था कि अफजल गुरु को फांसी देने से कोई ठोस परिणाम प्राप्त नहीं हुए।
गौरतलब है कि अफजल गुरु को 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत फांसी दी गई थी, उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार और जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की सरकार थी। उमर अब्दुल्ला के इस विवादास्पद बयान को लेकर विरोधी पक्ष के नेताओं का कहना है कि संसद हमले के दोषी और राष्ट्रविरोधी तत्वों को फांसी देने से उन्हें परेशानी क्यों हो रही है? सर्वोच्च न्यायालय ने अफजल गुरु के अपराध को गंभीरतम अपराध माना था। विरोधियों का आरोप है कि उमर अब्दुल्ला का यह बयान चुनावी लाभ के लिए आतंकवादियों और पृथकतावादियों से समर्थन प्राप्त करने की कोशिश है। इसी तरह की रणनीति पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने भी अपनाई थी, जब उनके पिता ने चुनाव जीतने के बाद पृथकतावादियों को धन्यवाद दिया था।
सच्चाई यह है कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद और पृथकतावाद की जड़ें पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई हैं। भले ही हमें दूर से ऐसा प्रतीत होता हो कि ये ताकतें खत्म हो गई हैं, लेकिन वहां की स्थानीय स्थिति कुछ और ही है। स्थानीय नेता और कार्यकर्ता जनता के बीच उठते-बैठते हैं और उन्हें क्षेत्र की वास्तविक परिस्थितियों का अच्छा ज्ञान रहता है। इसी कारण ऐसे बयान सामने आ रहे हैं, जो स्थानीय जनमानस की मनोस्थिति को दर्शाते हैं।
DR.S.K.RAINA
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