चार साल की मेघना गौड़ा अपनी किंडरगार्टन क्लासेज बहुत पसंद करती है। वह स्पष्ट अंग्रेजी में अपना पता बताती है और लयबद्ध तरीके से अंग्रेजी की कविताएं गाती है। हालांकि मेघना किसी शहर या कस्बे में नहीं रहती है। उसके पिता एक किसान हैं और वह बेंगलूरु से 92 किलोमीटर दूर गुरुदेवराहल्ली में रहती हैं। लेकिन उसे हिप्पोकैंपस लर्निंग सेंटर्स (एचएलसी) के जरिये अपने गांव में ही गुणवत्तायुक्त एवं किफायती प्री-स्कूलिंग शिक्षा मिल रही है। आईआईटी मद्रास के एक स्नातक उमेश मल्होत्रा द्वारा शुरू की गई एचएलसी किंडरगार्टन शिक्षा में शहर-देहात की खाई को पाटने की कोशिश कर रही है। इसके अकेले कर्नाटक में ही 250 केंद्र हैं। इसका दावा है कि उसका प्री-स्कूलिंग नेटवर्क राज्य में सबसे बड़ा है और वह ग्रामीण आबादी को लक्षित कर रही है।
ये केंद्र शिक्षक के रूप में स्थानीय महिलाओं को जोड़ते हैं, जिससे उन्हें समुदाय का समर्थन मिलता है। एचएलसी का पहला केंद्र मांड्या में खुला था और वहां पहले ही साल में केंद्रों की संख्या बढ़कर 17 हो गई है। कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी मल्होत्रा कहते हैं, ‘एचएलसी प्रतिष्ठान एवं सामग्री की लागत कम रखती है, जिससे हमारी सेवाएं किफायती रहती हैं। हम उन ज्यादातर ग्रामीण इलाकों तक पहुंचते हैं, जहां ऐसी सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं।’
प्री-स्कूलिंग की जरूरतें पूरी करने के साथ ही यह महिलाओं के लिए भी रोजगार सृजन करती है, जिन्हें 15 दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है। मॉन्टेसरी प्रशिक्षण के 6 महीनों के दौरान सिखाई जाने वाली चीजें और दो साल के अनुभव को दो-सप्ताह के पाठ्यक्रम में समेट दिया जाता है। यह मॉडल शिक्षकों को प्री-सर्विस और इन-सर्विस ट्रेनिंग मुहैया कराने के मिल तैयार किया गया है। एचएलसी ने मूल्यांकन की एक पद्धति विकसित की है, जिसे स्टेप नाम दिया गया है। इसके जरिये बच्चों को उनके स्तर-स्टार्टर, टेंटेटिव, एक्सीलेंट और पार-एक्सीलेंट लेवल्स के मुताबिक रेटिंग दी जाती है। हर महीने इनके विश्लेषण से समस्या क्षेत्र का पता चलता
है, जिसके बाद इन्हें शिक्षक हल करते हैं।
अन्य नए उत्पाद की तरह एचएलसी के लिए भी अपनाना और समझना दो मुख्य बाधाएं थीं। मल्होत्रा कहते हैं, ‘ग्रामीण स्कूल पूर्व शिक्षा को बदलने के लिए आने वाली शहरी अवधारणा को लेकर लोग संशयी थे। पढ़ाने का तरीका भी हटकर उससे हटकर था, जो उन्होंने अब तक देखा था।
एचएलसी हर बच्चे की सालाना फीस 2,000 रुपये लेती है। पार्टनर स्कूल फीस चुकाकर प्रोग्राम खरीदते हैं। हर सेंटर पर निवेश लागत 80,000 से 1 लाख रुपये के बीच है और परिचालन लागत 80,000 रुपये प्रतिवर्ष है। हालांकि मल्होत्रा ने राजस्व के आंकड़ों के बारे में जानकारी नहीं दी। वह कहते हैं कि संस्थान आगामी वित्त वर्ष में इस आंकड़े के बढ़कर तिगुना होने की उम्मीद कर रहा है।
एचएलसी के प्री-स्कूल छात्रों की संख्या करीब 11,000 और शिक्षकों की तादाद 600 से अधिक हो गई है। हाल में इसने महाराष्ट्र में केंद्र खोले थे, जिनमें नागपुर में 8 पार्टनर स्कूल और सांगली में 5 एचएलसी स्कूल शामिल थे।
एचएलसी फ्रेंचाइजी मॉडल और स्कूलों के साथ साझेदारी के मॉडलों पर काम करती है। संस्थान इन प्री-स्कूलों, रुचि रखने वाले लोगों और स्वयंसेवी समूहों को संस्थान के अंदर तैयार की गई पठन सामग्री और प्रशिक्षण मुहैया कराता है। यह 50 निजी स्कूलों और 50 आंगनवाड़ी से करार कर चुका है। साल के अंत तक केंद्रों की संख्या बढ़ाकर 700 करने की योजना है। मल्होत्रा कहते हैं, ‘हम कोल्हापुर और सांगली में 15 और नागपुर में एवं इसके आसपास 15 हिप्पोकैंपस सेंटर्स खोलने की योजना बना रहे हैं। यह दो राज्यों में विस्तार से अलग है।’
कंपनी दो चरणों में 21 करोड़ रुपये जुटा चुकी है। निवेशकों में एशियन डेवलपमेंट बैंक, यूनाइटेड सीड बैंक, खोसला इम्पैक्ट, एक्यूमन और लोक कैपिटल शामिल हैं।
यूनाइट््स सीड फंड के सह-संस्थापक और प्रबंध साझेदार विल पुली का कहना है, ‘उन्होंने ऐसे कारोबार में निवेश किया है, जिसके विस्तार की संभावनाएं हैं और जो फायदेमंद है। साथ ही यह अहम सामाजिक जरूरत भी पूरी कर रहा है। यह एक स्केलिंग मॉडल है, जो स्थानीय समुदायों और उनकी जरूरतों को पूरा करता है, नए शिक्षक तैयार करता है और असाधारण शिक्षा नतीजे देता है और अपने कार्यक्रमों की देशभर में मांग पैदा कर रहा है।’
एचएलसी को अपनी तरह की कंपनियों जैसे ट्रीहाउस और जी किड्ज से जो चीज अलग करती है वह ग्रामीण पहुंच है। ये कंपनियां केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित हैं। इसके अलावा इन प्रशिक्षण संस्थानों में अध्यापन केवल अंगरेजी में कराया जाता है, लेकिन एचएलसी दो भाषाओं में प्रशिक्षण मुहैया कराती है। मल्होत्रा कहते हैं, ‘हम बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाते हैं, लेकिन हमारी कक्षाएं मुख्य रूप से स्थानीय भाषाओं में चलती हैं। पाठ योजना और क्रियाकलाप शीट्स दो भाषाओं में होती हैं, ताकि परिजन बच्चों को एक्टिविटी पूरी करने में मदद कर सकें।’ वह कहते हैं कि यह ‘ग्रामीण भारत में एक ब्रांड बनाने’ और भारत -इंडिया के बीच की खाई को पाटने की कवायद है।
हिप्पोकैंपस लर्निंग सेंटर्स (एचएलसी) की वेब साईट http://hlc.org.in/
साभार- http://hindi.business-standard.com/ से