बंबई में हेमंत कुमार का मन लग ही नहीं रहा था। वो वापस कलकत्ता लौट जाना चाहते थे। लेकिन ये सशधर मुखर्जी थे जिन्होंने हेमंत दा को रोके रखा। 1952 में आई फिल्म आनंद मठ पहली हिंदी फिल्म थी जिसमें हेमंत दा ने संगीत दिया था। इसी फिल्म के चलते वो पहली दफा कलकत्ता से बंबई आए थे। आनंद मठ का काम खत्म करके जब हेमंत कुमार जी ने वापस कलकत्ता जाने की बात कही तो सशधर मुखर्जी साहब ने उनसे कहा कि जब तक तुम कम से कम एक हिट फिल्म नहीं दोगे तब तक मैं तुम्हें कलकत्ता वापस जाने ही नहीं दूंगा। सशधर मुखर्जी के कहने पर हेमंत कुमार बंबई में रुक गए। डाकू की लड़की और फेरी नाम की दो फिल्मों का संगीत कंपोज़ किया। लेकिन वो फिल्में बहुत खास प्रदर्शन नहीं कर सकी।
लेकिन फिर आई नागिन जिसमें प्रदीप कुमार और वैयजयंतीमाला मुख्य भूमिकाओं में थे। नागिन की बीन उस वक्त बहुत ज़्यादा मशहूर हुई। लेकिन बीन को फिल्म के संगीत में इस्तेमाल करना हेमंत दा के लिए आसान नहीं था। उन्होंने कुछ सपेरों से मदद लेने की कोशिश की थी। लेकिन बात बन नहीं पाई। तब हेमंत दा ने कल्याणजी-आनंदजी से मदद मांगी। दरअसल, कल्याणजी-आनंदजी ने भी नागपंचमी नाम की एक फिल्म में बीन की धुन निकाली थी। हेमंत दा ने जब उनसे पूछा कि उन्होंने बीन की धुन कैसे तैयार की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने क्लैव्योलाइन पर बीन की धुन छेड़ी थी। इस तरह कल्याणजी-आनंदजी से हेमंत दा को बड़ी मदद मिली। लेकिन चुनौती अभी खत्म नहीं हुई थी। एक नई चुनौती उभरकर खड़ी हो गई थी।
दरअसल, क्लैव्योलाइन पर जब कोई धुन छेड़ी जाती है तो उसके एक नोट और दूसरे नोट के बीच में अच्छा खासा गैप महसूस होता है। जबकी बीन में कोई गैप नहीं होता। इसकी काट हेमंत दा ने ऐसे निकाली की उन्होंने क्लैव्योलाइन के साथ हारमोनियम को मिक्स कर दिया। इस तरह तैयार हुई नागिन फिल्म की वो मशहूर बीन की धुन। हालांकि जब हेमंत कुमार ने धुन कंपोज़ करके डायरेक्टर-प्रोड्यूसर को सुनाई थी तो उन्होंने उस धुन में बदलाव करने की मांग की थी। उनका कहना था कि ये तो बहुत मोनोटोनस साउंड कर रही है। इसमें कुछ नयापन होना चाहिए। मगर हेमंत कुमार जी ने उन्हें समझाया कि गाने में बदलाव चाहे करा लीजिए। लेकिन बीन को ऐसे ही रहने दीजिए। क्योंकि लोगों को ये ऐसे ही पसंद आने वाली है।
26 सितंबर 1988 को 69 साल की उम्र में हेमंत कुमार जी का निधन हुआ था।
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