हिंदी के बिना अन्य भारतीय भाषाओं का विकास नहीं हो सकता है। हमारी संस्कृति, दर्शन और संपूर्ण परंपरा भाषा के साथ ही जीवित रहती है। ऐसे में जरूरी है कि हिंदी साहित्य सम्मलेन जैसी संस्थाएं सोशल मीडिया के साथ चल रही पीढ़ी में इस ज्ञान का समावेश करें। उक्त विचार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने रविवार को नागपुर में हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के 68वें अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा, मराठी हमारी मातृभाषा है, लेकिन हिंदी मां की तरह है। हिंदी के बिना अन्य भारतीय भाषाओं का विकास नहीं हो सकता। अभिव्यक्ति के नए माध्यम आने का यह अर्थ नहीं कि पुराने का त्याग कर दिया जाए।
केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने याद दिलाया कि नागपुर में 80 साल बाद यह सम्मेलन हो रहा है। कहा, हिंदी ने देश की एकता-अखंडता को सबसे अधिक मजबूती प्रदान की है।
केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में भी इसके प्रचार-प्रसार के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन जैसी संस्थाओं को आगे आने की जरूरत है। जेएनयू की घटना का जिक्र किए बिना वह बोले कि अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ राष्ट्रीय अखंडता की जगह अलगाववाद को बढ़ावा देना नहीं है। उन्होंने सम्मेलन के प्रतिनिधियों से अपने विचारों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का आह्वान किया।
अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति गिरीश्वर मिश्र ने हिंदी के एक हजार वर्षों के इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिंदी सबसे अधिक ग्रहणशील भाषा है।